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छह और सात मई की दरमियानी रात भारत ने पाकिस्तान और पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर में “ऑपरेशन सिंदूर” चलाया.
भारतीय सेना का कहना है कि इस दौरान उन्होंने नौ ठिकानों पर ‘आतंकवादियों के कैंपों’ पर हमले किए हैं.
इस सैन्य कार्रवाई के बाद कर्नल सोफ़िया कुरैशी ने बताया था कि “पाकिस्तान में पिछले तीन दशकों से टेरर इन्फ़्रास्ट्रक्चर का निर्माण हो रहा है, जिसमें भर्ती, ट्रेनिंग और लॉन्च पैड भी शामिल थे, जो पाकिस्तान और पाकिस्तान के कब्ज़े वाले जम्मू-कश्मीर में फैले हैं.”
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़ ने इसे भारत का ‘एक्ट ऑफ़ वॉर’ बताया और कहा कि उन्हें मुंहतोड़ जवाब देने का पूरा अधिकार है.
दोनों देश चार दिन तक आमने-सामने रहने के बाद संघर्ष विराम पर राज़ी हुए. भारत-पाकिस्तान के बीच संघर्ष विराम की जानकारी सबसे पहले अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने सोशल मीडिया पर दी थी.
संघर्ष विराम के बाद अब चर्चा इस पर हो रही है कि चार दिन में किसका कितना नुक़सान हुआ? इस मामले पर एक्सपर्ट्स की क्या राय है?
नुक़सान पर भारत और पाकिस्तान के दावे
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पाकिस्तान में भारत की सैन्य कार्रवाई के बाद पाकिस्तान के विदेश मंत्री इसहाक़ डार ने पाकिस्तान की संसद में बयान दिया था. इसहाक़ डार ने दावा किया था पाकिस्तान की एयर फ़ोर्स ने भारत के पांच फ़ाइटर जेट मार गिराए थे. डार के मुताबिक़, इनमें तीन रफ़ाल शामिल हैं.
इसके अलावा पाकिस्तान का दावा था कि उन्होंने हमले की रात 70 से ज़्यादा ड्रोन को भी निशाना बनाया था.
हालांकि, भारत की तरफ़ से एयर मार्शल एके भारती ने पाकिस्तान के दावे पर कोई स्पष्ट प्रतिक्रिया नहीं दी है और न ही रफ़ाल के नुक़सान की बात मानी है.
पाकिस्तान सेना ने कहा कि जवाबी कार्रवाई ‘ऑपरेशन बनयान-उन-मर्सोस’ में उनकी तरफ़ से भारत के 26 सैन्य ठिकानों को निशाना बनाया गया था. इनमें पठानकोट, अंबाला, उधमपुर, श्रीनगर, बठिंडा, आदमपुर, अंवतिपुर, सूरतगढ़ और सिरसा शामिल हैं.
इसके अलावा सेना का दावा था कि उसके दर्जनों ड्रोन भारत की राजधानी नई दिल्ली सहित प्रमुख भारतीय शहरों के ऊपर मंडराते रहे.
पाकिस्तानी सेना के प्रवक्ता ने कहा था कि उन्होंने नगरोटा में ब्रह्मोस मिसाइल के भंडारण वाली जगह और आदमपुर में एस-400 डिफ़ेंस सिस्टम पर सफलतापूर्वक हमला किया था.
भारत को ‘ऑपरेशन सिंदूर’ से क्या हासिल हुआ?
भारत सरकार के पत्र-सूचना कार्यालय (पीआईबी) ने ‘ऑपरेशन सिंदूर’ को लेकर एक प्रेस रिलीज़ जारी की है. इसके मुताबिक़,
- नौ आतंकी शिविर नष्ट किए गए और 100 से अधिक ‘आतंकवादी’ मारे गए
- प्रमुख ‘आतंकी कमांडर’ जैसे- यूसुफ़ अजहर, अब्दुल मलिक रऊफ, मुदस्सिर अहमद की मौत
- एक ही ऑपरेशन में परमाणु शक्ति वाले देश पाकिस्तान के 11 एयर बेस पर हमला करने वाला पहला देश बना भारत
- पाकिस्तान की वायु सेना की 20% संपत्ति नष्ट
- भोलारी एयर बेस का भारी नुक़सान और स्क्वाड्रन लीडर उस्मान यूसुफ़ की मौत
- कश्मीर मुद्दे को फिर से परिभाषित किया गया
सैटेलाइट तस्वीरों में क्या दिखा?
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संघर्ष के दौरान भारत और पाकिस्तान ने एक-दूसरे पर हमला करने के लिए ड्रोन और मिसाइल का इस्तेमाल किया. इसके बाद दोनों पक्षों ने गंभीर नुक़सान पहुंचाने की बात कही है.
अमेरिकी अख़बार न्यूयॉर्क टाइम्स ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि सैटेलाइट तस्वीरों से हमलों के व्यापक होने का पता चलता है लेकिन नुक़सान दावों से कम हुआ है.
रिपोर्ट में कहा गया है कि पाकिस्तान की सैन्य सुविधाओं और हवाई अड्डों को निशाना बनाने में भारत को स्पष्ट बढ़त मिली है.
रिपोर्ट के मुताबिक़, “पाकिस्तान के बंदरगाह शहर कराची से 100 मील से भी कम दूरी पर स्थित भोलारी एयर बेस पर भारत के रक्षा अधिकारियों ने कहा कि उन्होंने एक विमान हैंगर पर सटीक हमला किया है. तस्वीरों में हैंगर जैसी दिखने वाली जगह पर स्पष्ट क्षति दिखाई दे रही है.”
भोलारी एयर बेस पाकिस्तान में सिंध प्रांत के जमशोरो ज़िले में है. दिसंबर 2017 में इसका उद्घाटन किया गया था और यह पाकिस्तान के सबसे आधुनिक एयर बेस में से एक है.
इसी तरह रिपोर्ट में नूर ख़ान एयर बेस, रहीम यार ख़ान हवाई अड्डा और सरगोधा एयर बेस को नुक़सान दिखाने वाली सैटेलाइट तस्वीरें भी शामिल हैं.
पाकिस्तान ने दो दर्जन से ज़्यादा सैन्य प्रतिष्ठानों और ठिकानों को निशाने बनाने का दावा किया था. इसमें उधमपुर एयर बेस भी शामिल है. लेकिन उधमपुर एयर बेस की 12 मई को ली गई सैटेलाइट तस्वीर में कोई नुक़सान नहीं दिखाई दे रहा है.
एक्सपर्ट क्या कह रहे हैं?
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रक्षा मामलों के जानकार जॉन स्पेंसर का मानना है कि ‘ऑपरेशन सिंदूर’ ने अपने रणनीतिक उद्देश्यों को पूरा किया और भारत ने एक बड़ी जीत हासिल की है.
जॉन स्पेंसर एक्स पर लिखते हैं, “सिर्फ़ चार दिनों की सोची-समझी सैन्य कार्रवाई के बाद भारत ने एक बड़ी जीत हासिल की. ऑपरेशन सिंदूर ने अपने रणनीतिक उद्देश्यों को पूरा किया और उससे भी आगे निकल गया- आतंकवादी ढांचे को नष्ट करना, सैन्य श्रेष्ठता का प्रदर्शन करना और एक नए राष्ट्रीय सुरक्षा सिद्धांत को दिखाना. यह प्रतीकात्मक नहीं था. यह निर्णायक शक्ति थी, जिसका स्पष्ट रूप से प्रयोग किया गया.”
स्पेंसर का कहना है, “भारत प्रतिशोध के लिए नहीं लड़ रहा था. वह प्रतिरोध के लिए लड़ रहा था और यह काम कर गया. भारत ने पाकिस्तान में किसी भी लक्ष्य पर हमला करने की अपनी क्षमता का प्रदर्शन किया- आतंकी ठिकाने, ड्रोन केंद्र और यहां तक कि एयरबेस भी. इस बीच पाकिस्तान भारत के अंदर एक भी सुरक्षित क्षेत्र में घुसने में असमर्थ रहा. यह बराबरी नहीं है. भारत बहुत आगे था.”
रवि अग्रवाल फ़ॉरेन पॉलिसी मैगज़ीन के प्रधान संपादक हैं. भारत-पाकिस्तान संघर्ष पर उन्होंने सीएनएन के पत्रकार फ़रीद ज़कारिया के साथ बातचीत की है.
रवि अग्रवाल से जब पूछा गया कि इस संघर्ष का हासिल क्या है तो उन्होंने कहा, “पाकिस्तान की सेना चाहती है कि रक्षा बजट में इज़ाफ़ा किया जाए. वो ये साबित करना चाहती है कि वो एक मज़बूत पड़ोसी को रोक सकती है. वो अपनी अहमियत क़ायम रखना चाहते हैं.”
रवि अग्रवाल के मुताबिक़, “सेना नहीं चाहती कि देश की सत्ता एक लोकप्रिया नेता के हाथों में हो. क्योंकि उन्हें लगता है कि यही उनके हित में भी है.”
भारत ने हर बार विरोध किया लेकिन इस बार भारत पाकिस्तानी क्षेत्र में पहले से बहुत ज़्यादा अंदर चला गया. जबकि पाकिस्तान एक परमाणु संपन्न देश है. आपको क्या लगता है भारत ने इतना साहस क्यों किया?
इस सवाल पर रवि अग्रवाल कहते हैं, “भारत की अर्थव्यवस्था आज पाकिस्तान से 11 गुना बड़ी है. साल 1999 में यह केवल पाँच गुना बड़ी थी. इसलिए भारत अधिक आश्वस्त महसूस करता है. उसे लगता है कि सीमा पार से होने वाले हमले बढ़ गए हैं और उसे कुछ निर्णायक करने की ज़रूरत है. लेकिन समस्या की जड़ ये है कि पाकिस्तान की सेना वहां पनप रहे आतंकवादियों को नियंत्रित करने में असमर्थ है. और भारत इन हालातों को अब बदलना चाहता है.”
संघर्ष विराम सही या रणनीतिक चूक?
सामरिक मामलों के जाने-माने विश्लेषक ब्रह्मा चेलानी संघर्ष विराम को एक रणनीतिक चूक के रूप में देखे जाने के जोखिम की तरफ़ इशारा करते हैं.
ब्रह्मा चेलानी एक्स पर लिखते हैं, “अगर पाकिस्तान को सैन्य संघर्ष में बढ़त मिल जाती, तो वह बिना किसी हिचकिचाहट के अपनी बढ़त का फ़ायदा उठाता और भारत के लिए निर्णायक और संभवत: अपमानजनक परिणाम की मांग करता.”
“इसके उलट भारत ने युद्ध विराम पर सहमति व्यक्त की, ठीक उसी समय जब उसके सशस्त्र बलों ने बढ़त हासिल कर ली थी. हालांकि यह कदम भारत के संयम या कूटनीतिक गणना को दर्शाता है, लेकिन इसे रणनीतिक चूक के रूप में देखे जाने का भी जोखिम है. भारत का निर्णय नपा-तुला है, फिर भी उसे परेशान कर सकता है.”
अमेरिकी थिंक टैंक ब्रूकिंग्स इंस्टीट्यूशन के फ़ेलो जोशुआ टी. व्हाइट का कहना है कि इस संघर्ष से दोनों देश सबक लेते हुए भविष्य में हथियार ख़रीद पर और अधिक ज़ोर देंगे.
जोशुआ व्हाइट लिखते हैं, “पाकिस्तान संभवत: चीन के साथ अपनी क़रीबी पर दोगुना ज़ोर देगा और ड्रोन के लिए तुर्की से भी साझेदारी बढ़ाएगा. पहली नज़र में, पाकिस्तान की वायु सेना ने हवा से हवा में लड़ाई में अपेक्षाकृत अच्छा प्रदर्शन किया है.”
“हालांकि, युद्ध में हुए नुक़सान का आकलन करने पर यह पाकिस्तान के एयर डिफेंस सिस्टम की विश्वसनीयता पर सवाल उठाते हैं. साथ ही बड़ी संख्या में ड्रोन लॉन्च करने पर भी सोचना होगा, जो भारत के भीतर केवल मामूली नुक़सान पहुंचाते हैं.”
भारत को लेकर जोशुआ व्हाइट कहते हैं, “भारत के सामने कई जटिल विकल्प हैं. ऐसा लगता है कि इसके एयर डिफ़ेंस सिस्टम ने काफी अच्छा प्रदर्शन किया है, और इसकी सेना ने दिखाया है कि यह एक साथ हवाई और ज़मीनी हमलों से पाकिस्तान तक पहुँच सकता है. लेकिन इस संकट से भारत में इस बात की चिंता बढ़नी चाहिए कि निरंतर संघर्ष के लिए मिसाइलों और युद्ध सामग्री के काफ़ी बड़े भंडार की आवश्यकता है.”
लंदन स्थित किंग्स कॉलेज में सीनियर लेक्चरर वाल्टर लैडविग क़तर के मीडिया संस्थान अल जज़ीरा से बातचीत में कहते हैं, “ताज़ा संघर्ष ने पाकिस्तान को कश्मीर मुद्दे का अंतर्राष्ट्रीयकरण करने का मौका दिया है, जो उसका दीर्घकालिक रणनीतिक लक्ष्य रहा है. वहीं, कूटनीतिक रूप से भारत ने पाकिस्तान स्थित आतंकवादी समूहों पर अंतरराष्ट्रीय ध्यान फिर से केन्द्रित करने में सफलता हासिल की है.”
लैडविग कहते हैं कि अब अंतरराष्ट्रीय मंचों पर सक्रिय ‘आतंकवाद’ विरोधी प्रयासों को साबित करने की ज़िम्मेदारी पाकिस्तान पर ही है.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित
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