Central Government Continues To Allocate Large Amounts Of Funding For Sanskrit- Dmk Mp Kanimozhi – Amar Ujala Hindi News Live – Hindi-tamil Languages Row:कनिमोझी बोलीं

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डीएमके सांसद कनिमोझी ने रविवार को केंद्र सरकार की भाषा नीति और हिंदी थोपने के प्रयासों को लेकर कड़ा बयान दिया। उन्होंने कहा कि तमिल भाषा न सिर्फ प्राचीन है, बल्कि आज भी जीवित और समृद्ध है, जबकि संस्कृत अब आम बोलचाल की भाषा नहीं रह गई है। इसके बावजूद केंद्र सरकार संस्कृत के प्रचार-प्रसार के लिए बड़े पैमाने पर धन आवंटित करती है। कनिमोझी ने यह भी चेताया कि अगर किसी राज्य में स्थानीय भाषा को नजरअंदाज कर हिंदी या किसी अन्य भाषा को बढ़ावा दिया गया, तो वहां की संस्कृति और परंपरा पर खतरा मंडराने लगता है। उन्होंने महाराष्ट्र का उदाहरण देते हुए कहा कि वहां हिंदी के बढ़ते प्रभाव ने मराठी भाषा की अहमियत को कम कर दिया है।

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‘तमिलनाडु में हिंदी थोपने की कोशिश नाकाम रही’

कनिमोझी ने कहा कि तमिलनाडु में ऐसी स्थिति कभी पैदा नहीं हुई, क्योंकि यहां के लोग हमेशा अपनी भाषा और संस्कृति की रक्षा के लिए खड़े हुए। उन्होंने कहा, ‘जब हिंदी थोपने की कोशिश हुई, तो पूरे राज्य में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हुए। तमिलनाडु के लोगों के संघर्ष की वजह से ही आज तमिल भाषा, उसकी संस्कृति और परंपराएं सुरक्षित और जीवित हैं।’

अनुराग ठाकुर पर कनिमोझी ने ली चुटकी

डीएमके सांसद कनिमोझी ने चुटकी लेते हुए कहा कि अगर आज बच्चों से पूछा जाए कि चांद पर सबसे पहले कौन गया, तो वे नील आर्मस्ट्रॉन्ग का नाम बताएंगे। ‘लेकिन कुछ उत्तरी नेता यह दावा कर सकते हैं कि सबसे पहले हमारी लोककथाओं की दादी या फिर हनुमान जी चांद पर पहुंचे थे।’ उन्होंने कहा कि सौभाग्य से तमिलनाडु में ऐसे लोग सत्ता में नहीं हैं, इसलिए यहां शिक्षा और विचारधारा तथ्य और तर्क पर आधारित हैं।

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‘तमिलों में कभी नहीं रहा वर्चस्व का भाव’

कनिमोझी ने तमिल समाज की ऐतिहासिक सोच पर जोर देते हुए कहा कि तमिलों ने कभी दूसरों पर अपना वर्चस्व नहीं जमाया। उन्होंने कहा ‘प्राचीन काल में जब तमिल योद्धा युद्ध जीतते थे, तो वे वहां के लोगों या उनकी संस्कृति को नष्ट नहीं करते थे। तमिलों के बीच कभी भी वर्चस्व और दूसरों को दबाने की मानसिकता नहीं रही है।’ डीएमके सांसद कनिमोझी का यह बयान ऐसे समय में आया है, जब देश में भाषाई पहचान और केंद्र की भाषा नीति को लेकर बहस तेज है। तमिलनाडु लंबे समय से हिंदी थोपने का विरोध करता रहा है, और यह मुद्दा राज्य की राजनीति में हमेशा संवेदनशील रहा है।

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