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Bihar Congress: बिहार में विधानसभा चुनाव से पहले दल-बदल की सियासत ने रफ्तार पकड़ ली है. कांग्रेस पार्टी को उस समय गहरा झटका लगने जा रहा है जब उसके वरिष्ठ नेता, छह बार के विधायक और दलित समुदाय की मुखर आवाज डॉ.अशोक राम अब पार्टी छोड़कर जनता दल यूनाइटेड (जदयू) में शामिल हो गये.लंबे समय से कांग्रेस में सक्रिय और कई बार महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां संभाल चुके डॉ. राम अब नीतीश कुमार के नेतृत्व में अपनी राजनीतिक पारी को आगे बढ़ाएंगे.
बिना सम्मान के सेवा से ऊबे अशोक राम
डॉ. अशोक राम कांग्रेस के लिए कोई साधारण नाम नहीं हैं. बिहार में कांग्रेस की जब-जब पहचान संकट में पड़ी, डॉ. राम जैसे नेताओं ने उसे संबल दिया. दलित वर्ग में उनकी पैठ मजबूत है और कांग्रेस में वे इसी समुदाय का सबसे प्रमुख चेहरा माने जाते रहे हैं.
हालांकि, पिछले कुछ वर्षों में उन्हें लगातार किनारे किया जा रहा था. राष्ट्रीय कार्यसमिति के सदस्य और प्रदेश कार्यकारी अध्यक्ष जैसे पदों पर रह चुके डॉ. राम को पार्टी की नीति और निर्णय प्रक्रिया से लगातार दूर रखा गया.
क्यों छोड़ दिया कांग्रेस का साथ
अशोक राम खासकर तब से असहज महसूस कर रहे थे जब कृष्णा अल्लावरू को बिहार कांग्रेस का प्रभारी बनाया गया. इसके बाद प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष के लिए भी उन्हें नजरअंदाज कर राजेश राम को पद सौंपा गया. यह नियुक्ति जातिगत समीकरणों के लिहाज से भी डॉ. राम को असहज कर गई.
उनके समर्थकों का कहना है कि उन्हें बार-बार यह महसूस कराया गया कि उनका कद जानबूझकर छोटा किया जा रहा है. पार्टी के महत्त्वपूर्ण कार्यक्रमों से भी उन्हें दूर रखा गया और निर्णय प्रक्रिया में कोई भूमिका नहीं दी गई.
अब नीतीश कुमार के साथ नई पारी की तैयारी
डॉ. अशोक राम आज पटना स्थित जदयू कार्यालय में पार्टी की सदस्यता ग्रहण करेंगे. इस मौके पर जदयू के राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष संजय झा, प्रदेश अध्यक्ष उमेश कुशवाहा, मंत्री विजय चौधरी और दलित समुदाय से आने वाले मंत्री रत्नेश सदा की मौजूदगी तय मानी जा रही है.
बताया जा रहा है कि इससे पहले ही डॉ. राम ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से व्यक्तिगत मुलाकात कर अपनी सहमति और भावी भूमिका पर चर्चा कर ली है. अब यह केवल औपचारिक ऐलान की प्रक्रिया है.
दलित राजनीति का बड़ा संदेश
डॉ. राम का कांग्रेस से जाना सिर्फ एक व्यक्ति का दल-बदल नहीं, बल्कि दलित राजनीति में बदलाव के संकेत के तौर पर भी देखा जा रहा है. बिहार में जदयू ने पिछले कुछ वर्षों में दलित वर्ग को ध्यान में रखकर कई योजनाएं शुरू की हैं और उनका नेतृत्व भी सामाजिक संतुलन पर आधारित रहा है.
ऐसे में डॉ. राम की जदयू में एंट्री नीतीश कुमार के दलित वोटबैंक को और मजबूत करने की दिशा में एक अहम कदम हो सकती है. इसके साथ ही यह कांग्रेस के लिए एक गंभीर चेतावनी भी है कि उसकी जमीनी पकड़ लगातार कमजोर हो रही है.
बिहार की राजनीति में यह घटनाक्रम कांग्रेस के लिए एक बड़ा झटका है. डॉ. अशोक राम जैसे नेता का पार्टी छोड़ना न सिर्फ नेतृत्व की विफलता को उजागर करता है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि कांग्रेस अब अपने अनुभवी और जनाधार वाले नेताओं को संभाल पाने में विफल हो रही है.
अब देखना यह है कि जदयू में डॉ. राम को किस तरह से शामिल किया जाता है और उन्हें क्या भूमिका मिलती है. इतना तय है कि इस फैसले से आने वाले चुनावों में नए समीकरण बनेंगे और पुराने समीकरण टूटेंगे.
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