UP News : भारत और अमेरिका के बीच बहुप्रतीक्षित व्यापार समझौता (ट्रेड डील) अब निर्णायक मोड़ पर पहुंच चुका है। लेकिन इस संभावित समझौते से पहले किसानों और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को लेकर चिंता जताई जा रही है। भारतीय किसान यूनियन (भाकियू) के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत ने सरकार को स्पष्ट शब्दों में आगाह किया है कि यदि कृषि और डेयरी सेक्टर को इस डील में शामिल किया गया, तो इसका असर भारत के करोड़ों किसानों और पशुपालकों पर विनाशकारी होगा।
“यह आत्मनिर्भर भारत पर हमला होगा” : टिकैत
राकेश टिकैत ने रविवार को मीडिया से बातचीत में कहा कि “यदि इस समझौते में अमेरिका को भारत का कृषि और डेयरी बाजार खोलने की अनुमति दी गई, तो देश का किसान अपने ही खेत में मजदूर बन जाएगा।” उनका कहना है कि भारत की ग्रामीण व्यवस्था कृषि और पशुपालन पर टिकी हुई है, और यदि इस पर अमेरिकी पूंजी आधारित मॉडल लागू किया गया, तो छोटे किसान और उत्पादक कॉपोर्रेट दबाव में खत्म हो जाएंगे।
9 जुलाई की डेडलाइन से पहले चेतावनी
टिकैत ने अमेरिकी नीतियों का हवाला देते हुए कहा कि पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा घोषित टैरिफ छूट की अवधि 9 जुलाई को समाप्त हो रही है। ऐसे में नई शर्तें भारत के लिए आर्थिक और राजनीतिक दोनों स्तरों पर चुनौतीपूर्ण हो सकती हैं। उन्होंने कहा कि अमेरिका भारत से लंबे समय से कृषि और डेयरी क्षेत्रों में बाजार खोलने का दबाव बना रहा है। UP News :
किसानों से बिना परामर्श कोई निर्णय न हो : टिकैत की केंद्र से अपील
टिकैत ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से आग्रह किया है कि अंतरराष्ट्रीय समझौतों से पहले देश के किसानों, दुग्ध उत्पादकों और सहकारी संगठनों से परामर्श लिया जाए। कृषि व डेयरी क्षेत्र को इस व्यापारिक करार से बाहर रखा जाए। राष्ट्रीय कृषि सुरक्षा नीति के तहत ऐसे निर्णय हों जो किसानों के हितों की रक्षा करें। टिकैत का तर्क है कि अमेरिका का कृषि मॉडल पूरी तरह कॉपोर्रेट आधारित है, जिसमें बड़े पैमाने पर मशीनों, रासायनिक खादों और सब्सिडी की मदद से उत्पादन किया जाता है। इसके मुकाबले भारत का किसान अब भी मानसून, परंपरागत बीज और श्रम पर निर्भर है। ऐसे में दोनों देशों के किसानों के बीच प्रतिस्पर्धा असमान होगी और भारतीय किसान बाजार में टिक नहीं पाएगा। UP News :
दोहरी मार की आशंका
टिकैत ने स्पष्ट किया कि अमेरिकी कंपनियां न केवल कम टैक्स और सब्सिडी के दम पर भारत में अपने उत्पाद उतारेंगी, बल्कि स्थानीय उत्पादकों की कीमतों को भी प्रभावित करेंगी। इससे भारतीय किसान को कीमत और उत्पादन दोनों स्तरों पर घाटा होगा। “यह सिर्फ एक व्यापारिक समझौता नहीं, बल्कि भारत की कृषि आत्मनिर्भरता पर सीधा हमला होगा,”। जब भारत जैसे देश में लगभग 60% आबादी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से कृषि पर निर्भर है, तो यह जरूरी हो जाता है कि कोई भी अंतरराष्ट्रीय व्यापार समझौता करते समय ग्रामीण भारत की नब्ज को समझा जाए। कृषि क्षेत्र के लिए नीति नहीं, दृष्टि चाहिए। ऐसी दृष्टि जो केवल व्यापारिक संतुलन नहीं, बल्कि सामाजिक सुरक्षा और आत्मनिर्भरता की गारंटी दे सके। UP News :
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