United Nations General Assembly : संयुक्त राष्ट्र महासभा में जर्मनी द्वारा तालिबान शासन के विरुद्ध प्रस्तुत प्रस्ताव पर भारत की वोटिंग से अनुपस्थिति ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अनेक सवाल खड़े कर दिए हैं। जब 193 सदस्य देशों में से अधिकांश ने अफगानिस्तान में मानवाधिकार उल्लंघनों की आलोचना की, तो भारत ने मतदान से दूर रहकर अपने लिए एक स्वतंत्र और संतुलित कूटनीतिक राह चुनी। सवाल यह है कि आखिर भारत ने यह निर्णय क्यों लिया?
क्या था प्रस्ताव का स्वरूप?
जर्मनी द्वारा प्रस्तुत यह मसौदा ‘अफगानिस्तान की स्थिति’ पर केंद्रित था, जिसमें तालिबान शासन के तहत महिलाओं और लड़कियों को उनके बुनियादी अधिकारों से वंचित करने, पत्रकारों व अल्पसंख्यकों पर अत्याचार और आतंकवादी गतिविधियों की आलोचना शामिल थी। इस प्रस्ताव में चार प्रमुख बिंदुओं पर ज़ोर दिया गया:
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मानवाधिकारों का हनन: तालिबान की लैंगिक भेदभावपूर्ण नीतियों की सख्त आलोचना की गई, खासतौर पर लड़कियों की शिक्षा और महिलाओं के रोजगार पर लगाए गए प्रतिबंधों को लेकर।
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आतंकवाद पर चिंता: प्रस्ताव में अल-कायदा और इस्लामिक स्टेट जैसे संगठनों द्वारा अफगान भूमि से चल रही आतंकी गतिविधियों पर चिंता जताई गई। हालांकि भारत ने आपत्ति जताई कि इस मसले में लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद जैसे क्षेत्रीय आतंकी संगठनों का स्पष्ट उल्लेख नहीं किया गया।
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मानवीय संकट और अंतरराष्ट्रीय सहायता: बिगड़ती खाद्य सुरक्षा, विस्थापन और स्वास्थ्य सेवाओं की कमी पर चिंता जताई गई और वैश्विक समुदाय से सहायता बढ़ाने की अपील की गई।
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संयुक्त राष्ट्र की भूमिका: UNAMA (संयुक्त राष्ट्र सहायता मिशन) की भूमिका को सशक्त करने और अफगानिस्तान के लिए एक विशेष दूत की नियुक्ति पर बल दिया गया।
भारत ने क्यों नहीं दिया वोट?
1. संतुलनहीन प्रस्ताव पर असहमति: भारत का मानना था कि प्रस्ताव केवल तालिबान की आलोचना और दंडात्मक भाषा तक सीमित था। भारत के स्थायी प्रतिनिधि राजदूत पर्वतनेनी हरीश ने कहा कि संघर्षोत्तर अफगानिस्तान में स्थिरता लाने के लिए केवल निंदा नहीं, बल्कि सकारात्मक प्रयासों को प्रोत्साहन और व्यावहारिक समाधान आवश्यक हैं। प्रस्ताव में रचनात्मक जुड़ाव की संभावना कम दिखाई दी।
2. आतंकवाद पर अस्पष्टता: भारत ने यह स्पष्ट किया कि प्रस्ताव में आतंकवाद के उल्लेख में गंभीर कमियां थीं। अफगान भूमि का इस्तेमाल भारत विरोधी आतंकवाद के लिए किया जा सकता है—यह भारत की प्रमुख चिंता रही है। लश्कर और जैश जैसे संगठनों का उल्लेख न होना भारत के लिए बड़ी रणनीतिक चूक मानी गई।
3. संवाद के लिए खुला रास्ता बनाए रखना: भारत ने 2021 में तालिबान के सत्ता में आने के बाद एक ‘सॉफ्ट एंगेजमेंट’ नीति अपनाई है। काबुल में तकनीकी मिशन की पुनःस्थापना, मानवीय सहायता (50,000 मीट्रिक टन गेहूं, दवाइयाँ, छात्रवृत्तियाँ) इसी रणनीति का हिस्सा हैं। बिना औपचारिक मान्यता दिए तालिबान से संवाद बनाए रखना भारत की प्राथमिकता रही है। United Nations General Assembly
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