भारत की पैरालंपिक एथलीट की कहानी, जो देख नहीं सकतीं पर हौसले ने बनाया ट्रैक की उड़नपरी
भारत की पैरालंपिक एथलीट की कहानी, जो देख नहीं सकतीं पर हौसले ने बनाया ट्रैक की उड़नपरी
पेरिस 2024 से पहले किसी भी दृष्टि बाधित भारतीय महिला धावक ने पैरालंपिक खेलों में मेडल नहीं जीता था. वो बदला जब सिमरन शर्मा और रक्षिता राजू पैरिस पैरालंपिक के लिए क्वालिफाई कर गईं.
लेकिन जीतने के लिए उन्हें चाहिए थे ऐसे गाइड रनर, जो उनकी स्पीड और दौड़ने के तरीके से मेल खाते हों. जो धावक देख नहीं सकते या थोड़ा देख सकते हैं वो गाइड रनर के साथ दौड़ते हैं.
भारत में गाइड रनर मिलना आसान नहीं है. पैरा-एथलीट के जीतने पर गाइड रनर को मेडल तो मिलता है लेकिन उसके अलावा उन्हें मदद बहुत कम मिलती है.
बीबीसी ने सिमरन और रक्षिता के साथ वक्त गुज़ारा और उन दोनों के साझे अनुभव से समझने की कोशिश की कि पुरुषों के वर्चस्व वाले खेल जगत में महिला और विकलांग होने की क्या-क्या चुनौतियां हैं?
वीडियो: दिव्या आर्य और प्रेम भूमिनाथन
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़ रूम की ओर से प्रकाशित