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आम आदमी पार्टी को मात देते हुए दिल्ली में बीजेपी 27 साल बाद सत्ता में वापसी कर रही है.
पीएम मोदी के नेतृत्व में बीजेपी को आम आदमी पार्टी की चुनौती से निपटने में करीब 12 साल का वक्त लगा.
मोदी की अगुवाई में बीजेपी ना सिर्फ तीन बार केंद्र में सरकार बनाने में क़ामयाब रही बल्कि इस दौरान कई राज्यों में ‘कमल का फूल भी खिलाया’, लेकिन पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी इस दौरान बीजेपी को कड़ी चुनौती देती आई हैं.
दिल्ली चुनाव के नतीजों के बाद हमने एक्सपर्ट्स से ये जानने की कोशिश की है कि ममता बनर्जी ने कैसे बीजेपी से अपना किला अभी तक बचाए रखा है.
हमने एक्सपर्ट्स से ये भी जानने की कोशिश की है कि दिल्ली चुनाव के नतीजों का कांग्रेस और इंडिया गठबंधन पर क्या असर होगा?
2011 से पश्चिम बंगाल की सत्ता में हैं ममता बनर्जी
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कांग्रेस से निकलीं ममता बनर्जी ने साल 1998 में तृणमूल कांग्रेस का गठन किया. 13 साल बाद 2011 में ममता बनर्जी ने पहली बार पश्चिम बंगाल की सत्ता हासिल की.
ममता बनर्जी की टीएमसी ने पश्चिम बंगाल में 34 साल पुराने लेफ्ट के किले को ढहाया था.
2014 के लोकसभा चुनाव में पश्चिम बंगाल की दो लोकसभा सीटों पर जीत दर्ज करने के बाद बीजेपी ने राज्य में ममता बनर्जी को चुनौती देना शुरू कर दिया.
2016 के चुनाव में हालांकि बीजेपी को महज तीन सीटें मिलीं, लेकिन उसका वोट शेयर 4 फ़ीसदी से बढ़कर 10 फ़ीसदी पर पहुंच गया.
बीजेपी को पश्चिम बंगाल में असल क़ामयाबी 2019 के लोकसभा चुनाव में मिली जब वो राज्य की 42 में 18 सीटों पर जीत दर्ज करने में क़ामयाब रहीं.
लेकिन 2021 में ममता बनर्जी ने अपना किला बचाए रखा और राज्य की 294 विधानसभा सीटों में से 215 पर जीत दर्ज की. हालांकि लेफ़्ट और कांग्रेस को पछाड़ते हुए बीजेपी 77 सीटें जीतकर राज्य की मुख्य विपक्षी पार्टी बन गई.
2024 के लोकसभा चुनाव में भी ममता बनर्जी ने पश्चिम बंगाल में अपनी स्थिति मजबूत की और 42 में से 29 सीटों पर जीत दर्ज की. बीजेपी को 6 सीटों का नुकसान हुआ और वह 12 सीटों पर सिमट गई.
क्या बंगाल पर होगी बीजेपी की नज़र
जानकार मानते हैं कि दिल्ली की जीत के बाद बीजेपी की नज़र 2026 में पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी को पछाड़ने पर है.
बीबीसी से बातचीत में वरिष्ठ पत्रकार विजय त्रिवेदी कहते हैं कि दिल्ली चुनाव में मिली जीत से बीजेपी का आत्मविश्वास बढ़ा है और वो ज़्यादा मजबूती से ममता बनर्जी को चुनौती देने की कोशिश करेगी.
विजय त्रिवेदी ने कहा, “बीजेपी के लिए विपक्षी दलों में सबसे बड़ी चुनौती ममता बनर्जी और अरविंद केजरीवाल रहे हैं. अरविंद केजरीवाल को बीजेपी ने 10 साल बाद मात दे दी है. बीजेपी ने ये एक बड़ा काम किया है.”
“लेकिन ममता बनर्जी अरविंद केजरीवाल से बड़ी नेता हैं. केजरीवाल की पार्टी नई थी और दिल्ली एक वक़्त पर बीजेपी का गढ़ भी रहा है, लेकिन ममता बनर्जी देश की सबसे ताक़तवर नेताओं में से हैं. बीजेपी के पास अभी बंगाली अस्मिता का तोड़ नहीं है.”
पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी बीजेपी के लिए कितनी बड़ी चुनौती है इस सवाल का जवाब देते हुए लोकमत से जुड़े पत्रकार आदेश रावल कहते हैं, “विकल्प ही नहीं है.”
“कांग्रेस पार्टी और लेफ़्ट बंगाल में ख़त्म हो चुके हैं. ममता बनर्जी सरकार में हैं और बीजेपी विपक्ष में है. फिलहाल तो यही नज़र आता है कि टक्कर ममता बनर्जी और बीजेपी के बीच ही होने वाली है. कांग्रेस और लेफ़्ट चुनौती देने की स्थिति में नज़र नहीं आ रहे.”
लोकसभा चुनाव के दौरान दिल्ली में कांग्रेस और आम आदमी पार्टी एक साथ थे, लेकिन दोनों दल विधानसभा चुनाव में अलग-अलग लड़े.
दिल्ली चुनाव के हार के बाद विपक्ष के लिए क्या मैसेज है इस पर विजय त्रिवेदी कहते हैं, “मोदी को रोकने के लिए विपक्षी दलों को एक साथ होना होगा.”
“बीजेपी ने पश्चिम बंगाल में परफ़ॉर्म करके दिखाया है. ऐसा नहीं है कि ममता बनर्जी को हराया नहीं जा सकता, लेकिन ममता बनर्जी के कार्यकर्ताओं की बड़ी संख्या है और उन्हें हराना बड़ी चुनौती होगी.”
कांग्रेस और इंडिया गठबंधन पर क्या असर होगा?
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लोकसभा चुनाव 2024 में इंडिया गठबंधन 234 सीटों के साथ एक बड़ी ताकत बनकर उभारा, लेकिन बीजेपी ने वापसी करते हुए हरियाणा, महाराष्ट्र और दिल्ली विधानसभा चुनाव में जीत हासिल की है.
इन राज्यों में बीजेपी की जीत के बाद इंडिया गठबंधन के भीतर कई सवाल उठे हैं.
हाल में ममता बनर्जी ने अपनी किताब ‘बांगलार निरबाचन ओ आमरा’ में लोकसभा चुनाव में इंडिया गठबंधन की हार के लिए कांग्रेस को ज़िम्मेदार ठहराया.
आदेश रावल कहते हैं, “कांग्रेस के लिए दिल्ली चुनाव के नतीजे थोड़ी राहत भी लेकर आए हैं कि उन्होंने सत्तारुढ पार्टी को हराने में भूमिका निभाई है. केजरीवाल जहां भी चुनाव लड़े वहां उन्होंने कांग्रेस को नुकसान पहुंचाया है.”
“इंडिया गठबंधन का मक़सद 2024 लोकसभा चुनाव में बीजेपी को रोकना था, उसमें वो आधे सफल हुए और बीजेपी 400 सीटों पर नहीं पहुंच पाई.”
“ममता बनर्जी सिर्फ़ बंगाल में चुनाव लड़ती हैं. गौतम अदानी का पश्चिम बंगाल में बड़ा निवेश है.”
“राहुल गांधी ही इस मुद्दे को उठाते हैं. ममता बनर्जी बंगाल में तो बीजेपी को चुनौती देती हैं, लेकिन बंगाल के बाहर वो बीजेपी से नहीं लड़ पाती हैं.”
पश्चिम बंगाल में टीएमसी-कांग्रेस अलग राह पर
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वहीं विजय त्रिवेदी मानते हैं कि हरियाणा, महाराष्ट्र और दिल्ली में विपक्षी दलों की हार का इंडिया गठबंधन पर कोई ज़्यादा प्रभाव नहीं पड़ेगा.
उन्होंने कहा, “इंडिया गठबंधन अपनी ज़रूरत के हिसाब से क्षेत्रीय दलों का संगठन रह गया है. बिहार में आरजेडी और कांग्रेस साथ ही रहेंगे. बंगाल में ममता बनर्जी और कांग्रेस अलग ही रहेगी. इंडिया गठबंधन अभी मजबूत तरीके से नहीं है.”
इंडिया गठबंधन के दल नेतृत्व में बदलाव की मांग करते रहे हैं. हाल में ममता बनर्जी ने दावा किया था कि वो इंडिया गठबंधन की अगुवाई कर सकती हैं.
ममता बनर्जी की इस मांग का लालू यादव और शिवसेना (उद्धव ठाकरे) पार्टी के नेता संजय राउत ने समर्थन भी किया था.
विजय त्रिवेदी कहते हैं, “ममता बनर्जी इंडिया गठबंधन की अगुवाई कर सकती हैं. राहुल गांधी भी इस पर सवाल नहीं उठाएंगे. कांग्रेस का ज़ोर अलग ताक़त बनाने पर है.”
“लेकिन ममता बनर्जी के इंडिया गठबंधन की अगुवाई करने से बीजेपी को शायद ही कोई नुक़सान होगा. कांग्रेस ही इंडिया गठबंधन की अगुवाई करके बीजेपी को नुकसान पहुंचा सकती है.”
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित