Delhi Election: दिल्ली की 14 सीटें जहां AAP की हार की वजह बनी Congress
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शनिवार, आठ फ़रवरी को दिल्ली विधानसभा चुनाव के नतीजे आए और यहां बीजेपी ने 27 साल बाद सत्ता में वापसी की.
70 सीटों वाली दिल्ली में जहां बीजेपी को 48 सीटों के साथ बहुमत मिला वहीं यहां सत्ता में रही आम आदमी पार्टी 22 सीटों में ही सिमट गई.
वोट प्रतिशत की बात की जाए तो जहां बीजेपी को 45.56 फ़ीसदी वोट मिले वहीं आम आदमी पार्टी को 43.57 फ़ीसदी वोट मिले.
यहां तीसरे खे़मे के रूप में कांग्रेस थी जो एक भी सीट पर कब्ज़ा करने में नाकाम रही. हालांकि उसका वोट प्रतिशत 6.34 फ़ीसदी रहा. ये 2020 के चुनावों में उसके प्रदर्शन से बेहतर था, जब उसे 4.63 फ़ीसदी वोट मिले थे.
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इस बार के चुनाव में दिल्ली की कई सीटें ऐसी हैं जहां कांग्रेस, आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार की हार का कारण बनी. इन सीटों पर बीजेपी की जीत का अंतर कांग्रेस के वोटों से कम है.
2024 के लोकसभा चुनाव से पहले कांग्रेस और आम आदमी पार्टी, इंडिया गठबंधन का हिस्सा बनकर साथ में मैदान में उतरी थीं.
लेकिन दिल्ली विधानसभा चुनाव से पहले दोनों ने अकेले ही चुनावी रण में उतरने का फ़ैसला किया. चुनाव प्रचार के दौरान भी दोनों ने जमकर एक-दूसरे पर तंज़ कसे.
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लेकिन चुनाव नतीजे देखने के बाद, ऐसा लगता है कि दोनों ने अगर एकसाथ चुनाव लड़ने का फ़ैसला किया होता और दोनों के वोट एक होते, तो एक टीम के तौर पर उन्हें जीत मिल सकती थी.
एक नज़र उन 14 सीटों पर डालते हैं, जहां जीत का अंतर कांग्रेस को मिले कुल वोटों से कम रहा.
गठबंधन के नेताओं ने जताई नाराज़गी
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इंडिया गठबंधन का हिस्सा रही कुछ पार्टियों के नेताओं ने इस बात की तरफ़ इशारा किया है.
शिवसेना उद्धव ठाकरे गुट के नेता संजय राउत ने कहा, “आप और कांग्रेस की राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी बीजेपी है. दोनों को साथ आना चाहिए था. अगर दोनों साथ आए होते तो बीजेपी की हार गिनती के पहले घंटे में ही तय हो जाती.”
कम्यूनिस्ट पार्टी के डी राजा ने कहा, “ये इंडिया गठबंधन की पार्टियों के बीच एकता न रहने के कारण हुआ, दिल्ली चुनाव के नतीजे एक सीख दे रहे हैं.”
“गठबंधन में सबसे बड़ी पार्टी होने के नाते कांग्रेस को अब झांककर देखना चाहिए कि आगे कैसे गठबंधन को मज़बूत किया जा सकता है. ये सभी के लिए बड़ी चुनौती है.”
जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री और जम्मू कश्मीर नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता उमर अब्दुल्लाह नतीजों से ख़ासा नाराज़ दिखे.
उन्होंने सोशल मीडिया पर एक वीडियो पोस्ट कर तंज़ कसा और लिखा- “और लड़ो आपस में!!!”.
वहीं वीडियो में लिखा दिखता है, “जी भर कर लड़ो. समाप्त कर दो एक-दूसरे को.”
इस सीट से खुद दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल मैदान में थे. उन्हें बीजेपी के प्रवेश सिंह वर्मा ने 4,089 वोटों से शिकस्त दी.
केजरीवाल ने 2013 में दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री रही शीला दीक्षित को मात देकर इस सीट से जीत हासिल की थी और लगातार तीन बार यहां से विधायक रहे.
वहीं उन्हें हराने वाले प्रवेश वर्मा दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री साहिब सिंह वर्मा के बेटे हैं और दो बार पश्चिमी दिल्ली से सांसद रहे हैं.
इस बार इस सीट से कांग्रेस की तरफ़ से शीला दीक्षित के बेटे संदीप दीक्षित मैदान में थे. उन्हें कुल 4,568 वोट मिले जो जीत के अंतर से 479 वोट अधिक हैं.
इस हाई प्रोफ़ाइल सीट पर आम आदमी पार्टी की तरफ़ से दिल्ली के उप मुख्यमंत्री और शिक्षा मंत्री रहे मनीष सिसोदिया उम्मीदवार थे. उन्हें केवल 675 वोटों से हार मिली.
यहां से जीत बीजेपी के तरविन्दर सिंह मारवाह की हुई.
इस सीट पर कांग्रेस की बड़ी भूमिका रही. उसके उम्मीदवार फ़रहाद सूरी को 7,350 वोट मिले.
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मनीष सिसोदिया 2013 से लगातार तीन बार पटपड़गंज सीट से विधायक थे. चुनाव से पहले उन्होंने अपनी सीट बदल ली थी.
2024 में पार्टी में शामिल हुए अवध ओझा को पटपड़गंज से टिकट दिया गया, लेकिन आम आदमी पार्टी का ये प्रयोग न तो अवध ओझा के लिए फ़ायदेमंद साबित हुआ न ही मनीष सिसोदिया के लिए.
बीते तीन बार से जंगपुरा विधानसभा सीट आम आदमी पार्टी के नाम रही है. 2013 में यहां से मनिन्दर सिंह धीर ने जीत हासिल की थी, जबकि 2015 और 2020 में यहां प्रवीण कुमार को जीत मिली.
इससे पहले 1998 से लेकर 2008 तक लगातार तीन बार तरविन्दर सिंह मारवाह ने विधायक के रूप में इस सीट का प्रतिविधित्व किया. हालांकि उस वक्त वो कांग्रेस के नेता थे. 2022 में वो कांग्रेस छोड़ बीजेपी में शामिल हो गए थे.
बीजेपी की शिखा रॉय ने यहां बेहद कम मार्जिन से जीत हासिल की है. उन्होंने 3,188 वोटों के अंतर से अपने प्रतिद्वंद्वी आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता और मंत्री सौरभ भारद्वाज को हराया.
इस सीट पर कांग्रेस के गर्वित सिंघवी को कुल 6,711 वोट मिले. ये वोट अगर आम आदमी पार्टी के खाते में जाते तो यहां से सौरभ जीत सकते थे.
सौरभ भारद्वाज तीन बार लगातार यहां से विधायक रहे हैं. उससे पहले यानी 2008 में ये सीट बीजेपी के नाम रही थी.
आम आदमी पार्टी सरकार में मंत्री रहे सोमनाथ भारती इस सीट से हार गए हैं. उन्हें 2,131 वोटों से अंतर से बीजेपी के सतीश उपाध्याय ने मात दी.
सतीश उपाध्याय साल 2014 और 2016 में दिल्ली बीजेपी प्रदेश प्रमुख रह चुके हैं.
इस सीट पर कांग्रेस के जीतेंन्द्र कुमार कोचर को 6,770 वोट मिले.
2013 में इस सीट से कांग्रेस की विधायक रहीं किरण वालिया को हराकर सोमनाथ भारती ने पहली बार इस सीट पर जीत हासिल की थी. इसके बाद वो 2015 और 2020 में भी इस सीट से विधायक रहे.
ये सीट बीजेपी के नाम रही, यहां से कैलाश गंगवाल को 10,899 वोटों के अंतर से जीत मिली.
उन्होंने इस सीट पर आम आदमी पार्टी की राखी बिड़लान को मात दी. वहीं कांग्रेस के जेपी पंवार ने 17,958 वोट हासिल हुए.
1998, 2003 और 2008 में लगातार कांग्रेस के नाम रही इस सीट पर आम आदमी पार्टी का खाता खुला 2013 में. तीन बार इस सीट से पार्टी के गिरीश सोनी को जीत मिली, लेकिन इस बार पार्टी ने यहां से अपना उम्मीदवार बदल कर राखी बिड़लान को टिकट दिया था. राखी बिड़लान मंगोलपुरी से तीन बार विधायक रही हैं.
पार्टी को इस फ़ैसले का ख़ामियाज़ा भुगतना पड़ा है और यहाँ पर उसका विजय रथ अब रुक गया है.
6,239 वोटों के अंतर से ये सीट बीजेपी के खाते में गई है.
यहां बीजेपी के करतार सिंह तंवर को 80,469 वोट मिले. आम आदमी पार्टी के ब्रह्म सिंह तंवर उनसे केवल 6,239 वोटों से पीछे रह गए.
इस सीट पर कांग्रेस के राजेन्द्र सिंह तंवर को 6,601 वोट मिले.
2015 से लेकर अब तक इस सीट से करतार सिंह तंवर जीतते रहे हैं. 2015 और 2020 में वो इस सीट से आम आदमी पार्टी के विधायक रहे. लेकिन बीते साल उन्होंने पार्टी से नाता तोड़ा और बीजेपी का दामन थाम लिया.
इस बार उन्होंने बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़ा और एक बार फिर इस सीट पर वापसी की है.
इस सीट पर जीत का अंतर 15,163 रहा.
यहां से बीजेपी के उम्मीदवार अहिर दीपक चौधरी ने अपने निकट प्रतिद्वंद्वी आम आदमी पार्टी के अजेश यादव को हराया.
इस नतीजे में बड़ी भूमिका दिल्ली प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष देवेन्द्र यादव की रही जो यहां से बतौर उम्मीदवार थे. वो तीसरे नंबर पर रहे.
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उन्हें कुल 41,017 वोट मिले जो अजेश के मुक़ाबले केवल 4,958 वोट ही कम थे.
अजेश यादव 2008 में इसी सीट पर बहुजन समाज पार्टी की तरफ से चुनाव लड़ चुके हैं, लेकिन उन्हें हार का सामना करना पड़ा. इसके बाद वो कांग्रेस में शामिल हुए और फिर बाद में आम आदमी पार्टी का दामन थाम लिया.
2015 के विधानसभा चुनाव में उन्होंने कांग्रेस के देवेन्द्र यादव को शिकस्त दी थी.
संगम विहार के साथ-साथ ये सीट भी उस लिस्ट में शामिल है जहां बीजेपी की जीत का मार्जिन बेहद कम रहा है.
इस सीट पर बीजेपी के रवि कांत ने 392 वोटों के अंतर से आम आदमी पार्टी की अंजना पार्चा को शिकस्त दी.
कांग्रेस की भूमिका इस सीट पर बेहद अहम रही. उसके उम्मीदवार अमरदीप ने यहां से 6,147 वोट बटोरे.
2020 के विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी के रोहित कुमार महरौलिया ने इस सीट पर बीजेपी की किरण वैद्य को हराया था.
लेकिन इस बार चुनाव से कुछ दिन पहले, टिकट न मिलने के कारण उन्होंने आम आदमी पार्टी से इस्तीफ़ा दे दिया था.
इस सीट से बीजेपी के नीरज बसोया को 38,067 वोटों से जीत मिली. यहां से कांग्रेस के अभिषेक दत्त 11,048 वोटों से उनसे पिछड़ गए.
आम आदमी पार्टी के रमेश पहलवान यहां तीसरे नंबर पर रहे.
यहां से 2013, 2015 और 2020 में आम आदमी पार्टी के नेता मदन लाल ने जीत हासिल की थी. लेकिन इस बार टिकट न मिलने के बाद उन्होंने पार्टी की सदस्यता से इस्तीफ़ा दे दिया था.
बीजेपी के मनोज कुमार शौकीन को पश्चिमी दिल्ली की इस सीट पर 26,251 वोटों के अंतर से जीत मिली है. उन्होंने आम आदमी पार्टी के रघुविन्दर शौकीन को मात दी.
इस सीट पर कांग्रेस के रोहित चौधरी को 32,028 वोट मिले हैं, जो बीजेपी की जीत का एक बड़ा कारण है.
बीते दो बार से, विधानसभा चुनावों में इस सीट से आम आदमी पार्टी के रघुविन्दर शौकीन विधायक थे.
वहीं मनोज शौकीन 2013 से 2014 में यहां से विधायक रहे थे. इस सीट पर उनकी जीत, एक तरह से उनकी वापसी है. इससे पहले वो मुंडका सीट से विधायक थे.
दक्षिण दिल्ली की इस सीट पर बीजेपी के गजेन्द्र सिंह यादव को 1,782 वोटों के अंतर से जीत मिली है. उन्होंने आम आदमी पार्टी के महेंद्र चौधरी को हराकर जीत हासिल की है.
इस सीट पर कांग्रेस की उम्मीदवार पुष्पा सिंह और स्वतंत्र उम्मीदवार बालयोगी बाबा बालकनाथ की अहम भूमिका रही. जहां बालकनाथ को 9,731 वोट मिले, वहीं चौथे नंबर पर रहीं पुष्पा सिंह को 9,338 वोट मिले.
इस सीट से आम आदमी पार्टी के नरेश यादव 2025 ओर 2020 में विधायक बने थे. लेकिन इस बार चुनाव से ठीक पहले 31 जनवरी 2025 को उन्होंने पार्टी से इस्तीफ़ा दे दिया.
इस सीट पर बेहद कड़ा मुक़ाबला देखा गया और बीजेपी को 1,168 वोटों के अंतर से जीत हासिल हुई.
बीजेपी के सूर्य प्रकाश खत्री को कुल 55,941 वोट मिले और उन्होंने आम आदमी पार्टी के सुरिन्दर पाल सिंह को मात दी.
इस सीट पर कांग्रेस के लोकेन्द्र कल्याण सिंह को कुल 8,361 वोट मिले हैं.
2020 में ये सीट आम आदमी पार्टी के दिलीप पांडे के नाम गई थी. उस वक्त उन्होंने इस सीट से सुरिन्दर पाल सिंह को मात दी थी जो बीजेपी के टिकट पर यहां से चुनाव लड़ रहे थे.
इस बार चुनाव से पहले दिसंबर में सुरिन्दर पाल सिंह बीजेपी छोड़ आम आदमी पार्टी में शामिल हुए थे. दिलीप पांडेय ने चुनाव न लड़ने का ऐलान किया था जिसके बाद उन्हें यहां से टिकट दिया गया.
इस सीट पर बीजेपी की जीत का अंतर केवल 1,231 वोटों का रहा.
यहां से दिल्ली म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन में काउंसिलर रहे बीजेपी के उमंग बजाज ने आम आदमी पार्टी के मौजूदा विधायक दुर्गेश पाठक को हराया.
कांग्रेस की तरफ़ से पहली बार चुनावी रण में उतरे विनीत यादव को इस सीट पर कुल 4,015 वोट मिले.
2020 में इस सीट से राघव चड्ढा को जीत मिली थी. 2022 में उन्हें पार्टी ने राज्यसभा भेजा जिसके बाद ये सीट खाली हो गई.
इस सीट पर हुए उप चुनाव में दुर्गेश पाठक ने जीत हासिल कर, एक बार फिर इसे आम आदमी पार्टी के खाते में ही बनाए रखा था.
इस सीट पर मुक़ाबला बेहद दिलचस्प रहा, यहां जीत का मार्जिन सबसे कम यानी मात्र 344 वोटों का रहा.
बीजेपी के चंदन कुमार चौधरी को कुल 54,049 वोट मिले, जबकि उनसे केवल 344 वोट पीछे रहे आम आदमी पार्टी के मौजूदा सांसद दिनेश मोहनिया.
दिनेश बीते तीन बार से इस सीट से जीतते रहे हैं, लेकिन इस बार उन्हें हार का मुंह देखना पड़ा है.
इस सीट पर कांग्रेस का बड़ा रोल रहा. पार्टी के हर्ष चौधरी ने 15,863 वोट अपने नाम किए और तीसरे नंबर पर रहे.
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