चार्ल्स शोभराज का तिहाड़ जेल में कैसे चलता था सिक्का और कैसे वो वहां से भाग निकला?
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आठ मई 1981 को तिहाड़ जेल के प्रवक्ता और क़ानूनी सलाहकार रहे सुनील कुमार गुप्ता अपना एएसपी का नियुक्ति पत्र लिए जेल अधीक्षक बीएल विज के दफ़्तर पहुँचे.
तिहाड़ की नौकरी मिलते ही उन्होंने उत्तर रेलवे की अपनी नौकरी से त्यागपत्र दे दिया था. उस समय उनकी उम्र थी मात्र 24 वर्ष.
रेलवे ने उन्हें सात मई को रिलीव कर दिया था और अगले ही दिन वो नई नौकरी ज्वाइन करने तिहाड़ जेल पहुँच गए थे.
सुनील गुप्ता याद करते हैं, “जेल अधीक्षक बीएल विज ने मुझ पर एक नज़र डाली और कहा- यहाँ एएसपी की कोई नौकरी नहीं है. मैं ये सुनकर दंग रह गया. मैंने उन्हें बताने की कोशिश की कि मेरे हाथ में नियुक्ति पत्र है. उन्होंने उल्टा मुझसे कहा कि आपको रेलवे की नौकरी छोड़ने से पहले उनसे पूछ लेना चाहिए था. मैं बाहर चला आया. बाहर बैठकर मैं सोच रहा था कि क्या किया जाए.”
वो बताते हैं कि इसी दौरान उनकी नज़र कोट और टाई पहने एक शख़्स पर पड़ी. सुनील गुप्ता को उसका नाम नहीं पता था, लेकिन उसका व्यक्तित्व इतना प्रभावशाली था कि वो उसे देखते ही उठ कर खड़े हो गए.
सुनील गुप्ता आगे बताते हैं, “उसने मुझसे अंग्रेज़ी में मेरे वहाँ आने का मक़सद पूछा. मैंने उसे सारी बात बताई. उसने कहा, चिंता मत करो. मैं तुम्हारी मदद करूँगा. ये कह कर वो विज के दफ़्तर के अंदर चला गया.”
“एक घंटे के बाद वो एक पत्र लिए बाहर आया, जिसमें लिखा था कि मुझे तिहाड़ में एएसपी नियुक्त कर दिया गया है. उसे मेरे हवाले कर वो चला गया. मैं जानना चाहता था कि इतना प्रभावशाली शख़्स कौन था. मैंने एक व्यक्ति से उसके बारे में पूछा. उसका जवाब था, ये चार्ल्स शोभराज हैं. जेल के सुपर आईजी. यहाँ सब इनकी मर्ज़ी से ही चलता है.”
अशोका होटल में जवाहरात की दुकान में चोरी
गुरमुख चार्ल्स शोभराज का जन्म 6 अप्रैल, 1944 को वियतनाम के सैगोन में हुआ था.
उसकी माँ वियतनामी मूल की थीं, जबकि उसके पिता भारतीय सिंधी थे. उसके पिता ने चार्ल्स और उसकी माँ को उसके हाल पर छोड़ दिया था.
डेविड मॉरिसी शोभराज की जीवनी ‘द बिकिनी किलर’ में लिखते हैं, “अप्रिय बाल जीवन बिताने के बाद चार्ल्स की मुलाक़ात पेरिस की एक महिला चैंटल कॉमपैगनन से हुई थी. जिस दिन उसकी चैंटल से शादी होने वाली थी, उसी दिन उसको चोरी की एक कार चलाने के आरोप में पुलिस ने गिरफ़्तार कर लिया था.”
भारत में चार्ल्स की गिरफ़्तारी पहली बार 1971 में मुंबई में हुई थी. दिल्ली में उसने अशोका होटल की जवाहरात की दुकान से क़ीमती रत्न चुराए थे.
ये वारदात उसने अशोका होटल में तब की थी, जब अमेरिका के तत्कालीन विदेश मंत्री हेनरी किसिंजर भारत आए हुए थे और अशोका होटल में ही ठहरे हुए थे.
चार्ल्स को गिरफ़्तार करने वाले मधुकर ज़ेंडे बताते हैं, “चार्ल्स ने वहाँ की कैबरे डांसर से दोस्ती कर उससे कहा कि वो उससे शादी करना चाहता है. उसने जवाहरात की दुकान के मालिक से कहा कि वो नेपाल का राजकुमार है. तुम अपने रत्नों को दिखाने के लिए मेरे कमरे में भेजो. जब उसका आदमी रत्नों के साथ कमरे में आया, तो उसने उसकी कॉफ़ी में नशीली दवा मिला कर उसे बेहोश कर दिया.”
“उसके बाद वो उसके सारे हीरे लेकर भाग गया. जब जवाहरात की दुकान के मालिक ने देखा कि उसका आदमी बहुत देर तक वापस नहीं आया है, तो वो ऊपर आया. वहाँ उसने देखा कि कमरे का दरवाज़ा बंद था. जब डुप्लीकेट चाबी से होटल का कमरा खोला गया, तो हीरे की दुकान का व्यक्ति वहाँ बेहोश मिला. चार्ल्स ग़लती से अपना पासपोर्ट भूल गया था, जिस पर चार्ल्स शोभराज नाम लिखा हुआ था.”
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तिहाड़ जेल में शोभराज का साम्राज्य
चार्ल्स को जल्द ही गिरफ़्तार कर लिया गया. लेकिन दिल्ली पुलिस बहुत दिनों तक चार्ल्स को अपने कब्ज़े में नहीं रख पाई.
उसने पेट में दर्द का बहाना बनाया और वेलिंगटन अस्पताल में पुलिस को चकमा देकर वहाँ से भाग निकला.
चार्ल्स को आख़िरकार 1976 में गिरफ़्तार किया गया, जब उसने दिल्ली के विक्रम होटल मे फ़्रेंच पर्यटकों को उनका पासपोर्ट हथियाने की मंशा से नशीली दवा पिला दी.
उसकी ये योजना काम नहीं आई और फ़्रेंच पर्यटकों को समय से पहले होश आ गया. चार्ल्स को गिरफ़्तार कर दिल्ली की तिहाड़ जेल में लाया गया.
तिहाड़ भारत की सबसे कुख्यात जेलों में से एक थी. जल्द ही चार्ल्स शोभराज ने इस जेल में अपना साम्राज्य बना लिया.
सुनील गुप्ता याद करते हैं, “चार्ल्स को कभी कोठरी में बंद नहीं किया जाता था. उसको अक्सर प्रशासनिक दफ़्तर में बैठे देखा जाता था. मेरे दोस्त मुझे अक्सर उसके कारनामों के बारे में बताते थे. उनको ये अंदाज़ा नहीं था कि मुझे भी उसकी वजह से एक बार फ़ायदा हुआ था.”
“वो जहाँ भी चाहता जा सकता था. वो जेल अधीक्षक और उनके मातहतों को अपने बराबर समझता था. उसके पास एक टेप रिकॉर्डर था जिसमें उसने जेल अफ़सरों की घूस माँगने का अनुरोध टेप कर रखा था.”
‘चार्ल्स साहब’ के नाम से मशहूर
चार्ल्स की जेल के बारे में बताते हुए सुनील गुप्ता कहते हैं, “शोभराज 10 गुणा 12 फ़ीट के सेल में अकेले रहता था. उसको जेल में सी क्लास के क़ैदी नौकर के तौर पर मिले हुए थे, जो उसकी मालिश करते, उसके कपड़े धोते और उसका खाना तक बनाते.”
“उसकी सेल में किताबों से भरी एक शेल्फ़ थी. उसको एक पलंग, मेज़ और बैठने के लिए कुर्सी भी दी गई थी. उसका सेल एक स्टूडियो अपार्टमेंट की तरह लगता था. वो क़ैदियों और जेल स्टाफ़ की तरफ़ से याचिकाएँ लिखा करता था.”
“उसकी लिखी याचिकाओं का असली वकीलों की लिखी याचिका से अधिक असर हुआ करता था. अगर क़ैदियों को पैसे की ज़रूरत होती थी, तो शोभराज वो भी उन्हें उपलब्ध कराता था. यही वजह थी कि वो अपने आप को क़ैदियों और जेल स्टाफ़ दोनों का नेता समझता था.”
तिहाड़ में चार्ल्स का इतना रौब था कि लोग उसे ‘चार्ल्स साहब’ कह कर पुकारते थे.
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जेल अधीक्षक की शह
इंडियन एक्सप्रेस ने सितंबर, 1981 में एक ख़बर छापी थी कि तिहाड़ जेल में चार्ल्स शोभराज का सिक्का चलता है.
उसी साल पीपुल्स यूनियन ऑफ़ सिविल लिबर्टीज़ (पीयूसीएल) की रिपोर्ट में कहा गया था कि जेल के अंदर शोभराज और उसके दोस्तों ने अपने अड्डे बना रखे हैं, जहाँ से वो अपना कामकाज चलाते हैं.
“अगर कोई उनका विरोध करता है, तो शोभराज और उसके दोस्त पीटने तक से पीछे नहीं हटते. शोभराज के दोस्तों में बैंक डकैती करने वाले सुनील बत्रा, विपिन जग्गी और रवि कपूर थे. ये सभी अच्छे परिवारों से आते थे और शिक्षित थे.”
दिल्ली उच्च न्यायालय ने राकेश कौशिक मामले में चार्ल्स शोभराज का नाम लिए बिना एक विदेशी क़ैदी का ज़िक्र किया था, जिसे इंटरपोल को तलाश थी.
हाई कोर्ट के अवलोकन में कहा गया था, “इस विदेशी को जेल अधीक्षक और उप जेल अधीक्षक की शह मिली हुई है. उसे रोज़ उनके दफ़्तर से सटे हुए कमरों में बाहरी लोगों से मिलते हुए देखा जा सकता है. उप अधीक्षक इस क़ैदी को अपने कमरे में यौन संबंध बनाने की अनुमति भी दे देते हैं.”
“ज़ाहिर है इस तरह की सुविधाएँ उपलब्ध कराने के लिए जेल अधीक्षक और उनके मातहत इस क़ैदी से भारी क़ीमत वसूल करते हैं. ये विदेशी क़ैदी अपनी दो पुस्तकों के प्रकाशन के बाद और अमीर हो गया है.”
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ज्ञानी ज़ैल सिंह तिहाड़ में शोभराज से मिले
उस ज़माने में शिरीन वॉकर चार्ल्स शोभराज की गर्लफ़्रेंड हुआ करती थीं. उसने उसको भारत बुला रखा था. जब वो दिल्ली में होती थी, तो यहाँ के पाँच सितारा होटल में ठहरती थी.
पीयूसीएल की रिपोर्ट में कहा गया था कि ‘शिरीन वॉकर ने लगातार छह दिनों तक पुलिस अधीक्षक के कमरे में चार्ल्स शोभराज से घंटों मुलाक़ात की थी.’
जब शोभराज के बारे में इंडियन एक्सप्रेस में ख़बर छपी, तो तत्कालीन गृह मंत्री ज्ञानी ज़ैल सिंह ने अचानक देर रात तिहाड़ जेल का दौरा करने का फ़ैसला किया.
सुनील गुप्ता याद करते हैं, “एक सितंबर को शाम साढ़े सात बजे एक गार्ड ने दौड़ कर मुझे ख़बर दी कि गृह मंत्री आए हुए हैं. क्या मैं उन्हें अंदर आने दूँ?”
“आज ये बात सुन कर हास्यास्पद लग सकती है लेकिन ये बताता है कि तिहाड़ के हर गार्ड के अंदर ये बात घर कर दी गई थी कि किसी को भी जेल प्रशासन की अनुमनि के बिना जेल के अंदर न घुसने दिया जाए. मुझे ये जान कर अचंभा हुआ कि उसने भारत के गृह मंत्री को बाहर इंतज़ार करने के लिए कह दिया था.”
वो आगे बताते हैं, “मैं भाग कर गेट पर पहुँचा. गृह मंत्री ने मुझसे कहा कि मैं उन्हें चार्ल्स शोभराज के सेल में ले चलूँ. शोभराज से मिलते ही उन्होंने उससे हिंदी में पूछा, तुम कैसे हो? तुम्हें यहाँ कोई तकलीफ़ तो नहीं? मैंने इसका अनुवाद कर शोभराज को बता दिया. शोभराज ने अंग्रेज़ी में जवाब दिया कि वो बिल्कुल ठीक-ठाक है और उसे कोई शिकायत नहीं है.”
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सुनील गुप्ता का निलंबन
सुनील गुप्ता बताते हैं, “जब मैं ज्ञानीजी को अगले वार्ड में ले गया, तो वहाँ दो क़ैदियों भज्जी और दीना ने अचानक ‘चाचा नेहरू ज़िंदाबाद’ चिल्लाना शुरू कर दिया.”
“जब ज्ञानीजी का सचिव उन्हें अलग ले गया तो उन्होंने उन्हें बताया, ‘यहाँ सब कुछ मिलता है, नशीली दवाएँ, शराब और जो कुछ भी वो चाहें सब कुछ.’ अगले दिन अख़बार में ख़बर छपी कि क़ैदियों ने मंत्री के सचिव को ये दिखाने के लिए शराब की एक ख़ाली बोतल दिखाई कि यहाँ इसको पाना कितना आसान है.”
“इस घटना के दो दिन बाद गृह मंत्रालय ने तिहाड़ जेल के छह अधिकारियों को निलंबित कर दिया. उनमें से एक मैं भी था. जब मैंने इसका विरोध किया कि उन क़ैदियों के मंत्री के सामने आने के लिए मैं ज़िम्मेदार नहीं हूँ, तो डेढ़ माह बाद मुझे नौकरी पर बहाल कर दिया गया.”
सुनील गुप्ता के निलंबन के दौरान चार्ल्स शोभराज उनसे निरंतर संपर्क में रहा. उसने उन्हें आर्थिक सहायता देने की भी पेशकश की, जिसे गुप्ता ने स्वीकार नहीं किया.
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तिहाड़ जेल से भागा
16 मार्च, 1986 को रविवार के दिन चार्ल्स शोभराज तिहाड़ जेल के सारे सुरक्षाकर्मियों को चकमा देते हुए जेल से भाग निकला.
इस बारे में सबसे पहले शोर मचाया सिपाही आनंद प्रकाश ने. जब वो जेल के पास बने क्वार्टर में पहुँचा, तो उसने मोटे कपड़े से अपना मुँह ढँका हुआ था. जब उसने उप अधीक्षक के दफ़्तर की घंटी बजाई तो उसके मुँह से कोई शब्द नहीं निकल रहा था.
उसके मुँह से सिर्फ़ ये शब्द निकला- दौड़िए, तुरंत.
बाद में जेल नंबर तीन के सहायक सब इंस्पेक्टर वीडी पुष्करणा ने बताया, “जेल के सारे गेट खुले हुए थे. पूरा जेल स्टाफ़, जिनमें गेटकीपर, सुरक्षा स्टाफ़ और यहाँ तक कि ड्यूटी अफ़सर शिवराज यादव या तो सो रहे थे या भौंचक्के खड़े हुए थे. जेल के गेट की चाबियाँ अपने निर्धारित स्थान पर नहीं थीं.”
तमिलनाडु पुलिस के जवानों को तिहाड़ जेल में इसलिए तैनात किया गया था कि वो उत्तर भारतीय अपराधियों से अधिक मेलजोल नहीं बढ़ाएँगे. लेकिन वे भी बेहोश पड़े हुए थे.
तिहाड़ जेल के 900 क़ैदियों में से 12 क़ैदी उस दिन जेल से भाग निकले थे.
मिठाई में नशीली दवा
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सुनील गुप्ता याद करते हैं, “उस दिन मैं घर पर दूरदर्शन पर एक फ़िल्म देख रहा था. तभी दूरदर्शन ने फ़िल्म रोक कर घोषणा की कि तिहाड़ जेल से चार्ल्स शोभराज भाग निकला है. मैं तुरंत जेल पहुँच गया. ध्यान देने योग्य बात ये थी कि हर बेहोश सिपाही के हाथ में 50 रुपए का नोट फँसा हुआ था.”
“इससे ये अंदाज़ा लगाया गया कि शोभराज ने अपना जन्मदिन मनाने के बहाने पहले सिपाहियों को 50 रुपये का लालच दिया और फिर उन्हें नशीली दवाओं से भरी मिठाई खिला दी.”
सुनील गुप्ता के मुताबिक़ ‘दिल्ली के उप पुलिस आयुक्त अजय अग्रवाल ने पत्रकारों को बताया कि दो लोगों ने तिहाड़ जेल में आकर एक क़ैदी का जन्मदिन मनाने के लिए क़ैदियों के बीच फल और मिठाई बाँटने का अनुरोध किया था. जब वार्डन शिवराज यादव ने ये अनुमति दे दी, तो उन्होंने यादव और पाँच अन्य गार्डों को दवा युक्त मिठाई खिलाई थी. मिठाई खाते ही ये सब बेहोश हो गए थे और कुछ घंटों के बाद ही उन्हें होश आया था.’
वो आगे बताते हैं, “जाँच करने पर पचा चला कि एक ब्रिटिश नागरिक डेविड हॉल को कुछ ही दिन पहले तिहाड़ से रिहा किया गया था. उसे नशीली दवाओं की तस्करी के आरोप में गिरफ़्तार किया गया था. शोभराज से उसकी दोस्ती हो गई थी, क्योंकि शोभराज ने उसकी ज़मानत याचिका लिखने में उसकी मदद की थी.”
“रिकॉर्ड की जाँच करने से पता चला कि शोभराज के भागने से पहले हॉल उससे मिला था और उसने एक पैकेट उसके हवाले किया था. हॉल को सिर्फ़ 12 हज़ार रुपये में ज़मानत मिल गई थी. आम अपराधी ज़मानत मिलते ही अपने घर की राह लेते थे, लेकिन हॉल ने तिहाड़ वापस आकर शोभराज के भाग निकलने में मदद की.”
“तिहाड़ जेल के बाहर एक गाड़ी शोभराज का इंतज़ार कर रही थी. वो अपने साथ तिहाड़ जेल के सिपाही का भी अपहरण करके ले गया था, ताकि वहाँ तैनात तमिलनाडु पुलिस के जवानों को लगे कि पुलिस की सहमति से शोभराज जेल के बाहर जा रहा है.”
गोवा में गिरफ़्तारी
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एक रिपोर्ट के अनुसार शोभराज ने ‘लार्पोज़’ (नींद की टैबलेट) की 820 गोलियों का इस्तेमाल मिठाई में मिलाने के लिए किया था.
घटना के बाद दिल्ली के उप राज्यपाल एचकेएल कपूर और पुलिस आयुक्त वेद मारवाह ने तिहाड़ जेल का दौरा किया था और वीडी पुष्करणा और दूसरे पाँच अधिकारियों की गिरफ़्तारी के आदेश दिए थे.
लेकिन शोभराज सिर्फ़ 23 दिन ही तिहाड़ जेल के बाहर रह सका. उसे बंबई पुलिस के इंस्पेक्टर मधुकर ज़ेंडे ने गोवा के एक रेस्तराँ से गिरफ़्तार किया.
उन्हें टेलिफ़ोन एक्सचेंज से सुराग मिला कि शोभराज वहाँ के ओकोकेरा रेस्तराँ में आ सकता है.
ज़ेंडे याद करते हैं, “छह अप्रैल की रात साढ़े दस बजे भारत-पाकिस्तान का हॉकी मैच टीवी पर चल रहा था. होटल का एक बड़ा अहाता था. अंदर एक इनर रूम था. हम इनर रूम में बैठे हुए थे.”
“मैंने देखा कि गेट के बाहर से दो आदमी टैक्सी से उतरे. उन्होंने सन हैट पहनी हुई थी. मैंने सोचा इतनी रात में ये सन हैट क्यों पहने हुए हैं? जब वो आगे आया तो मैंने देखा कि ये तो चार्ल्स शोभराज जैसा दिख रहा है. उसके साथ उसका दोस्त डेविल हॉल भी था. उसको देख कर मेरी छाती धक-धक करने लगी.”
ज़ेंडे आगे बताते हैं, “मैं अचानक अपनी जगह से उठा और पीछे से उसका पेट पकड़ कर चिल्लाया, ‘चार्ल्स.’ उसने जवाब दिया ‘हू चार्ल्स ?’ मैंने कहा, ‘यू आर ब्लडी चार्ल्स शोभराज.’ उसने कहा ‘आर यू क्रेज़ी?’ मैंने कहा, ‘आई एम सेम ज़ेंडे हू कॉट यू इन 71.’ ये बोलने के बाद उसकी हिम्मत टूट गई.”
“हम कोई हथकड़ी वगैरह तो लेकर नहीं गए थे. हमने होटल वाले से कहा कि आपके पास जितनी रस्सी वगैरह हो, हमें उपलब्ध कराए. हमने उसे रस्सी से बाँध दिया और कमिश्नर को फ़ोन किया कि हमने चार्ल्स को पकड़ लिया है.”
शोभराज को हथकड़ियों और बेड़ियों में रखा गया
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ज़ेंडे से शोभराज की कस्टडी दिल्ली पुलिस के डिप्टी कमिश्नर अमोद कंठ ने ली और वो उसे एक विशेष विमान से दिल्ली ले आए.
जेल से भागने के कारण शोभराज की जेल की सज़ा बढ़ गई. उसका थाईलैंड प्रत्यर्पण रुक गया, जहाँ हत्याओं के मामले में उसे शर्तिया मौत की सज़ा मिलती.
तिहाड़ जेल वापस आने के बाद उसकी सारी आज़ादी ख़त्म कर दी गई.
उसे दूसरे क़ैदियों से अलग-थलग कर हथकड़ियों और बेड़ियों में रखा जाने लगा और बिना किसी सुरक्षाकर्मी के उसके कहीं जाने पर रोक लगा दी गई. लेकिन वो अदालत जाने के दौरान तब भी बाहरी लोगों से मिलता रहा.
इंडिया टुडे ने सितंबर, 1986 के अंक में लिखा, “चार्ल्स ज़्यादा से ज़्यादा समय अदालत में बिताना चाहता है ताकि उसे बेड़ियाँ पहनने से मुक्ति मिल सके. वो अदालत में न्यायिक हिरासत के दौरान अपनी पसंद का खाना खाने और अपनी वकील स्नेह सेंगर से मिलने और अपने केस से संबंधित फ़ाइलों को देखने की माँग करता है, जो उसे मिलती है.”
“फिर उसका ध्यान उसके लिए पॉलिथीन में लाई गई चिकन बिरयानी की तरफ़ जाता है. फिर वो एक व्यक्ति से कहता है कि वो उसके लिए लिम्का ले आए.”
जेल में इतनी कड़ी सुरक्षा में रहने के बावजूद उसके पास से थोड़ी मात्रा में हशीश बरामद हुई थी. उसको ब्रेड की दो स्लाइसों के बीच रख कर लाया गया था. इसके लिए दो सिपाहियों को पहले निलंबित किया गया था और बाद में नौकरी से निकाल दिया गया था.
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शोभराज की वजह से हुआ किरण बेदी का तबादला
सुनील गुप्ता बताते हैं कि चार्ल्स शोभराज तिहाड़ जेल की आईजी किरण बेदी के तबादले का कारण बना था.
किरण बेदी ने उसे तिहाड़ जेल के लीगल सेल से अटैच कर दिया था. उसको क़ैदियों की याचिकाएँ टाइप करने के लिए एक टाइपराइटर दिया गया था.
इसमें कुछ भी ग़ैर क़ानूनी नहीं था. हालाँकि तबादले का कारण बताया गया कि टाइपराइटर एक विलासिता की वस्तु है और शोभराज उसकी मदद से किताबें लिख कर अपने कारनामों को महिमामंडन कर रहा था.
ये कहकर मैगसेसे पुरस्कार विजेता किरण बेदी का दूसरी जगह तबादला कर दिया गया था.
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नेपाल की जेल में भी काटे 19 साल
तिहाड़ जेल में 20 साल बिताने के बाद 17 फ़रवरी, 1997 को चार्ल्स शोभराज को तिहाड़ जेल से रिहा किया गया.
उस समय उसकी उम्र 53 साल थी.
लेकिन उसकी कठिनाइयों का तब भी अंत नहीं हुआ. उसे छह साल बाद 2003 में नेपाल में फिर गिरफ़्तार कर लिया गया.
21 दिसंबर, 2022 को नेपाल के सुप्रीम कोर्ट ने उसकी रिहाई के आदेश दिए.
उसे वहाँ से फ़्रांस भेज दिया गया, जहाँ वो आज भी रह रहा है.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित