डोनाल्ड ट्रंप के लगाए अमेरिकी टैरिफ़ से बचने के लिए चीनी कंपनियां क्या कर रही हैं?
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अमेरिकी राष्ट्रपति कार्यालय व्हाइट हाउस ने कहा है कि ट्रंप ने दोबारा राष्ट्रपति बनने के बाद शनिवार से मेक्सिको पर 25%, कनाडा पर 25% और चीन पर 10% टैरिफ लगाने की घोषणा की है.
ट्रंप के पहले कार्यकाल में भी चीन और अमेरिका के व्यापारिक संबंधों पर असर पड़ा था, बाइडन के कार्यकाल में भी जो जारी रहा.
हम जानने की कोशिश करेंगे कि अब चीनी उत्पाद पर 10% टैरिफ़ का चीन के उत्पादन उद्योग पर क्या असर पड़ सकता है.
कारोबारियों के बीच चीन-अमेरिका संबंधों की इस अनिश्चितता का क्या असर हो रहा है, इसे जानने के लिए हम सबसे पहले चीन के एक काउबॉय बूट फ़ैक्ट्री में पहुंचे.
चीन के पूर्वी तट पर मौजूद एक कारख़ाने में कंप्रेस्ड (दबाकर रखी गई) हवा की मार से चमड़े को आकार दिया जाता है, इसी की मदद से अमेरिकी काउबॉय बूट अपने असल रूप में दिखता है.
ऊंची छतों के नीचे जैसे ही असेंबली लाइन आगे बढ़ती है, यहां सिलाई, काटने और सोल्डरिंग की आवाज़ें गूंजती हैं.
इस कारख़ाने में 45 साल के सेल्स मैनेजर पेंग, जो पहले अपना नाम उजागर नहीं करना चाहते थे, कहते हैं, “हम हर साल क़रीब दस लाख जोड़ी जूते बेचते थे.”
यह कारोबार तब तक था, जब तक डोनाल्ड ट्रंप अमेरिका के राष्ट्रपति नहीं बने थे.
राष्ट्रपति के तौर पर ट्रंप के पहले कार्यकाल में लगाए गए टैरिफ़ की वजह से दुनिया की दो सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के बीच व्यापार युद्ध छिड़ गया था.
छह साल बाद अब जब ट्रंप दोबारा व्हाइट हाउस में वापस आ गए हैं, तो चीनी कारोबार दोनों देशों के बीच चल रहे कारोबारी युद्ध की अगली कड़ी के लिए ख़ुद को तैयार कर रहा है.
पेंग पूछते हैं, “भविष्य में हमें क्या दिशा अपनानी चाहिए?”
वो इस बात को लेकर अनिश्चित हैं कि ट्रंप का दूसरा कार्यकाल उनके, उनके सहयोगियों और चीन के लिए क्या मतलब रखता है.
कारोबारी जंग
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पश्चिमी बाज़ारों के लिए जो चीन की महत्वाकांक्षाओं से लगातार चिंतित हैं, व्यापार एक ताक़तवर सौदेबाज़ी का ज़रिया बन गया है. ख़ासकर जब सुस्त चीनी अर्थव्यवस्था निर्यात पर ज़्यादा निर्भर करती है.
ट्रंप ने चीन से बने सामान पर 10% शुल्क लगाने की चेतावनी दी थी जो 1 फ़रवरी से लागू हो रही है.
यह सटीक आंकड़ा हासिल करना मुश्किल है कि कितने व्यवसाय चीन से भाग रहे हैं, लेकिन नाइकी, एडिडास और प्यूमा जैसी प्रमुख कंपनियाँ पहले ही वियतनाम में स्थानांतरित हो चुकी हैं.
इससे चीनी कारोबार भी अपने सप्लाई चेन को नया आकार देते हुए आगे बढ़ रहे हैं, हालाँकि चीन अब भी एक प्रमुख खिलाड़ी बना हुआ है.
पेंग ने बताया कि फैक्ट्री के जो मालिक हैं उन्होंने अपने कई प्रतिस्पर्धियों के साथ मिलकर उत्पादन को दक्षिण पूर्व एशिया में स्थानांतरित करने पर विचार किया है.
इससे कंपनी तो बच जाएगी, लेकिन उन्हें अपने कर्मचारी खोने पड़ेंगे. यहां के ज़्यादातर कर्मचारी पास के ही नानटोंग शहर से हैं और 20 साल से ज़्यादा समय से यहाँ काम कर रहे हैं.
पेंग की पत्नी की मृत्यु तब हो गई थी जब उनका बेटा छोटा था. वो कहते हैं कि यह फैक्ट्री उनका परिवार है.
“हमारे मालिक ने कर्मचारियों को अकेला नहीं छोड़ने के लिए दृढ़ संकल्प लिया है.”
वो मौजूदा भू-राजनीति से वाकिफ हैं, लेकिन उनका कहना है कि वह और उनके कर्मचारी सिर्फ़ आजीविका कमाने की कोशिश कर रहे हैं.
वो अभी भी साल 2019 के असर से उबर नहीं पाए हैं, जब ट्रंप के पहले कार्यकाल में टैरिफ़ के चौथे दौर में 15% टैरिफ़ ने चीन में बनी उपभोक्ता वस्तुओं, जैसे कपड़े और जूते पर असर डाला था.
उसके बाद से कारख़ाने को मिलने वाले ऑर्डर कम हो गए हैं और कर्मचारियों की संख्या जो कभी 500 से ज़्यादा थी, अब घटकर 200 रह गई है.
दुनिया का सबसे बड़ा निर्माता
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इसका सबूत खाली पड़े वर्क स्टेशन से मिलता है, जिसकी तरफ पेंग इशारा करते हैं.
उनके चारों ओर, कारीगर चमड़े को सही आकार में काट रहे हैं ताकि उसे मशीन चलाने वालों को सौंप सकें.
चमड़े की कटाई सही होनी चाहिए क्योंकि ग़लती महंगे चमड़े को बर्बाद कर सकती है, जिनमें से अधिकांश अमेरिका से आयात किए गए हैं.
यह फ़ैक्ट्री लागत कम रखने की कोशिश कर रही है, क्योंकि उनके कुछ अमेरिकी ख़रीदार पहले से ही चीन से अपना कारोबार हटाने और टैरिफ़ के ख़तरे पर विचार कर रहे हैं.
लेकिन इसका अर्थ यह होगा कि कुशल कामगारों को खोना होगा. इससे चमड़े को समतल करने से लेकर तैयार जूतों को अंतिम रूप से पॉलिश करने और निर्यात के लिए पैक करने तक, एक जोड़ी जूते बनाने में एक सप्ताह तक का समय लग सकता है.
यही वह बात है जिसने चीन को दुनिया का सबसे बड़ा निर्माता बना दिया. श्रम आधारित उत्पादन जो कि बड़े पैमाने पर होने की वजह से सस्ता भी है और एक बेहतरीन सप्लाई चेन पर आधारित है और जिसे बनने में कई साल लगे हैं.
साल 2015 से फ़ैक्ट्री में काम कर रहे पेंग कहते हैं, “पहले सामान की जांच और उसे बाहर भेजना लगातार जारी रहता था. मैं संतुष्ट महसूस करता था. लेकिन अब ऑर्डर कम हो गए हैं, जिससे मैं काफी खोया हुआ और चिंतित महसूस करता हूं.”
काउबॉय बूट वाइल्ड वेस्ट (पश्चिमी अमेरिका) को जीतने के लिए अग्रिम पंक्ति के सैनिकों के लिए बनाए गए थे. ये काउबॉय बूट अब एक दशक से भी ज़्यादा समय से यहाँ बनाए जा रहे हैं.
यह चंग्सू प्रांत के दक्षिण में एक पहचान है, जो यांग्त्ज़ी नदी के किनारे एक उत्पादन केंद्र है. जहाँ कपड़ों से लेकर इलेक्ट्रिक वाहनों तक लगभग हर चीज़ का उत्पादन होता है.
‘टैरिफ़’ चीन के ख़िलाफ़ अमेरिका का सबसे बड़ा हथियार
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ये उन अरबों डॉलर के सामान में से एक है, जो चीन हर साल अमेरिका को निर्यात करता है. यह संख्या लगातार बढ़ती गई, क्योंकि अमेरिका चीन का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार बन गया.
ट्रंप के पहले कार्यकाल में यह दर्जा ख़त्म हो गया. लेकिन उनके बाद आए जो बाइडन के कार्यकाल में इसे बहाल नहीं किया जा सका. चीन के साथ बिगड़ते संबंधों के बीच बाइडन ने ट्रंप के दौर के अधिकांश टैरिफ़ को बरकरार रखा.
वास्तव में यूरोपीय संघ ने भी इलेक्ट्रिक वाहनों के आयात पर शुल्क लगाया है. ईयू ने चीन पर आरोप लगाया है कि वह अक्सर सरकारी सब्सिडी के सहारे बहुत ज़्यादा उत्पादन कर रहा है.
ट्रंप ने भी यही कहा है कि चीन की ‘अनुचित’ कारोबारी व्यवस्था से विदेशी प्रतिस्पर्धियों को नुक़सान होता है.
चीन इस तरह की बयानबाज़ी को अपने विकास को रोकने के पश्चिमी प्रयासों के रूप में देखता है, और उसने बार-बार अमेरिका को चेतावनी दी है कि व्यापार युद्ध में किसी की जीत नहीं होगी.
लेकिन चीन ने यह भी कहा है कि वह बातचीत करने और “मतभेदों को उचित तरीके से दूर करने” के लिए तैयार है.
राष्ट्रपति ट्रंप, जिन्होंने टैरिफ़ को चीन पर अपनी “एक बड़ी ताक़त” बताया है, वो भी निश्चित रूप से बातचीत करना चाहते हैं.
अभी तक यह स्पष्ट नहीं है कि वो बदले में क्या चाहते हैं. अपने पहले कार्यकाल में वह उत्तर कोरिया के नेता किम जोंग उन से मिलने के लिए शी जिनपिंग की मदद मांगने बीजिंग आए थे.
इस बार ऐसा माना जा रहा है कि यूक्रेन में युद्ध को समाप्त करने के लिए रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के साथ समझौता करने के लिए उन्हें शी के समर्थन की ज़रूरत हो सकती है. उन्होंने हाल ही में कहा कि चीन के पास “इस मामले में बहुत अधिक क्षमता है.”
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चीन पर 10% टैरिफ़ इस यकीन पर आधारित है कि चीन “मेक्सिको और कनाडा को फेंटेनाइल (नशे के लिए इस्तेमाल होने वाली दवा) भेज रहा है”. इसलिए वह मांग कर सकते हैं कि चीन इस सप्लाई को रोकने के लिए और अधिक कदम उठाए.
ट्रंप ने टिकटॉक पर बोली लगाने की होड़ का स्वागत किया है. वो इसके स्वामित्व या ऐप को संचालित करने वाली बेशकीमती तकनीक के लिए बातचीत करना चाह सकते हैं. क्योंकि ऐसी किसी भी बिक्री के लिए चीन की सहमति ज़रूरी है.
चाहे जो भी डील हो इससे अमेरिका-चीन संबंधों को फिर से पटरी पर लाने में मदद मिल सकती है. हालांकि एक डील के न होने से ट्रंप और शी के बीच कहीं अधिक टकरावपूर्ण संबंध बन सकते हैं.
चीन में अमेरिकन चैंबर ऑफ कॉमर्स के वार्षिक सर्वेक्षण से पता चला है कि उनमें से आधे से अधिक लोग अमेरिका-चीन संबंधों के और अधिक बिगड़ने को लेकर चिंतित हैं.
चीन के मामले में ट्रंप का नरम रुख़ कुछ राहत देता है. लेकिन उन्हें अभी भी उम्मीद है कि टैरिफ़ के ख़तरे से ख़रीदारों को चीन से दूर जाने और विनिर्माण को वापस अमेरिका में लाने में मदद मिलेगी.
इस मामले में कुछ चीनी कंपनियां सचमुच आगे बढ़ रही हैं, लेकिन अमेरिका की ओर ऐसा नहीं कर रही हैं.
चीनी फ़ैक्ट्रियों का पलायन
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व्यवसायी हुआंग झाओदोंग ने कंबोडिया की राजधानी नाम पेन्ह के पास अमेरिकी दिग्गज कंपनियों वॉलमार्ट और कॉस्टको से आने वाले भारी ऑर्डरों को पूरा करने के लिए एक नया कारख़ाना बनाया है.
यह कंबोडिया में उनकी दूसरी फैक्ट्री है, जिनमें शर्ट से लेकर अंडरवियर तक हर महीने पाँच लाख कपड़े बनते हैं.
अब जब संभावित अमेरिकी ग्राहक पहला सवाल पूछते हैं, जिसकी उन्हें उम्मीद होती है कि वो कहां रहते हैं, तो हुआंग के पास इसका जवाब होता है- चीन में नहीं.
कुछ चीनी कम्पनियों के मामले में, उनके ग्राहकों ने उनसे कहा है- ”अगर आप अपना उत्पादन विदेश में स्थानांतरित नहीं करेंगे, तो हम आपके ऑर्डर रद्द कर देंगे.”
टैरिफ़ की वजह से सप्लाई करने वालों और खुदरा विक्रेताओं के लिए मुश्किल विकल्प पैदा हो गए हैं, लेकिन यह हमेशा स्पष्ट नहीं होता कि इसका नुक़सान कौन भुगतेगा.
हुआंग कहते हैं कि कभी-कभी इसका नुक़सान ग्राहक को भुगतना पड़ता है.
“मसलन वॉलमार्ट को ही लें. मैं उन्हें 5 डॉलर में कपड़े बेचता हूं, लेकिन वे आमतौर पर इसकी कीमत 3.5 गुना बढ़ा देते हैं. अगर ज़्यादा टैरिफ़ के कारण लागत बढ़ जाती है, तो मैं उन्हें जिस कीमत पर बेचता हूं वह बढ़कर 6 डॉलर हो सकती है.”
लेकिन, उनका कहना है कि आमतौर पर यह सप्लाई करने वालों पर निर्भर करता है. अगर उनकी उत्पादन लाइन चीन में होती, तो उनका अनुमान है कि अतिरिक्त 10% टैरिफ़ उनकी आय को अतिरिक्त आठ लाख डॉलर घटा सकता था.
वो कहते हैं, “यह मेरे मुनाफे़ से कहीं ज़्यादा है. यह बहुत ज़्यादा है और हम यह बोझ नहीं उठा सकते. अगर आप चीन में ऐसी टैरिफ़ शर्तों के तहत कपड़े बना रहे हैं, तो यह चल नहीं सकता.”
चीनी सामानों पर मौजूदा अमेरिकी टैरिफ़ इलेक्ट्रिक वाहनों पर 100% से लेकर स्टील और एल्युमीनियम पर 25% तक है. अब तक कई सबसे ज़्यादा बिकने वाली वस्तुओं को छूट दी गई है, जिसमें टीवी और आईफ़ोन जैसे इलेक्ट्रॉनिक्स शामिल हैं.
लेकिन ट्रंप के 10% का व्यापक टैरिफ़ का फ़ैसला चीन में बनने वाली और अमेरिका को निर्यात की जाने वाली हर चीज़ की कीमत पर असर डालेगा. यह बहुत सी चीज़ों पर लागू होता है, जिनमें खिलौनों और चाय के कप से लेकर लैपटॉप तक शामिल है.
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हुआंग कहते हैं कि इससे अन्य फैक्ट्रियों को दूसरी जगह शिफ़्ट करने की प्रक्रिया को बढ़ावा मिलेगा.
उनके आस-पास कई नए कारख़ाने खुल गए हैं और शांदोंग, झेजियांग, चंग्सू और ग्वांगडोंग जैसे कपड़ा उत्पादन के गढ़ों से चीनी कंपनियाँ सर्दियों के जैकेट और ऊनी कपड़े बनाने के लिए यहाँ आ रही हैं.
कारोबार का विश्लेषण करने वाले रिसर्च एंड मार्केट्स ग्रुप की एक रिपोर्ट के अनुसार, कंबोडिया में लगभग 90% कपड़ा कारख़ाने अब चीनी द्वारा संचालित या चीनी स्वामित्व वाले हैं.
कंबोडिया के विदेशी निवेश का आधा हिस्सा चीन से आता है. चीनी सरकारी मीडिया के अनुसार कंबोडिया में 70 फ़ीसदी सड़कें और पुल चीन से मिले कर्ज़ से बनाए गए हैं.
यहां रेस्तरां और दुकानों पर लगे कई साइनबोर्ड चीनी और स्थानीय भाषा खमेर में भी हैं. यहां तक कि चीनी राष्ट्रपति के सम्मान में एक रिंग रोड भी है जिसका नाम शी जिनपिंग बुलेवार्ड रखा गया है.
हालांकि कंबोडिया इसका अकेला लाभार्थी नहीं है. चीन ने राष्ट्रपति शी जिनपिंग की बेल्ट एंड रोड पहल के तहत दुनिया के विभिन्न हिस्सों में भारी निवेश किया है – यह एक व्यापार और बुनियादी ढांचे से जुड़ी परियोजना है जो चीन के प्रभाव को भी बढ़ाती है.
इसका मतलब यह है कि चीन के पास विकल्प हैं.
चीनी सरकारी मीडिया का दावा है कि चीन का आधे से अधिक आयात और निर्यात अब बेल्ट एंड रोड देशों से होता है, जिनमें से अधिकांश दक्षिण पूर्व एशिया में हैं.
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चीनी कम्पनियों को टैरिफ़ से निपटने के बारे में सलाह देने वाले ‘एलिक्सपार्टनर्स’ के केनी याओ कहते हैं कि यह सब रातों-रात नहीं हुआ है.
केनी याओ ने बीबीसी को बताया कि ट्रंप के पहले कार्यकाल के दौरान कई चीनी कंपनियों ने उनके टैरिफ़ ख़तरे पर संदेह जताया था. अब वे पूछ रहे हैं कि क्या ट्रंप सप्लाई चेन पर भी नज़र डालेंगे और अन्य देशों पर भी टैरिफ़ लगाएंगे.
याओ कहते हैं कि अगर ऐसा होता है, तो चीनी व्यवसायों के लिए दूर के क्षेत्रों पर ध्यान देना बुद्धिमानी होगी. “उदाहरण के लिए, अफ्रीका या लैटिन अमेरिका. यह ज़्यादा मुश्किल है, लेकिन उन क्षेत्रों पर ध्यान देना अच्छा है, जिन पर आपने पहले ध्यान नहीं दिया है.”
चूंकि अमेरिका पहले ख़ुद के हितों पर ध्यान देने का वचन दे रहा है, इसलिए चीन एक स्थिर व्यापारिक साझेदार दिखने के लिए अपनी पूरी कोशिश कर रहा है, और इसके कुछ प्रमाण भी हैं कि यह कोशिश कामयाब हो रही है.
सिंगापुर स्थित इसियास यूसुफ-इशाक थिंक टैंक के एक सर्वेक्षण के अनुसार, दक्षिण पूर्व एशिया के देशों के लिए चीन, अमेरिका को पीछे छोड़कर पसंदीदा देश बन गया है.
हालांकि उत्पादन चीन से निकलकर दूसरे देशों में चला गया है, फिर भी इसका पैसा चीन आ रहा है.
नाम पेन्ह में हुआंग के कारख़ानों की ही बात करें तो यहां कपड़ों के लिए बनाई जाने वाली 60% सामग्री चीन से आती है.
इसके अलावा चीन का निर्यात भी बढ़ रहा है, क्योंकि वह सोलर पैनल से लेकर आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस तक उच्च-स्तरीय विनिर्माण में भारी निवेश कर रहा है.
चीन के निर्यात में हर साल 6% की वृद्धि के साथ, पिछले साल दुनियाभर में चीन का निर्यात रिकॉर्ड 992 अरब डॉलर का था.
फिर भी चंग्सू और नोम पेन्ह में चीनी व्यवसाय ख़ुद को अशांत नहीं तो अनिश्चित दौर के लिए तैयार कर रहे हैं.
पेंग को उम्मीद है कि अमेरिका और चीन टैरिफ को “उचित सीमा के भीतर” रखने और व्यापार युद्ध से बचने के लिए “सौहार्दपूर्ण और शांत” चर्चा कर सकते हैं.
उनका कहना है, “अमेरिकियों को अभी भी इन उत्पादों को ख़रीदने की ज़रूरत है.”
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित