भारत का पहला विमान हाइजैक, जिसका पड़ा था 1971 की लड़ाई पर असर
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- Author, रेहान फ़ज़ल
- पदनाम, बीबीसी हिंदी
तारीख़ थी 30 जनवरी और साल था 1971.
श्रीनगर से जम्मू जाने वाले इंडियन एयरलाइंस के फ़ोकर फ़्रेंडशिप विमान ‘गंगा’ पर घबराए से दिख रहे दो युवा भी सवार थे.
वो इतने जवान थे कि लगता था उनकी मूँछें कुछ समय पहली ही उगी हैं.
वर्ष 1971 में रईस लोग ही विमान से यात्रा किया करते थे और यात्रियों की सुरक्षा जाँच सरसरी तौर से ही होती थी.
जब ये दोनों लोग विमान में बैठे, तो काफ़ी नवर्स थे. उसकी एक वजह तो ये थी कि दोनों पहली बार विमान पर यात्रा कर रहे थे और दूसरे वो उस विमान को हाइजैक करने वाले थे.
ठीक 11 बज कर 30 मिनट पर विमान ने टेकऑफ़ कर जम्मू की तरफ़ उड़ना शुरू किया.
अनुषा नंदकुमार और संदीप साकेत अपनी किताब ‘द वॉर दैट मेड आर एंड एडब्लू’ में लिखते हैं, “खिड़की पर बैठे हुए हाशिम क़ुरैशी ने अशरफ़ क़ुरैशी की तरफ़ देखा. दोनों ने सिर हिलाया और धीरे से कलमा पढ़ा. उन्होंने तेज़ी से अपनी सीट बेल्ट खोली, नीचे झुके और अपने बैग से एक पिस्टल और हैंड ग्रेनेड निकाल लिया.”
“हाशिम कॉकपिट की तरफ़ दौड़ा. उसने अपनी पिस्टल की नाल पायलट के सिर के पीछे लगा कर विमान पर नियंत्रण हासिल कर लिया. अशरफ़ कॉकपिट की तरफ़ पीठ कर हाथ में हैंड ग्रेनेड ले कर खड़ा हो गया. जैसे ही यात्रियों ने रोना और चिल्लाना शुरू किया, अशरफ़ ने चिल्ला कर उनसे चुप रहने के लिए कहा. पूरे विमान में सन्नाटा छा गया.”
उस ज़माने में दिल्ली में रॉ के लोदी रोड मुख्यालय में पाकिस्तान में हो रही गतिविधियों पर बारीक नज़र रखी जा रही थी.
पाकिस्तान में सैनिक विद्रोह, याहया ख़ाँ के सत्ता में आने, चुनाव में शेख़ मुजीब-उर रहमान की जीत और सत्ता पाने के लिए जारी बातचीत पर रॉ के प्रमुख रामनाथ काव और उनकी टीम लगातार विश्लेषण कर रही थी.
काव इस बात से चिंतित हो रहे थे कि पश्चिमी और पूर्वी पाकिस्तान के बीच उड़ानों की संख्या बढ़ती जा रही थी.
हाशिम क़ुरैशी की गिरफ़्तारी
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पूर्वी पाकिस्तान पश्चिमी पाकिस्तान से क़रीब 2000 किलोमीटर की दूरी पर था. पूर्वी पाकिस्तान जाने वाले हर पाकिस्तानी विमान को भारत के वायु क्षेत्र से उड़ कर जाना होता था.
रॉ में इस बात पर मंथन चल रहा था कि किसी तरह पाकिस्तानी विमानों का भारतीय वायु क्षेत्र से उड़ना रोका जाए ताकि याहया ख़ाँ की मुश्किलें और बढ़ जाएँ.
इसके लिए दुनिया को एक मज़बूत कारण बताना ज़रूरी था. इसी दौरान काव की डेस्क पर सीमा सुरक्षा बल की एक रिपोर्ट पहुँची.
रिपोर्ट में कहा गया था कि उन्होंने भारतीय सीमा पर हाशिम क़ुरैशी नाम के एक व्यक्ति को गिरफ़्तार किया था, जो देश में हथियार और विस्फोटक लाने की कोशिश कर रहा था.
अनुषा नंदकुमार और संदीप साकेत लिखते हैं, “पूछताछ करने पर हाशिम ने बताया कि वो वर्ष 1969 में अपने चाचा के साथ कुछ दिन बिताने पेशावर गया था. वहाँ उसका परिचय नेशनल लिबरेशन फ़्रंट के संस्थापक मक़बूल बट्ट से करवाया गया.”
“हाशिम को ब्रेनवॉश कर कश्मीर की आज़ादी के लिए काम करने के लिए मना लिया गया. वहाँ पर उसे एनएलएफ़ के शिविरों में हथियार इस्तेमाल करने की ट्रेनिंग दी गई. वहीं उससे एक भारतीय विमान को हाइजैक करने के लिए कहा गया, ताकि पूरी दुनिया में एनएलएफ़ के एजेंडा का प्रचार हो सके.”
“हाशिम ने बीएसएफ़ के अफ़सरों को बताया कि उसे रावलपिंडी में चकलाता हवाईअड्डे ले जाया गया, ताकि उसे अंदाज़ा हो जाए कि फ़ोकर फ़्रेडशिप विमान देखने में कैसा लगता है. वहाँ पाकिस्तानी वायुसेना के पूर्व पायलट जावेद मिंटो ने उसे जहाज़ के बारे में बारीक जानकारी दी. फिर उसे विमान अपहरण के उद्देश्य से हथियार देकर भारत की सीमा पार करा दी गई.”
राजीव गांधी का विमान हाइजैक करने की थी योजना
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भारतीय विमान की हाइजैकिंग का विचार चरमपंथियों को 1969 में कराची हवाईअड्डे पर हुई एक घटना से मिला था, जब इरीट्रियन लिबरेशन फ़ोर्स के तीन सशस्त्र विद्रोहियों ने इथियोपियन एयरलाइंस के विमान पर हमला बोल दिया था.
इस घटना में कोई हताहत नहीं हुआ, लेकिन इरीट्रियन छापामारों को गिरफ़्तार कर उन्हें एक साल की सज़ा सुनाई गई.
अनुषा नंदकुमार और संदीप साकेत लिखते हैं, “बीएसएफ़ के अफ़सरों ने हाशिम से पूछा कि क्या एक विमान हाइजैक करने भर से कश्मीर को आज़ादी मिल जाएगी? हाशिम ने जो जवाब दिया उसे सुन बीएसएफ़ के अधिकारी सकते में आ गए. हाशिम ने कहा, उसे वो विमान हाइजैक करने के लिए कहा गया है जिसे इंदिरा गांधी के बेटे राजीव गांधी उड़ा रहे हों.”
काव का काउंटर-प्लान
राजीव गांधी उस ज़माने में इंडियन एयरलाइंस में पायलट थे और जम्मू-श्रीनगर सेक्टर में विमान उड़ाया करते थे.
काव ने इस जानकारी का फ़ायदा उठाने के लिए एक काउंटर-प्लान बनाया, जिसे प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने अपनी सहमति दी.
रॉ और सीमा सुरक्षा बल ने हाशिम को अपने लिए काम करने को राज़ी कर लिया. हाशिम से ये कहा गया कि उन्हें जेल जाने से बचा लिया जाएगा.
रॉ के एक पूर्व अधिकारी आरके यादव अपनी किताब ‘मिशन आर एंड एडब्लू’ में लिखते हैं, “योजना बनाई गई कि हाशिम क़ुरैशी को इंडियन एयरलाइंस का विमान हाइजैक करने दिया जाएगा.”
“वहाँ से उसे लाहौर ले जाया जाएगा. वहाँ वो यात्रियों के बदले भारतीय जेलों में रह रहे 36 अल फ़तह सदस्यों की रिहाई की मांग करेगा. उससे ये भी कहा गया कि वो तब तक विमान का नियंत्रण पाकिस्तानी प्रशासन को न दें, जब तक उसकी मुलाक़ात पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के चेयरमैन ज़ुल्फ़िकार अली भुट्टो से न करवा दी जाए.”
आरके यादव की किताब के मुताबिक़, “काव ने ही योजना बनाई कि भुट्टो से मुलाक़ात के बाद वो भारतीय विमान में विस्फोट कर उसे नष्ट कर दे ताकि पूरी दुनिया को संदेश जाए कि ये क़दम भारतीय जेलों में रह रहे कश्मीरी चरमपंथी को छुड़ाने के लिए उठाया गया है.”
“इस मिशन को पूरी तरह से गुप्त रखने के लिए क़ुरैशी को बंगलौर में रॉ के एक सेफ़ हाउस में भेजा गया. इस पूरे मामले की जानकारी न तो जम्मू कश्मीर सरकार को दी गई और न ही दूसरी सुरक्षा एजेंसियों को.”
विमान को लाहौर में उतरने की अनुमति
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योजना के तहत हाशिम को सीमा सुरक्षा बल में नौकरी दी गई. उसको एक नियुक्ति पत्र दिया गया, जिसमें कहा गया कि वो अब बंगलौर बटालियन 102 का सदस्य है.
अपने दूसरे साथी के तौर पर उसने अपने एक रिश्तेदार अशरफ़ क़ुरैशी को चुना. उन्हीं दिनों अख़बार में एक असली दिखने वाली पिस्टल का इश्तेहार निकला था, जिससे चोरों को डराया जा सकता था.
हाशिम ने डाक से वो पिस्टल मंगवाई. अशरफ़ ने लकड़ी का हैंड ग्रेनेड बनाया, जिसे उसने मेटेलिक रंग से पेंट कर दिया.
30 जनवरी, 1971 को ये पूरी योजना अमल में लाई गई.
जिस विमान को हाइजैक किया जाना था, वो एक पुराना विमान था जिसे वायुसेना के डिकमिशंड किए जाने के बाद इंडियन एयरलाइंस ने ले लिया था.
जैसे ही विमान हाइजैकिंग की ख़बर ऑल इंडिया रेडियो पर आई, तो पूरे भारत में तहलका मच गया.
विमान ने जब हाशिम के आदेशानुलार रावलपिंडी का रुख़ किया, तो विमान के कैप्टेन एमके कचरू ने हाइजैकर्स को बताया कि विमान में इतना ईंधन नहीं है कि उसे रावलपिंडी तक ले जाया सके.
उनको हर हालत में लाहौर में ही उतरना होगा. तभी लाहौर एयर ट्रैफ़िक कंट्रोल पर कैप्टेन कचरू की आवाज़ गूँजी और उन्होंने तुरंत लैंड करने की अनुमति माँगी.
उच्चतम स्तर पर लिए गए फ़ैसले के बाद विमान को लाहौर में उतरने की अनुमति दे दी गई.
याहया सरकार को इस बात का डर सता रहा था कि अगर पाकिस्तान की वायु सीमा में ईंधन समाप्त होने के कारण भारतीय विमान दुर्घटनाग्रस्त हो जाता है, तो उसकी बहुत बदनामी होगी.
भुट्टो की हाइजैकर्स से मुलाक़ात
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करीब डेढ़ बजे विमान ने लाहौर में लैंड किया. विमान को हवाई अड्डे के एक कोने में पार्क कराया गया. विमान के रुकते ही उसे सुरक्षाकर्मियों ने घेर लिया.
तब तक कुछ मीडियाकर्मी हवाई अड्डे पहुँच चुके थे.
रक्षा विशेषज्ञ प्रवीण स्वामी अपनी किताब ‘इंडिया, पाकिस्तान एंड द सीक्रेट जिहाद: द कोवर्ट वॉर इन कश्मीर’ में लिखते हैं, “जैसे ही विमान रुका, उसके चारों तरफ़ मीडियाकर्मी इकट्ठा हो गए. विमान का दरवाज़ा खुलते ही हाशिम क़ुरैशी सीढियों पर आया.”
उसने वहीं ऐलान किया- हम एनएलएफ़ के अपने 36 भाइयों की तुरंत रिहाई की मांग करते है. अगर ऐसा नहीं होता है, तो हम सभी यात्रियों को मार देंगे. अब जो कुछ भी आगे होना है भारत सरकार के हाथ में है. ये कहकर हाशिम विमान के अंदर चला गया.”
जब हाइजैकिंग की ख़बर आई, तो ज़ुल्फ़िकार अली भुट्टो ढाका में शेख़ मुजीबुर रहमान से दोपहर के खाने पर मिल रहे थे. वे तुरंत लाहौर के लिए रवाना हो गए.
लाहौर हवाई अड्डे पर उतरते ही भुट्टो हाइजैकर्स से मिलने गए. उन्होंने उनकी मांगों को सुना और वहाँ से जाने से पहले उन्हें गले लगाया. उन्होंने उन्हें इस बात के लिए राज़ी कर लिया कि वो विमान के यात्रियों को छोड़ दें.
यात्रियों की रिहाई
जैसी उम्मीद थी, भारत ने एनएलएफ़ के चरमपंथियों को छोड़ने से इनकार कर दिया. उधर हाशिम क़ुरैशी लाहौर हवाई अड्डे पर बेरोकटोक घूम रहा था.
वो टेलिफ़ोन का इस्तेमाल कर रहा था और मीडिया वालों से खुले-आम बात कर रहा था.
आरके यादव लिखते हैं, “दूसरा हाइजैकर अशरफ़ क़ुरैशी विमान के अंदर यात्रियों पर नज़र रखे हुए था. भुट्टो के कहने पर सभी यात्री रिहा कर दिए गए थे. उन्हें लाहौर के पाँच सितारा होटल में रखा गया था.”
“दो दिन बाद उन्हें सड़क मार्ग से हुसैनीवाला बॉर्डर से भारत वापस भेजा गया. दो फ़रवरी की रात 8 बजे उस विमान को सभी लोगों के सामने विस्फोटकों से उड़ा दिया गया. बाद में इस बात की पुष्टि हुई कि विमान को आईएसआई के लोगों ने उड़ाया था.”
“जेल से रिहाई के बाद हाशिम क़ुरैशी ने इस बात को माना. पाकिस्तान सरकार ने शुरू में इन हाइजैकर्स को राजनीतिक शरण दी. भुट्टो ने इस हाइजैकिंग की एक बार भी आलोचना नहीं की, जिससे भारत के इस दावे को बल मिला कि इस हाइजैकिंग के पीछे पाकिस्तान का हाथ था और इसके बारे में भुट्टो को पूरी जानकारी थी.”
पाकिस्तानी विमानों के भारतीय वायु क्षेत्र से उड़ने पर रोक
उधर शेख़ मुजीब ढाका में कह रहे थे कि ये हाइजैकिंग पाकिस्तान ने करवाई है, ताकि पूर्वी पाकिस्तान में चल रहे संकट से सबका ध्यान खींचा जा सके और सत्ता हस्तांतरण में देरी की जा सके.
अब सबकी निगाहें इस बात पर थीं कि भारत का रुख़ क्या होगा?
अनुषा नंदकुमार और संदीप साकेत लिखते हैं, “पीएमओ में बैठी इंदिरा गांधी ने काव से पूछा,आप की क्या राय है? काव का जवाब था जब तक इस मामले की पूरी जाँच नहीं हो जाती, हम पश्चिमी पाकिस्तान से पूर्वी पाकिस्तान जाने वाली किसी उड़ान को भारत की ज़मीन के ऊपर से उड़ने की अनुमति नहीं देंगे.”
हाइजैक के बाद पाकिस्तान के अख़बारों में ख़बर छपी कि हाशिम रॉ के लिए काम कर रहे थे.
इस बात की रॉ ने कभी कोई आधिकारिक पुष्टि नहीं की, लेकिन इस बात में कोई संदेह नहीं कि इस फ़ैसले से भारत को बहुत लाभ पहुँचा.
जो विमान पश्चिमी पाकिस्तान से उड़ान भर कर तीन या चार घंटे में ढाका पहुँच सकते थे, उन्हें श्रीलंका होते हुए वहाँ ईंधन भरवा कर ढाका जाने के लिए मजबूर होना पड़ा.
इससे यात्रा का समय तो बढ़ा ही, ख़र्चा भी बहुत बढ़ गया. हवाई मार्ग से पाकिस्तानी सेना का पूर्वी पाकिस्तान पहुँचना बहुत धीमा पड़ गया और इसका असर 11 महीने बाद हुए युद्ध पर पड़ा.
रॉ के अतिरिक्त सचिव रहे बी रमण ने अपनी किताब ‘द काओ ब्वाएज़ ऑफ़ आर एंड एडब्लू’ में लिखा, “पाकिस्तानी विमानों को बैन करने के इंदिरा गांधी के फ़ैसले ने आख़िरकार 1971 की लड़ाई में भारत की जीत का रास्ता सुनिश्चित किया.”
“जब पाकिस्तानी विमानों ने श्रीलंका के रास्ते पूर्वी पाकिस्तान जाने की कोशिश की, तो इंदिरा गांधी ने श्रीलंका की सरकार पर दबाव डाला कि वो पाकिस्तान को ईंधन भरने की अनुमति न दे. इसकी वजह से पाकिस्तान की पूर्वी पाकिस्तान रसद और कुमुक भेजने की क्षमता को बहुत गहरा धक्का लगा.”
हाशिम और अशरफ़ की गिरफ़्तारी
गैरी बास ने अपनी किताब ‘द ब्लड टेलिग्राम’ में लिखा, “याहया ख़ाँ ने भारत पर इल्जाम लगाया कि उसने अपने ही विमान को हाइजैक करवाया, ताकि उसे पाकिस्तानी विमानों को अपने क्षेत्र के ऊपर से उड़ने से रोकने का बहाना मिल जाए.”
अप्रैल तक हाशिम और अशरफ़ को पाकिस्तान में हीरो की तरह इज़्ज़त दी गई. लेकिन फिर हाशिम और अशरफ़ को मरी में गिरफ़्तार कर लिया गया.
बाद में हाशिम क़ुरैशी और अशरफ़ क़ुरैशी पर भारत की ख़ुफ़िया एजेंसी के लिए काम करने के लिए एक विशेष अदालत में मुक़दमा चलाया गया.
शरफ़ को तो रिहा कर दिया गया, लेकिन हाशिम क़ुरैशी को 19 साल की सज़ा सुनाई गई, अशरफ़ ने पाकिस्तान की अलग-अलग जेलों अटक, साहिवाल, फ़ैसलाबाद, लाहौर और मुल्तान में नौ साल काटे.
वर्ष 1980 में उन्हें रिहा कर दिया गया.
रॉ प्रमुख दुलत से हाशिम की मुलाकात
पाकिस्तान से वो हालैंड चले गए. रॉ के पूर्व प्रमुख एएस दुलत अपनी किताब ‘कश्मीर द वाजपेयी इयर्स’ में लिखते हैं, “1983 में हाशिम ने एक बार फिर मक़बूल बट्ट की रिहाई के लिए भारतीय विमान की हाइजैकिंग की योजना बनाई. आईएसआई ने उसे एक पासपोर्ट दिया, जिसकी बदौलत वो लंदन जा कर जेकेएलएफ़ के तत्कालीन प्रमुख अमानुल्लाह ख़ाँ से मिला.”
“लेकिन इस योजना को अमल में नहीं लाया जा सका. मेरे रॉ के प्रमुख रहते हाशिम क़ुरैशी ने मुझसे मिलने की इच्छा प्रकट की थी. वो हॉलैंड में मुझसे नहीं मिलना चाह रहा था, क्योंकि वो वहाँ की ख़ुफ़िया एजेंसी के लिए काम कर रहा था.”
इसलिए हम एक तीसरे देश में मिले. तब उसने इच्छा प्रकट की कि वो भारत वापस आना चाहता है. दिलचस्प बात ये थी कि जब हाशिम से मेरा संपर्क हुआ, हॉलैंड में रॉ का व्यक्ति रबींद्र सिंह था. ये वही रॉ अफ़सर था, जो 2004 में ये पता चलने के बाद कि वो सीआईए के लिए काम कर रहा था, भारत से अमेरिका डिफ़ेक्ट कर गया था.”
भारत लौटते ही गिरफ़्तारी
दुलत ने हाशिम से पूछा कि वो भारत क्यों लौटना चाहता है? यहाँ उसकी क्या भूमिका होगी?
हाशिम का जवाब था कि कश्मीर में राजनीतिक प्रक्रिया शुरू होने के बाद वो अपने लिए वहाँ कोई न कोई भूमिका ढ़ूँढ़ लेगा.
आख़िरकार 29 दिसंबर, 2000 को हाशिम ने दिल्ली में लैंड किया. उतरते ही उसके ख़िलाफ़ लुक आउट वॉरंट के कारण उसे गिरफ़्तार कर लिया गया.
हाशिम ने 15 दिन दिल्ली की तिहाड़ जेल में बिताए. फिर उसे श्रीनगर ले जाया गया, जहाँ उसे क़रीब एक साल तक ज्वाएंट इंटेरोगेशन सेंटर में रखा गया.
नवंबर, 2001 में उसे ज़मानत पर रिहा कर दिया गया. हाशिम के दो बेटे और दो बेटियाँ हैं. उनकी एक बेटी की शादी दुबई में हुई है.
दुलत लिखते हैं, “मुझे उसकी बेटी की शादी में बुलाया गया था. मैं उसके बेटे जुनैद की शादी में भी गया था. मैंने हाशिम से पूछा कि मैं रॉ का पूर्व प्रमुख हूँ. क्या मुझे शादी में आना चाहिए? इससे तुम्हारे लिए कश्मीर में मुश्किलें तो नहीं खड़ी हो जाएँगी? हाशिम ने हँसते हुए कहा, उनको कहने दीजिए कि मैं आपका एजेंट हूँ.”
हाशिम क़ुरैशी अभी भी श्रीनगर में रहते हैं. वो कश्मीर के कई अख़बारों में लेख लिखते हैं. उन्होंने अब तक कश्मीर पर पाँच किताबें भी लिखी हैं.
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