भोपाल गैस त्रासदी का 12 ट्रक ज़हरीला कचरा पीथमपुरा ले जाया गया, यहाँ इसका निपटारा कैसे होगा और क्या कोई असर भी होगा?
40 साल बाद और हफ़्ते भर की गहमागहमी के बीच बुधवार रात साल 1984 की भोपाल गैस त्रासदी के बाद बचा ज़हरीला कचरा शहर से बाहर भेजा जा रहा है.
मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल स्थित यूनियन कार्बाइड फ़ैक्ट्री में हुई त्रासदी को दुनिया की सबसे भीषण औद्योगिक आपदाओं में से एक माना जाता है.
तीन दिसंबर 1984 की सुबह, अमेरिका की यूनियन कार्बाइड कॉर्पोरेशन के स्वामित्व वाली एक कीटनाशक फ़ैक्ट्री से मिथाइल आइसोसाइनेट गैस लीक हुई थी, जिसके चलते लाखों लोग ज़हरीली गैस की चपेट में आ गए थे.
सरकारी आँकड़ों में गैस रिसाव से 5000 लोगों की मौत का दावा किया जाता है लेकिन सामाजिक कार्यकर्ता और स्थानीय लोग ये संख्या 10 हज़ार तक मानते हैं.
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बुधवार रात ज़हरीला कचरा 12 ट्रकों में भरकर भोपाल से 230 किलोमीटर दूर पीथमपुर के लिए रवाना किया गया.
भारी पुलिस सुरक्षा के बीच बुधवार रात 9:30 बजे 40 गाड़ियों का काफ़िला प्रशासन की ओर से तैयार किए गए ग्रीन कॉरिडोर से गुज़रते हुए सुबह 6 बजे पीथमपुर पहुँचा.
प्रशासन के अनुसार ज़हरीला कचरा भरते हुए विशेष सावधानी बरती गई है और जिस स्थान पर कचरा रखा था, वहाँ की धूल भी पीथमपुर भेजी गई है.
कचरा भरने के लिए 50 से ज़्यादा मज़दूरों को पीपीई किट के साथ लगाया गया था और हर 30 मिनट में मज़दूरों की टीमों को बदला जा रहा था.
साल 2015 में हुए ट्रायल रन के अनुसार, एक घंटे में 90 किलोग्राम कचरे को जलाया जा सकता है. उस हिसाब से 337 टन कचरे को जलाने में पाँच महीने से अधिक का समय लग सकता है.
मध्य प्रदेश गैस राहत एवं पुनर्वास विभाग के संचालक स्वतंत्र कुमार सिंह ने बताया, “देश में औद्योगिक कचरे की आवाजाही और ट्रासंपोर्ट में अब तक के सबसे उच्च सुरक्षा प्रोटोकॉल के साथ यूनियन कार्बाइड का कचरा बुधवार रात पीथमपुर के लिए रवाना हुआ था, जहाँ अगले कुछ महीनों के अंदर इसे जलाया जाएगा.”
ज़हरीले कचरे को हटाने पर मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव ने कहा कि इस कचरे के निपटान में भारत सरकार के कई संगठन शामिल हैं.
उन्होंने कहा, “पिछले 40 सालों से भोपाल के लोग इस कचरे के साथ रह रहे थे. इस ज़हरीले कचरे के निपटान से पर्यावरण पर कोई असर नहीं पड़ा है. पूरी प्रक्रिया शांतिपूर्ण तरीक़े से हुई. हमारी कोशिश यह भी है कि इस मुद्दे का राजनीतिकरण न हो.”
कचरे के लिए लंबी क़ानूनी लड़ाई
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भोपाल निवासी आलोक प्रताप सिंह ने कचरे को हटाने के लिए सबसे पहले अगस्त 2004 में हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी.
इसके बाद की सुनवाइयों के दौरान हाई कोर्ट ने साल 2005 में यूनियन कार्बाइड के ज़हरीले कचरे को निपटाने के लिए एक टास्क फ़ोर्स समिति बनाई, जिसे इस प्रक्रिया के सही तरीक़े से किए जाने के लिए सुझाव देना था.
इसी दौरान केंद्र और राज्य सरकार ने मिलकर 345 मीट्रिक टन ख़तरनाक कचरा इकट्ठा किया.
साल 2006 में मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने 346 मीट्रिक टन ज़हरीले कचरे को अंकलेश्वर (गुजरात) भेजने का आदेश दिया था.
लेकिन उसके कुछ समय बाद गुजरात सरकार ने इस मामले में अपनी असमर्थता व्यक्त की.
साल 2010 से 2015 तक पीथमपुर स्थित एक फ़ैक्ट्री में कचरे को जलाने के लिए सात परीक्षण किए गए थे, जिनमें आख़िरी परीक्षण में पर्यावरण के मानकों को पूरा किया गया था.
इसी दौरान ट्रायल रन के तहत पीथमपुर में लगभग 10 टन कचरे को जलाया भी गया.
साल 2021 में राज्य सरकार ने बचे हुई 337 मीट्रिक टन ज़हरीले कचरे को निपटाने के लिए निविदाएं आमंत्रित की थीं.
जुलाई 2024 में पीथमपुर इंडस्ट्रियल वेस्ट मैनेजमेंट प्राइवेट लिमिटेड को कचरा ले जाने और इसे निपटाने के लिए अधिकृत किया गया.
इसी बीच साल 2022 में राज्य सरकार ने पीथमपुर में कचरे को नष्ट करने का एलान किया, जिसमें अनुमानित 126 करोड़ रुपए की लागत का बजट केंद्र सरकार ने मध्य प्रदेश सरकार को दिया.
चार दिसंबर 2024 को मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने सरकार को फटकार लगाते हुए चार सप्ताह के भीतर कचरे को भेजने का आदेश दिया था.
इसके बाद क़वायद तेज़ करते हुए सरकार ने कचरे को पीथमपुर पहुँचाने की प्रक्रिया 29 दिसंबर को शुरू की. चार दिन तक चली इकठ्ठा करने की प्रक्रिया में 337 मीट्रिक टन कचरे को बैग्स में भरा गया.
इस दौरान सरकार ने पूरी गोपनीयता बनाए रखी. कचरा ले जाने के लिए गाड़ियाँ कब निकलेंगी, इस पर सरकार ने चुप्पी साध रखी थी.
मंगलवार 31 जनवरी की रात से कचरे के इन बैग्स को कंटेनर्स में लोड करना शुरू किया गया और बुधवार दोपहर तक पूरा कचरा भरे जाने के बाद रात में ही इसे पुलिस की भारी मौजूदगी में पीथमपुर रवाना किया गया.
मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के आदेश के अनुसार, सरकार को तीन जनवरी यानी शुक्रवार को रिपोर्ट पेश करनी है. इस कारण भी कचरा बुधवार रात ही रवाना कर दिया गया था.
ज़हरीले कचरे का क्या होगा?
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लेकिन सवाल ये है कि पीथमपुर पहुँचने के बाद इस कचरे का होगा क्या?
इस मामले पर मध्य प्रदेश गैस राहत एवं पुनर्वास विभाग के संचालक स्वतंत्र कुमार सिंह ने बीबीसी को बताया, “मध्य प्रदेश में औद्योगिक इकाइयों में निकलने वाले रासायनिक और अन्य अपशिष्ट के निष्पादन के लिए धार ज़िले के पीथमपुर में एकमात्र प्लांट है. यहाँ ज़हरीले कचरों को सुरक्षित तरीक़े से जलाया जाता है.”
“यह प्लांट सेंट्रल पल्यूशन कंट्रोल बोर्ड (सीपीसीबी) के दिशा निर्देश के मुताबिक़ संचालित होता है. हमने साल 2015 में सीपीसीबी की देखरेख में सभी निर्धारित मानकों के अनुसार, सुरक्षा का ध्यान रखते हुए 10 मीट्रिक टन कचरे को जलाने का ट्रायल रन किया था.”
संचालक स्वतंत्र कुमार सिंह ने बताया कि देश में पीथमपुर जैसे 42 संयंत्र हैं, जिनमें ऐसे रासायनिक कचरों को जलाया जाता है.
सरल शब्दों में कहें तो भोपाल से पीथमपुर पहुँचे कचरे को सबसे पहले ज़्यादा तापमान वाले इंसीनरेटर (भट्टी) में जलाया जाएगा, इससे निकलने वाले धुएं को नियंत्रित करने के लिए व्यवस्था की गई है, जो यह तय करेगी कि कचरे को जलाने पर निकले धुएँ में मौजूद ख़तरनाक तत्व आबोहवा में न घुल जाएँ.
जलाने के बाद अवशेष की भी कई परतों पर जाँच की जाएगी और जब तक सभी ख़तरनाक रसायन नष्ट नहीं हो जाते तब तक प्रक्रिया दोहराई जाती रहेगी. इसके बाद जो बच जाएगा, उसे ज़मीन में गाड़ दिया जाएगा.
ज़मीन के नीचे गाड़ने के दौरान इस बात का विशेष ध्यान रखा जाएगा कि ये राख अंदर ही अंदर अन्य जल स्रोतों और अन्य जगहों पर रिस कर न पहुँचे.
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लैंडफ़िलिंग के लिए ज़मीन में डबल कंपोजिट लाइनर सिस्टम (दो प्लास्टिक लाइनर और दो मिट्टी के लाइनर का मिश्रण) का इस्तेमाल किया जाएगा.
मध्य प्रदेश के पर्यावरणविद और पूर्व केमिस्ट्री प्रोफ़ेसर सुभाष सी पांडेय कहते हैं, “मध्य प्रदेश में 150 के आसपास केमिकल फ़ैक्टरी हैं, जहाँ का कचरा पीथमपुर स्थित प्लांट में जलाया जाता है. यूनियन कार्बाइड फ़ैक्टरी के कचरे को जलाने के लिए वो उपयुक्त जगह है.”
“हालांकि कई मीडिया रिपोर्ट्स में कहा जा रहा है कि इससे समस्याएँ खड़ी हो सकती हैं. लेकिन मेरा मानना है कि जो केमिकल यूनियन कार्बाइड फ़ैक्टरी के कचरे में हैं, उनसे ज़्यादा घातक और ख़तरनाक केमिकल युक्त कचरे को पीथमपुर में जलाया जा रहा है. इस तरह की बातें लोगों को भ्रमित करेंगीं.”
वे कहते हैं, “क्योंकि ये काम सुप्रीम कोर्ट और केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की देखरेख में हो रहा है, तो इसमें ग़लती या लापरवाही की गुंजाइश बहुत कम है.”
पीथमपुर में कचरा ले जाने के बीच स्थानीय लोगों और अन्य फ़ैक्टरी कर्मचारियों में असमंजस बरकरार है.
एक स्थानीय व्यक्ति ने नाम न बताने की शर्त पर कहा कि सरकार को पहले यहाँ के लोगों को इस बारे में दिशा निर्देश देने थे, उसके बाद इस प्रक्रिया को पूरा करना चाहिए था.
उन्होंने कहा,”भोपाल में हुई गैस त्रासदी के लिए हमारी संवेदनाएं हैं लेकिन ऐसा कुछ यहाँ न हो इसको लेकर व्यवस्था नहीं की गई. स्थानीय लोगों को कुछ भी नहीं बताया गया. कचरे को निपटाने से अगर कोई समस्या होती है, तो हम लोग कहाँ जाएँगे?”
इसी बीच पीथमपुर बचाओ समिति ज़हरीला कचरा लाने के विरोध में दिल्ली के जंतर-मंतर पर धरना प्रदर्शन कर रही है और इलाक़े के कई मज़दूर संगठनों ने भी 2-3 जनवरी को पीथमपुर बंद का आह्वान किया है.
बीजेपी नेता का भी विरोध
जहाँ एक तरफ़ स्थानीय लोगों में असमंजस और ऊहापोह बना हुआ है, वहीं इस ज़हरीले कचरे के इर्द गिर्द राजनीति भी तेज़ है.
पीथमपुर से सटे इंदौर के मेयर और बीजेपी नेता पुष्यमित्र भार्गव ने भी पीथमपुर में कचरा न जलाने की बात कही है.
उन्होंने कहा, “बीते कुछ दिनों से कचरा निष्पादन की बात की जा रही है. पीथमपुर के लोग विरोध भी कर रहे हैं तो मेरा मानना है कि इसको लेकर पुनर्विचार होना चाहिए ताकि पीथमपुर में ये कचरा न जले.”
“ये पीथमपुर के साथ इंदौर और प्रदेश के लिए भी सही होगा. क्योंकि इस कचरे को पहले गुजरात में जलाने की बात थी, लेकिन उस पर रोक लगी, फिर इसको जर्मनी भेजने की बात आई उस पर भी रोक लगी.”
उन्होंने इस पर फिर से विचार करने का अनुरोध किया.
पुष्यमित्र भार्गव ने कहा कि कचरा जलाने के बाद जो इसका पर्यावरण पर जो प्रभाव पड़ेगा, उसकी जाँच के बाद जो भी तथ्य सामने आएँ, उन्हें माननीय न्यायालय के सामने पेश करना चाहिए और उसके बाद ही कोई निर्णय लेना चाहिए.
इस मामले पर सरकार पूरी सुरक्षा व्यवस्था और कचरा जलाने के बाद पर्यावरण से संबंधित किसी दुष्प्रभाव की बात से इनकार कर रही है, लेकिन पीथमपुर और आस पास के इलाक़ों में लोगों के मन में इसको लेकर संशय बना हुआ है.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित