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New York :एआई से 20 साल से संतान को तरस रहे दंपति को मिली खुशखबरी

New York : बीस साल से संतान का सपना देख रहे एक दंपति की किस्मत एक कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) आधारित टेक्नोलॉजी ने पलट दी। न सिर्फ यह जोड़ा गर्भधारण में सफल हुआ, बल्कि पूरी दुनिया के लिए उम्मीद और विज्ञान की शक्ति का एक जीवंत उदाहरण बन गया। करीब 15 बार फर्टिलिटी ट्रीटमेंट में असफल हो चुके इस जोड़े ने अमेरिका, यूरोप, एशिया तक के विशेषज्ञों से सलाह ली, लेकिन हर बार निराशा ही हाथ लगी। जब हर राह बंद होने लगी, तब विज्ञान ने नई दिशा दिखाई। एआई आधारित सिस्टम आरएएफएफ (रियल टाइम आल बेस्ड फर्टीलिटी फाइंडर) ने वो कर दिखाया, जो सामान्य माइक्रोस्कोप या लैब तकनीशियन भी नहीं कर पाए थे।

क्या है आरएएफएफ और कैसे करता है काम?

आरएएफएफ एक मशीन लर्निंग और माइक्रोफ्लुइडिक तकनीक से युक्त सिस्टम है, जो उन सीमेन सैंपल्स में भी जीवित शुक्राणु खोज निकालता है, जिन्हें पारंपरिक तकनीकें ‘निष्फल’ घोषित कर देती हैं। माइक्रो चिप सीमेन के अलग-अलग तत्वों को छांटती है। हाई-स्पीड कैमरे लाखों फ्रेम रिकॉर्ड करते हैं। एआई एल्गोरिदम इन फ्रेमों में सूक्ष्मतम स्पर्म की पहचान करता है। डॉक्टर जिसे सुई को भूसे के ढेर में तलाशना कहते हैं, आरएएफएफ उसे घंटों में संभव बना देता है। वह भी बिना स्पर्म को नुकसान पहुंचाए।

सिर्फ 1 घंटे में मिला मातृत्व का रास्ता

इस केस में, पारंपरिक जांच में दो दिन तक एक भी शुक्राणु नहीं मिला। लेकिन आरएएफएफ ने महज 60 मिनट में 44 जीवित शुक्राणु ढूंढ निकाले। इसके बाद बिना किसी सर्जरी या हार्मोनल ट्रीटमेंट के महिला का आईवीएफ किया गया और मार्च 2025 में वह गर्भवती हो गई। अब यह दंपति अक्टूबर में अपने पहले बच्चे का स्वागत करने की तैयारी कर रहा है।

छिपा हुआ कारण : अजोस्पर्मिया

इस केस में पति को अजोस्पर्मिया था। यानी सीमेन में बिल्कुल भी शुक्राणु नहीं थे। यह दो प्रकार का होता है। अब्स्ट्रक्टिव अजोस्पर्मिया, शुक्राणु बनते हैं, पर बाहर नहीं आ पाते। नॉन-अब्स्ट्रक्टिव अजोस्पर्मिया, शरीर में शुक्राणु बनाता ही नहीं, या बहुत कम मात्रा में बनाता है। इसके पीछे जेनेटिक कारण, कैंसर उपचार, हार्मोनल असंतुलन, शराब/ड्रग्स की लत या जन्मजात संरचनात्मक दोष हो सकते हैं।
आरएएफएफ जैसी एआई तकनीकों का भविष्य और भी उज्ज्वल नजर आता है। वैज्ञानिक इसे आगे इन कार्यों के लिए विकसित कर रहे हैं। हाई-क्वालिटी अंडाणु और भ्रूण की पहचान, ट्रीटमेंट की सफलता का पूवार्नुमान, पर्सनलाइज्ड फर्टिलिटी योजना, प्रजनन ऊतकों में अदृश्य दोषों की पहचान करना होगा। यह केवल एक तकनीकी उपलब्धि नहीं, बल्कि इंसानी जज्बे, विज्ञान और धैर्य की साझा जीत है। आरएएफएफ और ऐसी तकनीकें भविष्य में उन सभी दंपतियों के लिए वरदान साबित हो सकती हैं, जिनके लिए माता-पिता बनना अब तक एक अधूरा सपना था।

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