India-The us Relation: ट्रंप के फै़सलों ने क्या भारत को अमेरिका और मध्य पूर्व के बीच में उलझा दिया है?
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अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव में जब डोनाल्ड ट्रंप की जीत हुई थी, तब सभी का मानना था कि उनके आने से अमेरिका की नीतियों में बदलाव देखने को मिलेगा, और कुछ यूं कहें कि ऐसा दिखने भी लगा है.
अंतरराष्ट्रीय कूटनीति आमतौर पर दीर्घकालिक मानी जाती है, जहां नीतियाँ और रणनीतियाँ एक दिन या एक महीने में नहीं बदलतीं.
लेकिन बीते हफ़्ते हुई घटनाओं ने वैश्विक परिदृश्य में कई महत्वपूर्ण बदलावों के संकेत दिए हैं, जिन्हें समझने की कोशिशें लगातार जारी हैं.
भारत के नज़रिए से देखें तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हाल ही में फ्रांस होते हुए अमेरिका पहुंचे थे और फिर भारत लौटने के बाद क़तर के अमीर शेख़ तमीम बिन हमाद अल-थानी ने भारत का दौरा किया.
क्या भारत अमेरिका के साथ रिश्ते बनाए रखते हुए रूस और ईरान जैसे देशों के साथ संतुलन बना पाएगा? ट्रंप के साथ रिश्तों को आगे बढ़ाने के लिए भारत का रवैया क्या होगा?
क़तर इस समीकरण में भारत के लिए क्यों इतना अहम है? नेटो और यूरोप ट्रंप के रुख़ से क्यों चिंतित हैं? और मध्य पूर्व में इन सभी फैसलों का क्या असर पड़ेगा?
बीबीसी हिन्दी के साप्ताहिक कार्यक्रम, ‘द लेंस’ में कलेक्टिव न्यूज़रूम के डायरेक्टर ऑफ़ जर्नलिज़्म मुकेश शर्मा ने इन्हीं सब मुद्दों पर चर्चा की.
इसमें मिडिल ईस्ट इनसाइट्स की संस्थापक डॉक्टर शुभदा चौधरी, अमेरिका के डेलावेयर यूनिवर्सिटी के प्रोफ़ेसर डॉक्टर मुक़्तदर ख़ान और अरब न्यूज़ के मैनेजिंग एडिटर सिराज वहाब शामिल हुए.
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17 फ़रवरी की रात जब क़तर के अमीर शेख़ तमीम बिन हमाद अल-थानी भारत पहुंचे, तो उनका स्वागत करने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ख़ुद नई दिल्ली एयरपोर्ट पर पहुंचे थे.
भारत और क़तर के बीच ऐतिहासिक रूप से गहरे रिश्ते रहे हैं. दोनों देशों के कूटनीतिक संबंध 70 के दशक में स्थापित हुए थे.
क़तर भारत को एलएनजी (लिक्विफ़ाइड नेचुरल गैस), एलपीजी (लिक्विफ़ाइड पेट्रोलियम गैस), रसायन, पेट्रोकेमिकल्स, उर्वरक, प्लास्टिक और एल्यूमीनियम जैसे सामान निर्यात करता है.
हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का अमेरिका दौरा भारत और क़तर दोनों के लिए चुनौतीपूर्ण साबित हुआ है.
इस दौरे के दौरान, भारत और अमेरिका के बीच कई महत्वपूर्ण समझौते हुए और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कहा कि भारत अब अधिक तेल और गैस अमेरिका से ख़रीदेगा, जिससे व्यापार घाटा कम करने में मदद मिलेगी.
ट्रंप ने यह भी उम्मीद जताई कि अमेरिका, भारत का प्रमुख तेल और गैस आपूर्तिकर्ता बनेगा.
ऐसे में यह सवाल उठता है कि अगर भारत क़तर से प्राकृतिक गैस आयात करता है, तो वह अमेरिका के साथ अपने रिश्ते कैसे बनाए रखेगा? और अगर भारत प्राकृतिक गैस के लिए अमेरिका की ओर रुख़ करता है, तो इसका क़तर और भारत के रिश्तों पर क्या असर पड़ेगा?
इस पर अमेरिका के डेलावेयर यूनिवर्सिटी के प्रोफ़ेसर, डॉक्टर मुक़्तदर ख़ान ने कहा, “जब क़तर में आठ भारतीय जासूसी के आरोप में पकड़े गए थे, तब भारत में यह चर्चा हो रही थी कि नरेंद्र मोदी की व्यक्तिगत कूटनीति के कारण क़तर ने मौत की सज़ा देने के बावजूद उन्हें वापस भेज दिया. लेकिन भारत ने क़तर के साथ 78 अरब डॉलर के प्राकृतिक गैस समझौते पर हस्ताक्षर भी किए.”
उन्होंने कहा, “अब अगर भारत अमेरिका से प्राकृतिक गैस ख़रीदता है, तो क़तर को यह चिंता हो सकती है कि उनके साथ हुआ समझौता कैसे प्रभावित होगा.”
मुक़्तदर ख़ान ने कहा, “इसलिए मुझे लगता है कि शेख़ अल-थानी दिल्ली आए, ताकि यह सुनिश्चित कर सकें कि उनके बीच का सौदा सुरक्षित और जारी रहे.”
मिडिल ईस्ट इनसाइट्स की संस्थापक डॉक्टर शुभदा चौधरी ने बताया कि भारत के लिए एलएनजी (लिक्विफ़ाइड नेचुरल गैस) सप्लाई का क़तर बहुत बहुमूल्य एक देश है.
इस मुद्दे पर अरब न्यूज़ के मैनेजिंग एडिटर सिराज वहाब ने कहा, “हम ऐसी दुनिया में हैं, जहां हर देश यह चाहता है कि सभी देशों के साथ अच्छे संबंध हों.”
उन्होंने कहा, “भारत यह चाहता है कि उसके सभी देशों से अच्छे रिश्ते हों, क्योंकि हम एक महत्वपूर्ण और निर्णायक दौर में प्रवेश कर रहे हैं.”
सिराज वहाब ने कहा, “ट्रंप के संदर्भ में कुछ भी कहना मुश्किल है, क्योंकि यह नहीं कहा जा सकता कि आने वाले दिनों में उनकी नीतियाँ क्या होंगी. भारत की यह कोशिश है कि सभी देशों के साथ अच्छे संबंध बनाए जाएं, ताकि भविष्य में भारत को अधिक लाभ मिल सके.”
उन्होंने कहा, “अगर क़तर एलएनजी का एक बड़ा आपूर्तिकर्ता है, तो भारत भी उसका एक महत्वपूर्ण ख़रीदार है.”
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ट्रंप के दो हालिया फैसलों को लेकर दुनिया भर में तीखी बहस हो रही है. एक तो यूक्रेन-रूस युद्ध को समाप्त करने के लिए ट्रंप ने राष्ट्रपति पुतिन के प्रति नरम रुख़ दिखाया है और दूसरा, ग़ज़ा संकट को हल करने के लिए उन्होंने यहाँ की पूरी आबादी को कहीं और शिफ़्ट करने का प्रस्ताव रखा है.
पुतिन के प्रति नरमी को लेकर यूरोप में असमंजस और बेचैनी है, जबकि ग़ज़ा की आबादी को अन्य देशों में शिफ़्ट करने की योजना से मध्य-पूर्व के देशों की धड़कनें बढ़ी हुई हैं.
जब से ट्रंप सत्ता में आए हैं, तब से उन्होंने ऐसे कई फ़ैसले लिए हैं जिन्होंने दुनियाभर को चौंका दिया है. हालांकि, चुनाव के दौरान ही ट्रंप ने अपनी नीति स्पष्ट कर दी थी कि वह “अमेरिका फ़र्स्ट” पर ज़्यादा ज़ोर देंगे.
लेकिन अब हर रोज़ बड़े फ़ैसले लेने के बाद यह सवाल उठने लगा है कि वह आख़िरकार दुनिया को क्या संदेश देना चाहते हैं.
इस पर अमेरिका के डेलावेयर यूनिवर्सिटी के प्रोफ़ेसर डॉक्टर मुक़्तदर ख़ान ने कहा, “पिछले तीस-चालीस सालों में जो अमेरिका ने वैश्विक व्यवस्था को सहारा दिया है, उसका नाजायज़ फ़ायदा दूसरे देशों ने उठाया है. जैसे 1990 के बाद से चीन का तेज़ी से विकास हुआ है, वहीं अमेरिका में औद्योगिकीकरण की कमी आई है. ट्रंप का मानना है कि अमेरिका ने सबकी मदद की, लेकिन बाकी देशों ने इसका फ़ायदा सिर्फ़ उठाया.”
उन्होंने कहा, “अगर हम बुनियादी ढांचे की तुलना चीन और अमेरिका से करें, तो अमेरिका अब एक पिछड़े और अंडर-डेवलप्ड देश जैसा नज़र आता है.”
“यूरोप की सुरक्षा में अमेरिकी योगदान के कारण, यूरोप अपनी रक्षा पर दो प्रतिशत से भी कम ख़र्च करता है और बाकी पैसा अपने विकास और कल्याणकारी राज्य में लगाता है. वहां मुफ्त शिक्षा और मुफ्त स्वास्थ्य सेवा उपलब्ध है, जो अमेरिका में नहीं है.”
डॉक्टर ख़ान ने कहा, “ट्रंप का अंदाज़ अकूटनैतिक हो सकता है, लेकिन उनकी नीतियाँ गंभीर हैं और दुनिया को इन्हें स्वीकार कर, एडजस्ट करना पड़ेगा.”
इस पर मिडिल ईस्ट इनसाइट्स की संस्थापक डॉक्टर शुभदा चौधरी ने कहा, “आने वाले समय में जो ख़लल पैदा होगा, वह एआई (आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस) के कारण होगा. एआई अभी अपने साम्राज्य मंच पर है, लेकिन वह धीरे-धीरे राष्ट्र राज्य की सीमाओं में प्रवेश करेगा.”
“अमेरिका को चुनौती देना थोड़ी मुश्किल है, क्योंकि अगर आप प्रौद्योगिकी, निगरानी, और साइबर युद्ध पर नज़र डालें तो अमेरिका अभी भी बहुत आगे है. अगर आप अमेरिका की अर्थव्यवस्था की तुलना चीन, जर्मनी और फ्रांस से करें, तो भी अमेरिका की जीडीपी सबसे बड़ी है.”
उन्होंने कहा, “अमेरिका चाहता है कि एक तरह से अराजकता हो, और वह विश्व व्यवस्था की छवि को बदलने की कोशिश कर रहा है. लेकिन पांच या दस साल बाद, इसकी परिभाषा तकनीकी संप्रभुता में बदलाव के रूप में सामने आएगी.”
अरब न्यूज़ के मैनेजिंग एडिटर सिराज वहाब ने कहा, “अगर हम मध्य पूर्व की बात करें, तो डोनाल्ड ट्रंप के बारे में लोगों में काफ़ी भ्रम है.”
उन्होंने कहा, “मध्य पूर्व में अक्सर यह कहा जाता है कि हर देश का संबंध अमेरिका के संस्थानों से है. वर्तमान में ट्रंप की लोकप्रियता बहुत ऊंचाई पर है, लेकिन यह लोकप्रियता लंबे समय तक नहीं टिकेगी.”
सिराज वहाब ने कहा, “लोग अमेरिका को एक बड़ी सुपरपावर के रूप में देखते हैं, लेकिन अब वही अमेरिका अपनी सुपरपावर की स्थिति को दूसरे देशों के साथ बांटने की कोशिश कर रहा है.”
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अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात के लगभग 2 घंटे पहले सभी देशों पर रेसिप्रोकल टैरिफ लगाने की घोषणा की.
ट्रंप ने गुरुवार 13 फरवरी को एक ज्ञापन पर हस्ताक्षर किया, जिसमें रेसिप्रोकल टैरिफ के लिए योजना बनाने का आदेश दिया गया है.
इस पर अमेरिका के डेलावेयर यूनिवर्सिटी के प्रोफ़ेसर डॉक्टर मुक़्तदर ख़ान ने कहा, “जब नरेंद्र मोदी विदेश यात्रा करते हैं, तो बहुत मामूली मुद्दों पर भी अत्यधिक ध्यान दिया जाता है. जैसे कि फ्रांस में राष्ट्रपति मैक्रों ने उन्हें सम्मानित किया या नरेंद्र मोदी ने शेख अल-थानी को एयरपोर्ट पर रिसीव किया. इस तरह के छोटे-छोटे घटनाक्रमों पर अत्यधिक ध्यान केंद्रित किया जाता है.”
उन्होंने कहा, “मुझे लगता है कि भारत सरकार डोनाल्ड ट्रंप को लेकर कुछ घबराई हुई है और मोदी के अमेरिका जाने से पहले ही ट्रंप कई कदम उठा चुके थे.”
डॉक्टर ख़ान ने कहा, “डोनाल्ड ट्रंप और नरेंद्र मोदी की मुलाकात में यह अच्छा लगा कि ट्रंप ने मोदी को महान नेता बताया. लेकिन इस मुलाकात से कुछ घंटे पहले ही ट्रंप ने कई महत्वपूर्ण फ़ैसले लिए थे, जैसे कि उन्होंने सभी देशों पर रेसिप्रोकल टैरिफ लागू कर दिए और भारत को इससे कोई छूट नहीं दी.”
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अगर यूक्रेन युद्ध के बारे में डोनाल्ड ट्रंप के नज़रिए और रूस के ख़िलाफ़ यूक्रेन की लड़ाई में अमेरिका के समर्थन के बारे में कोई संदेह था, तो ट्रंप ने बुधवार को स्पष्ट शब्दों में इस पर विराम लगा दिया है.
क़रीब तीन साल पहले रूस के आक्रमण के ख़िलाफ़ वोलोदिमीर ज़ेलेस्की की कोशिशों के लिए अमेरिकी कांग्रेस (संसद) ने खड़े होकर उनकी सराहना की थी.
लेकिन अब राष्ट्रपति ट्रंप ने यूक्रेन के राष्ट्रपति ज़ेलेंस्की को ‘तानाशाह’ करार दिया है और उन पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए हैं.
ट्रंप ने युद्ध शुरू करने के लिए रूस को नहीं, बल्कि यूक्रेन को दोषी ठहराया है. ट्रंप के इस रुख़ से यूक्रेन के लिए मुश्किलें पैदा हो गई है. अब ज़ेलेंस्की के लिए आसान नहीं होगा कि वह रूस के साथ युद्ध ख़त्म करने के लिए अपनी मांगें उस तरह से रख पाएं, जैसा वह अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति जो बाइडन के समय रख रहे थे.
इस पर डॉक्टर मुक़्तदर ख़ान ने कहा, “यूक्रेनी राष्ट्रपति वोलोदिमीर ज़ेलेंस्की का कार्यकाल 2024 में समाप्त हो गया है. इसलिए, तकनीकी रूप से ट्रंप ने यह कहा कि आप बिना चुनाव के सरकार चला रहे हैं, जबकि संविधान कहता है कि युद्ध के दौरान चुनाव नहीं होने चाहिए.”
उन्होंने कहा, “यूरोपीय देश कह रहे हैं कि ज़ेलेंस्की सही हैं और ट्रंप ग़लत बोल रहे हैं. डोनाल्ड ट्रंप मूल रूप से ज़ेलेंस्की की व्यक्तिगत स्थिति को कमज़ोर करने की कोशिश कर रहे हैं ताकि वह बातचीत में कुछ रियायतें दे सकें.”
डॉक्टर ख़ान ने बताया, “अमेरिका चाहता है कि युद्ध तुरंत ख़त्म हो और रूस के साथ रिश्ते सामान्य हो जाएं, क्योंकि युद्ध का ख़र्च अमेरिका को ही उठाना पड़ रहा है.”
“ट्रंप ने वोलोदिमीर ज़ेलेंस्की को लेकर जो पोस्ट किए थे, जिनमें उन्होंने ज़ेलेंस्की को तानाशाह बताया. उस पोस्ट में ट्रंप ने यह भी कहा कि यूरोप ने जो भी युद्ध के लिए पैसे दिए हैं, वे उन्हें वापस मिल जाएंगे, लेकिन जो 300 अरब डॉलर अमेरिका ने दिए हैं, वे वापस नहीं मिलेंगे.”
डॉक्टर ख़ान ने कहा, “अगर हम भारत की बात करें, तो अगर चीन भारत पर हमला करता है तो अमेरिका भारत की मदद करेगा, लेकिन अगर अमेरिका और चीन के बीच युद्ध होता है तो शायद भारत उसमें शामिल नहीं होगा. यही असमान प्रतिबद्धता है, जिसे सही करने की कोशिश ट्रंप कर रहे हैं.”
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित.