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महाराष्ट्र में 2024 के विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी के महायुति गठबंधन की जीत की कई वजहें बताई गई थीं. इनमें से एक वजह ‘लाडली बहन योजना’ या ‘लाडकी बहीण योजना’ को भी माना गया.
इस योजना को लेकर पहले भी कई सवाल उठते रहे हैं. अब महायुति सरकार के मंत्रियों ने स्वीकार किया है कि ‘बहनों’ के लिए बनी इस योजना का लाभ कुछ पुरुषों ने भी उठाया और उनके खातों में पैसा जमा हुआ.
महाराष्ट्र सरकार में महिला एवं बाल कल्याण मंत्री अदिति तटकरे ने इस मुद्दे पर सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म एक्स पर पोस्ट करते हुए लिखा, “यह देखा गया है कि कुछ लाभार्थी एक से अधिक योजनाओं का लाभ उठा रहे हैं, कुछ परिवारों में दो से ज़्यादा लाभार्थी हैं और कुछ स्थानों पर पुरुषों ने भी आवेदन किया है.”
वहीं, उपमुख्यमंत्री और वित्त मंत्री अजित पवार ने मीडिया से बात करते हुए कहा, “यह योजना ग़रीब बहनों की मदद के लिए शुरू की गई थी. हालांकि, अगर किसी ने इसका ग़लत फायदा उठाया है, तो हम कार्रवाई करेंगे. ऐसा कहा जा रहा है कि कुछ पुरुषों ने भी इस योजना का लाभ लिया है. अगर यह सच है, तो हम उनसे यह पैसा वसूलेंगे.”
योजना की पहले भी हुई है आलोचना
मध्य प्रदेश की तर्ज़ पर महाराष्ट्र में भी इस योजना की घोषणा की गई थी. विधानसभा चुनाव से पहले शुरू की गई इस योजना को लेकर विपक्षी दलों ने बार‑बार आरोप लगाया है कि सरकार ने चुनावों को ध्यान में रखते हुए यह योजना बनाई.
सरकार ने राज्य में 21 से 65 वर्ष की आयु की उन सभी महिलाओं को 1,500 रुपये प्रति माह देने की योजना बनाई है, जिनकी वार्षिक पारिवारिक आय 2.5 लाख रुपये से कम है.
इस घोषणा के बाद यह भी सवाल उठे कि इस योजना के लिए धन कैसे जुटाया जाए, क्योंकि इससे सरकार के ख़ज़ाने पर हज़ारों करोड़ रुपये का अतिरिक्त बोझ पड़ेगा.
चालू वित्त वर्ष के बजट में इसके लिए 36,000 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है.
इस योजना के शुरू होने के बाद से ही ऐसी शिकायतें आ रही हैं कि लाभार्थियों की सूची उपलब्ध समय के भीतर दस्तावेज़ों का उचित सत्यापन किए बिना ही तैयार की जा रही है.
कहा गया कि चुनाव के बाद सरकार को इस योजना के लाभार्थियों की जानकारी का सत्यापन भी करना होगा.
अब तक 2 करोड़ 53 लाख लाभार्थियों को इस योजना का पैसा मिल चुका है. लेकिन अब सरकार ख़ुद इस सवाल का जवाब ढूंढ रही है कि इनमें से कितने असली हैं और कितने नक़ली. इसके लिए सरकार ने खोज और सत्यापन का काम शुरू किया है.
अदिति तटकरे ने क्या कहा?
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इस सत्यापन के अनुसार, अब तक 26 लाख से ज़्यादा लाभार्थी अपात्र पाए गए हैं. इनमें से कुछ एक से ज़्यादा सरकारी योजनाओं का लाभ उठा रहे थे.
कुछ लोगों ने उच्च आय वर्ग में होने के बावजूद आवेदन किया और लाभ प्राप्त किया. लेकिन सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि पुरुषों ने भी आधिकारिक तौर पर अपना नाम पंजीकृत कराकर इस योजना का लाभ उठाया.
अदिति तटकरे के अनुसार, इन सभी ‘अयोग्य’ लाभार्थियों को मिलने वाली धनराशि अब रोक दी गई है.
तटकरे ने अपने पोस्ट में लिखा, “इन 26.34 लाख आवेदकों को लाभ मिलना जून 2025 से अस्थाई रूप से रोक दिया गया है.”
यहां सवाल उठता है कि अब तक कितने ‘अयोग्य’ लोगों को कितना पैसा बांटा गया और अब उनसे सरकारी पैसा कब और कैसे वापस मिलेगा?
तटकरे का कहना है कि इस कार्रवाई के बारे में मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री से बात करने के बाद निर्णय लिया जाएगा.
इसके पीछे एक बड़ी साज़िश है: सुप्रिया सुले
फ़िलहाल अदिति तटकरे और अन्य मंत्रियों ने कहा है कि अभी सरकार ने ‘अवैध’ व्यक्तियों को दी गई धनराशि वापस लेने का कोई निर्णय नहीं लिया है.
राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (शरद पवार) की सांसद सुप्रिया सुले ने विशेष जांच की मांग की है.
सुप्रिया सुले ने पुणे में मीडिया से बात करते हुए कहा, “इन लोगों को किसने योग्य बनाया? इसके लिए कौन ज़िम्मेदार है? जब इतना बड़ा सिस्टम, तकनीक, ‘एआई’ और सब कुछ है, तो यह घोटाला कैसे हो सकता है? इसके पीछे एक बड़ी साज़िश लगती है. इसलिए, जो भी इन फ़ॉर्मों को भरने के लिए ज़िम्मेदार है, उसकी एसआईटी या सीबीआई के माध्यम से जांच होनी चाहिए.”
इस बारे में पूर्व आईएएस अधिकारी महेश झगडे कहते हैं, “भले ही अब ऐसे अयोग्य आवेदकों के ख़िलाफ़ कार्रवाई करने की बात कही जा रही है, लेकिन मुख्य ज़िम्मेदारी सरकारी व्यवस्था की है जिसने उन्हें योग्य मानकर भुगतान किया.”
कौन ज़िम्मेदार है और किसे सज़ा मिलनी चाहिए?
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महेश झगडे कहते हैं कि ऐसे अधिकारियों के ख़िलाफ़ कार्रवाई की जानी चाहिए जिन्होंने उन व्यक्तियों को योग्य घोषित किया जो तय मानदंडों पर खरे नहीं उतरे.
उन्होंने कहा, “मेरी राय में यह पूरी तरह से सरकारी व्यवस्था की ग़लती है और उसे दंडित किया जाना चाहिए. सरकार ने निर्णय लिया, इस योजना के लिए मानदंड निर्धारित किए. आवेदनों की जांच करना और उन मानदंडों के अनुसार कौन अपात्र है, यह तय करना प्रशासन का काम है. आवेदक आवेदन करता रहता है, प्रशासन तय करता है कि वह पात्र है या अपात्र. उन्होंने ठीक से जांच क्यों नहीं की और उन लोगों को दरकिनार क्यों नहीं किया जो मानदंडों को पूरा नहीं करते? इसका मतलब है कि उन्होंने अपने कर्तव्य की उपेक्षा की है.”
वह आगे कहते हैं, “जो लोग पात्र नहीं हैं, उन्हें लाभ देने की अनुमति देना भ्रष्टाचार है. अगर कोई पुरुष आवेदन कर रहा है, तो क्या यह आंखों से स्पष्ट नहीं होना चाहिए कि वह महिला नहीं है? पैसा ऐसे कैसे गया? इसलिए, ऐसा करने वाले अधिकारियों के ख़िलाफ़ मामला दर्ज किया जाना चाहिए. आवेदकों के ख़िलाफ़ कार्रवाई करने के बजाय, उन लोगों के ख़िलाफ़ कार्रवाई की जानी चाहिए जिन्होंने उनकी पात्रता की जांच किए बिना उन्हें लाभ प्राप्त करने दिया.”
अर्थशास्त्री नीरज हाटेकर ऐसी प्रत्यक्ष जमा योजनाओं और उनके परिणामों के बारे में लगातार लिखते रहे हैं. उन्होंने कहा, “यह पैसा देकर चुनाव जीतने का एक तरीक़ा था और इसलिए बिना किसी जांच‑पड़ताल के पैसा बांटा गया.”
बीबीसी मराठी से बात करते हुए हाटेकर कहते हैं, “जिन लोगों को पैसा मिला, उनमें से कई ग़रीब थे. सबने उसे ख़र्च कर दिया. अब वे उसे वापस कैसे पाएंगे? यह सरकार के लिए सुविधाजनक नहीं है. इसलिए कई जगहों पर इस योजना पर कैंची चलती रहेगी. ज़्यादा से ज़्यादा उन अधिकारियों पर कार्रवाई होगी जिन्होंने बिना जांच‑पड़ताल के ही इसे लागू करने का फ़ैसला किया. लेकिन ध्यान देने वाली बात यह है कि चुनाव के दौरान वे भी ऊपर से मिले आदेश के अनुसार ही काम कर रहे थे.”
इन सवालों पर बीबीसी मराठी से बात करते हुए महाराष्ट्र भाजपा के मीडिया प्रमुख नवनाथ बान ने कहा, “यह योजना सिर्फ़ एक दिखावटी चुनावी नारा नहीं है, बल्कि महाराष्ट्र में महिलाओं के आर्थिक, सामाजिक और पारिवारिक सशक्तीकरण के लिए एक दूरदर्शी और ठोस योजना है. राज्य सरकार ने इस योजना के ज़रिए लाखों महिलाओं को सीधे आर्थिक मदद देने का फ़ैसला किया है. इस फ़ैसले के पीछे कोई राजनीतिक गणित नहीं, बल्कि सामाजिक प्रतिबद्धता है.”
उन्होंने आगे कहा, “अगर आज इस योजना के क्रियान्वयन में कमियां हैं तो सरकार उन्हें खुले तौर पर स्वीकार करने और उन्हें दूर करने के लिए तैयार है. विपक्ष को इसे कमज़ोर करने की कोशिश नहीं करनी चाहिए.”
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित
[SAMACHAR]
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