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सुप्रीम कोर्ट ने 1988 में एक किशोरी के साथ बलात्कार के मामले में दोषी ठहराए गए व्यक्ति के अपराध के समय नाबालिग होने की बात सामने आने के बाद उसकी जेल की सजा बुधवार (23 जुलाई, 2025) को रद्द कर दी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने उसकी दोषसिद्धी बरकरार रखी है.
पीटीआई की रिपोर्ट के अनुसार मुख्य न्यायाधीश भूषण रामकृष्ण गवई (CJI BR Gavai) और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की बेंच ने कहा कि दोषी का दावा है कि ये घटना जिस समय की है उस वक्त वह नाबालिग था. बेंच ने कहा कि उसके इस दावे के बाद सुप्रीम कोर्ट ने अजमेर के जिला और सत्र न्यायाधीश को उसके दावों की जांच करने का निर्देश दिया.
जांच रिपोर्ट पर गौर करने के बाद बेंच ने कहा कि अपराध की तारीख यानी 17 नवंबर 1988 को आरोपी की उम्र 16 साल, दो महीने और तीन दिन थी. कोर्ट ने कहा, ‘अपीलकर्ता अपराध के समय नाबालिग था.’ बेंच ने सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का जिक्र किया और कहा कि किशोर होने की दलील किसी भी अदालत में उठाई जा सकती है. मामले के निपटारे के बाद भी किसी भी स्तर पर इसे मान्यता दी जानी चाहिए.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अपीलकर्ता उस समय नाबालिग था, इसलिए मामले में किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2000 में निहित प्रावधान लागू होंगे. बेंच ने कहा, ‘परिणामस्वरूप निचली अदालत और हाईकोर्ट की ओर से सुनाई गई सजा को रद्द किया जाता है क्योंकि यह कायम नहीं रह सकती. हम तदनुसार आदेश देते हैं.’
बेंच ने किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2000 की धारा 15 और 16 के आलोक में मामले को उचित आदेश पारित करने के लिए बोर्ड के पास भेज दिया और अपीलकर्ता को 15 सितंबर को बोर्ड के समक्ष पेश होने का निर्देश दिया.
अधिनियम की धारा 15 जहां नाबालिग के संबंध में पारित किए जा सकने वाले आदेश से संबंधित है, वहीं धारा 16 नाबालिग के खिलाफ पारित न किए जा सकने वाले आदेश से जुड़ी हुई है. सुप्रीम कोर्ट का फैसला राजस्थान हाईकर्ट के जुलाई 2024 के फैसले के खिलाफ आरोपी की अपील पर आया.
[SAMACHAR]
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