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Ashok sundari: भगवान शिव के दो पुत्र कार्तिकेय और श्री गणेश जी के बारे में हर किसी को मालूम है. लेकिन क्या आप जानते हैं भगवान शिव और माता पार्वती की पुत्री भी थी. जिसका नाम था, ‘अशोक सुंदरी’. पद्म पुराण के अनुसार अशोक सुंदरी का जन्म एक विशेष तरह के वृक्ष ‘कल्पवृक्ष’ से हुआ था.
अशोक सुंदरी का जन्म मां पार्वती और शिव जी की इच्छाओं से हुआ था. जो परम सुंदरी होने के साथ ही संतोष से भरी देवी थी. पुराणों के अनुसार अशोक सुंदरी अपने भक्तों को सुंदरता और वैभव का आशीर्वाद प्रदान करती है. दक्षिण भारत में अशोक सुंदरी को ‘बाला त्रिपुरा सुंदरी’ और उत्तर भारत के विभिन्न क्षेत्रों में ‘देवी रायाकी’ और ‘देवी ज्वालामुखी’ के नाम से जाना जाता है.
अशोक सुंदरी का जन्म कैसे हुआ?
पद्म पुराण में अशोक सुंदरी की कहानी का उल्लेख वर्णित है. पद्म पुराण के अनुसार माता पार्वती शिवजी के साथ कैलाश में रहती थी. एक दिन माता पार्वती ने शिवजी के समक्ष सुंदर नंदन वन में घूमने की इच्छा जाहिर की, इस दौरान दोनों ने सुंदर नंदन वन में प्रकृति का आनंद उठाया.
लेकिन वन में घूमने के दौरान माता पार्वती को एक वृक्ष इतना मन मोहक लगा कि वो उस पेड़ के आकर्षण में डूब गई. माता पार्वती ने जब इस वृक्ष के बारे में जानना चाहा तो शिव जी ने कहा, ये वृक्ष को साधारण वृक्ष नहीं, बल्कि ‘कल्पवृक्ष’ है. जो सभी तरह की इच्छाओं को पूरा करता है.
माता पार्वती ने कल्पवृक्ष से पुत्री की इच्छा जताई
इसके बाद माता पार्वती ने कल्पवृक्ष की परीक्षा लेने के लिए एक सुंदर पुत्री की इच्छा जताई, जो फौरन ही पूरी हो गई. कल्प वृक्ष से बेहद ही सुंदर लड़की की उत्पत्ति हुई. कन्या ने माता पार्वती से पूछा आपने मुझे क्यों उत्पन्न किया? मुझे क्या काम करना है?
जिसपर माता पार्वती ने कहा कि, मैंने केवल तुम्हें जिज्ञासावश उत्पन्न किया है. परंतु अब जब तुम उत्पन्न हो गई हो, मैं तुम्हें अशोक सुंदरी का नाम देती हुं. भविष्य में चंद्र वंश में नहुष नाम के एक राजा का जन्म होगा, जिससे तुम्हारी शादी होगी. इस तरह अशोक सुंदरी माता पार्वती और शिवजी की पुत्री कहलाई.
अशोक सुंदरी ने असुर हुंडा को दिया श्राप
अशोक सुंदरी नाम का अर्थ है, एक ऐसी स्त्री जिसे कभी भी कोई दुख ना हो. पौराणिक कथाओं के अनुसार जब अशोक सुंदरी युवा हो गई तो मां पार्वती की इच्छाओं के विपरीत वो वन में तपस्या करने के लिए चली गई. वहां असुर हुंडा ने अशोक सुंदरी को तपस्या करते देखा और मोहित हो गया.
असुर हुंडा ने उनके सामने विवाह का प्रस्ताव रखा, जिसे अशोक सुंदरी ने ठुकराते हुए कहा कि, मेरे माता पिता ने पहले से मेरी शादी नहुष नाम के व्यक्ति से तय कर दिया है.
जिसके बाद असुर हुंडा ने छल से एक विधवा का रूप धारण करके अशोक सुंदरी को उसके निवास स्थान तक चलने का अनुरोध किया. अशोक सुंदरी विधवा के निवास स्थान पर चल पड़ी. थोड़ी देर बाद जब असुर हुंडा का महल सामने आया तो अशोक सुंदरी को उसका छल समझ आ गया.
जिसके बाद अशोक सुंदरी ने असुर हुंडा को श्राप देते हुए कहा कि उसका वध नहुष द्वारा होगा. जिसके बाद डर और मायूसी के साथ अशोक सुंदरी अपने माता पिता के निवास स्थान कैलाश पर्वत वापस लौट गई.
नहुष और अशोक सुंदरी का विवाह
जब असुर हुंडा को नहुष के बारे में पता चला तो उसने नहुष को मारने के लिए कई तरह के प्रयास किए, जो विफल साबित रहे. इसके बाद नहुष के माता पिता ने उसे ऋषि वशिष्ठ के आश्रम भेज दिया. जहां आश्रम में नहुष ने तमाम शस्त्र और शास्त्र का अध्ययन किया है और पहले से तय चीजों के अनुसार असुर हुंडा का वध किया.
असुर हुंडा की मौत के बाद अशोक सुंदरी और नहुष का विवाह हुआ. दोनों को एक सुंदर पुत्र की प्राप्ति हुई. जिसका नाम ययाति था. ययाति ने ही यदुवंशी और पुर्वेंशी की स्थापना की थी. जो आगे चलकर महाभारत के नायक कौरवों और पांडवों के पूर्वज बनें.
नहुष बना स्वर्ग का राजा
हिंदू शास्त्र के अनुसार नहुष चंद्र वंश के शासक थे. नहुष आयु के पुत्र थे, जो पूर्वा के ज्येष्ठ पुत्र थे और उनकी माता प्रभा जो स्वर भानु की बेटी थी. नहुष और अशोक सुंदरी को 6-7 पुत्र भी हुए थे. जिसमें सबसे बड़े पुत्र यति ने मुनि बनने का फैसला लिया. नहुष के दूसरे पुत्र ययाति ने उत्तराधिकारी के रूप में राज्य का शासन अपने हाथ में लिया और राजा बनें.
कहा जाता है है कि इंद्र की गुमशुदगी पर स्वर्ग का राजा नहुष को घोषित किया गया. जिसके बाद नहुष के अंदर अहंकार आ गया. उन्होंने इंद्र की पत्नी इंद्राणी को लुभाने का प्रयास किया, जिसके कारण उन्हें श्राप मिला और उन्हें सर्प रूप धारण करना पड़ा.
नहुष इस रूप में तब तक रहे जब तक की उनकी मुलाकात युधिष्ठिर से नहीं हुई. ये घटना तब घटी जब पांडव हिमालय की ओर अपनी अंतिम यात्रा कर रहे थे. इस दौरान भीम की नजर एक सर्प की ओर गई.
जिसके बाद युधिष्ठिर ने उन्हें श्राप से मुक्ति दिलाई. अशोक सुंदरी, असुर हुंडा और नहुष की कहानी से ये सीख मिलती है कि सुंदरता का लालच आपको किस हद तक अधर्म के रास्ते में धकेल सकता है.
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