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US on Iran Nuclear Programme: इजरायल-ईरान की जंग के बीच अमेरिका ने ईरान के तीन परमाणु ठिकानों पर जोरदार हमला किया. इस हमले के पीछे अमेरिका का मकसद ईरान के परमाणु हथियार बनाने की योजना को नष्ट करना था. लेकिन इतिहास के पन्ने पलटने पर पता चलता है कि जो अमेरिका आज ईरान को परमाणु हथियार हासिल करने से रोकना चाहता है, कभी उसी अमेरिका ने ईरान को परमाणु हथियार बनाने के लिए न्यूक्लियर रिएक्टर, यूरेनियम और अन्य महत्वपूर्ण चीजें मुहैया कराई थी.

वो 1951 का साल था. तब भी ईरान के पास तेल का बड़ा भंडार हुआ करता था, जो दुनिया के कुल तेल भंडार का 10 फीसदी से भी ज्यादा था. अमेरिका और ब्रिटेन जैसे देश तेल के इस बड़े से भंडार पर अपना कब्जा जमाना चाहते थे. ईरान के प्रधानमंत्री मोहम्मद मोसद्दिक को भी इस बात का बखूबी एहसास था.

वहीं, अमेरिका और ब्रिटेन की कई कंपनियां थीं, जो ईरान में तेल निकालने का काम करती थीं. इन्हीं में से एक कंपनी थी AIOC यानी कि एंग्लो ईरानियन ऑयल कंपनी, जो एक ब्रिटिश कंपनी थी. ईरान के प्रधानमंत्री मोहम्मद मोसद्दिक ने इस कंपनी के ऑडिट का आदेश दिया और इस बात की जांच शुरू करवा दी कि क्या ये कंपनी ठीक तरीके से तेल निकाल रही है और क्या ये कंपनी ईरान सरकार को तय किया हुआ टैक्स दे रही है. लेकिन, कंपनी ने ईरान के अधिकारियों को ऑडिट करवाने से इनकार कर दिया. इससे ईरान के प्रधानमंत्री मोसद्दिक नाराज हो गए. संसद के जरिए उन्होंने एक कानून बनाया और कानून के तहत ईरान के सभी तेल के कुंओं का राष्ट्रीयकरण कर दिया गया.

ईरान के तेल के कुंओं का किया राष्ट्रीयकरण, ब्रिटेन ने लगाए प्रतिबंध

ईरान के नए कानून की वजह से ब्रिटेन का प्रभुत्व ईरान के तेल पर खत्म होने लगा. तब ब्रिटेन के प्रधानमंत्री क्लीमेंट एटली और फिर विंस्टन चर्चिल ने ईरान पर तमाम आर्थिक प्रतिबंध लगा दिए और पूरी दुनिया को ईरान के खिलाफ गोलबंद करने की कोशिश की. इसमें जब कामयाबी नहीं मिली तो ब्रिटेन के प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल ने अमेरिकी राष्ट्रपति ड्वाइट डी आइजनहोवर से हाथ मिला लिया.

अमेरिका और ब्रिटेन ने ईरान में चलाया ऑपरेशन, किया तख्तापलट

तब अमेरिका और ब्रिटेन दुनिया के सबसे ताकतवर देश थे. दूसरा विश्वयुद्ध जीतने वाले देश थे. तो उन्होंने अपनी ताकत का इस्तेमाल किया. इसके बाद अमेरिका ने ईरान में ऑपरेशन अजाक्स चलाया और ब्रिटेन ने ईरान के खिलाफ ऑपरेशन बूट लॉन्च किया.  इन दोनों महाशक्तियों के ऑपरेशन को ईरान के सैनिकों का भी साथ मिल गया. नतीजा ये हुआ कि ईरान में तबाही मच गई और 19 अगस्त को चुने हुए ईरानी प्रधानमंत्री मोहम्मद मोसद्दिक का तख्ता पलट हो गया.

ईरानी राजा ने अमेरिका से जताई परमाणु हथियार की मंशा, राष्ट्रपति ने दी सहमति

ये बात साल 1953 की है. मोहम्मद मोसद्दिक का तख्तापलट कर जनरल फजलोलाह जहीदी को ईरान की कमान दे दी और तय किया कि ईरान में अब राजशाही होगी और ईरान के राजा शाह रजा पहलवी बनेंगे. वहीं दूसरी तरफ, मोहम्मद मोसद्दिक को तीन साल की सजा दी गई और बाद में उन्हें ताउम्र के लिए उनके घर में ही कैद कर दिया गया.

ईरान में फिर से राजशाही आ गई थी और अमेरिका के समर्थक शाह रजा पहलवी ईरान के नए राजा थे. राजा ने अमेरिका के सामने मंशा जाहिर की कि ईरान के पास भी परमाणु हथियार होने चाहिए. हालांकि, पहलवी ने तब कहा कि परमाणु हथियार का मकसद शांति के लिए है, जंग के लिए नहीं. अमेरिकी राष्ट्रपति ड्वाइट डी आइजनहोवर भी पहलवी की बात से सहमत हो गए. एक समझौता हुआ एटम फॉर पीस.

समझौते के 14 साल बाद US ने मुहैया कराई परमाणु हथियार बनाने के सभी वस्तुएं

इस समझौते के करीब 14 साल बाद अमेरिका ने साल 1967 में ईरान को परमाणु हथियार बनाने के लिए एक न्यूक्लियर रिएक्टर दिया. इसके अलावा, अमेरिका ने ही ईरान को यूरेनियम भी दिया. ईरान ने इसपर काम शुरू किया. यूरेनियम का संवर्धन शुरू किया. लेकिन, मेडिकल इक्विपमेंट से आगे ईरान का ये काम बढ़ ही नहीं पाया. क्योंकि जिस दोस्त अमेरिका ने ईरान को ये सब दिया था, 1979 में शाह रजा पहलवी के तख्तापलट के साथ ही वही अमेरिका ईरान का दुश्मन हो गया.

खामेनेई की सत्ता आते ही ईरान-अमेरिका बन गए दुश्मन

ईरान में अयातुल्लाह अली खामेनेई की शासन के साथ ही ईरान एक इस्लामिक देश बन गया, वहां शरिया लागू हो गया और फिर 1980 आते-आते अमेरिका ने न सिर्फ ईरान से सारे रिश्ते खत्म किए बल्कि सद्दाम हुसैन के नेतृत्व में इराक ने जब ईरान पर हमला किया तो अमेरिका खुलकर इराक के साथ आ गया. वहां से ईरान-अमेरिका की जो दुश्मनी शुरू हुई, वो आजतक कायम है और इस मोड़ पर है कि जो अमेरिका रिएक्टर और यूरेनियम देकर ईरान को परमाणु संपन्न बनाना चाहता था, उसी अमेरिका ने ईरान के परमाणु संयंत्रों पर हमला करके उसे तबाह कर दिया.

[SAMACHAR]

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