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2 घंटे पहले
ग़ज़ा में तत्काल बिना शर्त और स्थायी युद्धविराम की मांग करने वाले प्रस्ताव पर संयुक्त राष्ट्र महासभा (यूएनजीए) में हुई वोटिंग से भारत ने दूरी बना ली, जिसके बाद कांग्रेस ने केंद्र सरकार को घेरा है.
दरअसल गुरुवार को संयुक्त राष्ट्र महासभा में ग़ज़ा में युद्धविराम को लेकर ‘नागरिकों की सुरक्षा और क़ानूनी और मानवीय दायित्व कायम रखना’ शीर्षक से एक प्रस्ताव पेश किया गया था.
जहां 193 देशों में से 149 देशों ने इस प्रस्ताव के पक्ष में वोट किया. हालांकि, भारत उन 19 देशों में से एक था जिन्होंने इस वोटिंग से दूरी बनाई.
अमेरिका के सहयोगी रहे कई देशों ने इसके पक्ष में वोट किया है. दक्षिण एशिया में भारत को छोड़कर बाकी सभी मुल्कों ने इस प्रस्ताव के पक्ष में वोट किया है.
संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि, पर्वतानेनी हरीश ने कहा कि भारत यकीन करता है कि बातचीत और कूटनीति से ही समस्या का हल निकल सकता है.
इसके बाद इस मुद्दे विपक्षी पार्टी कांग्रेस सरकार की आलोचना कर रही है.
पार्टी के अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने सरकार पर निशाना साधा और कहा कि “इस कदम से भारत एक तरह से अलग-थलग पड़ गया है.”
वहीं वायनाड से कांग्रेस सांसद प्रियंका गांधी ने इसे “शर्मनाक और निराशाजनक” कहा है.
संयुक्त राष्ट्र में हुई वोटिंग में क्या हुआ?
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शुक्रवार को संयुक्त राष्ट्र महासभा में एक प्रस्ताव पेश किया गया जिसमें ग़ज़ा में तत्काल, बिना शर्त और स्थायी युद्धविराम की मांग की गई. साथ ही ग़ज़ा में बंधक बनाए गए सभी लोगों की तत्काल और बिना शर्त रिहाई की भी मांग की गई.
20 से अधिक देशों के लाए इस प्रस्ताव में भुखमरी का इस्तेमाल हथियार के रूप में करने की कड़ी आलोचना की गई. साथ ही मानवीय सहायता पर इसराइल की नाकेबंदी को पूरी तरह से हटाने और अंतरराष्ट्रीय क़ानून के तहत ग़ज़ा में लोगों की सुरक्षा की बात की गई.
यूएन की वेबसाइट में इस प्रस्ताव के बारे में दी जानकारी में लिखा गया है कि बीते सप्ताह संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में इस तरह का प्रस्ताव पास नहीं हो सका था क्योंकि एक स्थायी सदस्य, अमेरिका ने वीटो कर दिया था.
महासभा में इस प्रस्ताव को 149 वोट मिले जिसके बाद इसे अडॉप्ट कर लिया गया. यूएन के अनुसार 12 सदस्य देशों ने प्रस्ताव के विरोध में वोट किया, वहीं 19 ने इसमें वोट करने से दूरी बनाई.
प्रस्ताव के विरोध में वोट करने वाले देश– अर्जेंटीना, फिजी, हंगरी, इसराइल, माइक्रोनेशिया, नाउरू, पालाउ, पापुआ न्यू गिनी, पराग्वे, टोंगा, तुवालु और अमेरिका.
प्रस्ताव पर वोट न करने वाले देश– अल्बानिया, कैमरून, चेचिया, उत्तर कोरिया, डॉमिनिका, इक्वाडोर, इथियोपिया, जॉर्जिया, इंडिया, किरीबाती, मलावी, मार्शल आइलैंड्स, उत्तर मैसेडोनिया, पनामा, रोमानिया, स्लोवाकिया, दक्षिणी सूडान, तिमोर लेस्ते और टोगो.
इस लिस्ट को देखें तो अमेरिका के सहयोगी माने जाने वाले ऑस्ट्रेलिया, जापान, दक्षिण कोरिया, सऊदी अरब, फ्रांस, जर्मनी ने इसके पक्ष में वोट किया है.
वहीं एक दक्षिण एशिया के देशों में, बांग्लादेश, भूटान, नेपाल, पाकिस्तान, श्रीलंका और मालदीव ने इसके पक्ष में वोट किया है.
संयुक्त राष्ट्र में भारत ने क्या कहा?
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वोटिंग से पहले संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि, पर्वतानेनी हरीश ने भारत का पक्ष महासभा के सदस्यों के सामने रखा.
उन्होंने आगे कहा कि भारत हमेशा से शांति और मानवता का पक्षधर रहा है.
उन्होंने कहा, “हमने बार-बार नागरिकों की सुरक्षा और मानवीय दायित्वों को बनाए रखने की अपील की है. हम अपील करते हैं कि ग़ज़ा के लोगों तक सुरक्षित, लगातार और समय पर मानवीय मदद पहुंचाई जाए.”
पर्वतानेनी हरीश ने यूएन महासभा में दिए अपने संबोधन में कहा, “भारत ये मानता है कि ग़ज़ा में मानवीय हालात सुधारने के लिए बचे हुए बंधकों की रिहाई और युद्धविराम महत्वपूर्ण है. भारत मानता है कि आगे बढ़ने का एकमात्र रास्ता बातचीत और कूटनीति का है.”
इसके बाद उन्होंने कहा, “इसराइल और फ़लस्तीन के मुद्दे पर भारत हमेशा से द्वि-राष्ट्र समाधान का समर्थन करता रहा है, जिसमें एक संप्रभु और स्वतंत्र फ़लस्तीनी राज्य की स्थापना हो, जो शांतिपूर्वक तरीके से, सुरक्षित और मान्यता प्राप्त सीमाओं के भीतर इसराइल के साथ-साथ रह सके.”
पर्वतानेनी हरीश ने एक बार फिर संवाद और कूटनीति की ज़रूरत पर ज़ोर दिया और कहा कि हमें मिलकर दोनों पक्षों के बीच शांति वार्ता जल्द बहाल करने के लिए परिस्थितियां बनाने की दिशा में काम करना चाहिए.
उन्होंने आगे कहा, “भारत ने इससे पहले यूएन के प्रस्ताव A/RES/77/247 और A/RES/79/232 में वोटिंग में हिस्सा नहीं लिया था. आज भी भारत उसी क्रम में वोटिंग करना चाहता है. हम मानते हैं कि संघर्षों को संवाद और कूटनीति के ज़रिए ही हल किया जा सकता है. हमारी कोशिश दोनों को क़रीब लाने की दिशा में होनी चाहिए. भारत इस प्रस्ताव पर भाग नहीं ले रहा.”
वोटिंग की टाइमिंग
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संयुक्त राष्ट्र महासभा में ये प्रस्ताव ऐसे समय पेश किया गया है जब इसराइल ने ईरान के ख़िलाफ़ हमले शुरू कर दिए हैं.
इन्हीं हमलों के बीच शुक्रवार को इसराइल के प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू ने पीएम नरेंद्र मोदी से फ़ोन पर बात की.
इस बारे में अपने सोशल मीडिया पर जानकारी देते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने लिखा, “इसराइल के प्रधानमंत्री नेतन्याहू ने मुझे फ़ोन किया था. उन्होंने मुझे मौजूदा स्थिति के बारे में जानकारी दी. मैंने उन्हें भारत की चिंताओं के बारे में बताया और क्षेत्र में शांति और स्थिरता की शीघ्र बहाली की आवश्यकता पर ज़ोर दिया.”
दूसरी तरफ विदेश मंत्री एस जयशंकर फ्रांस में हैं जहां वो मार्सिले में मध्यपूर्व को लेकर एक सम्मेलन में हिस्सा ले रहे हैं. फ्रांस ने प्रस्ताव के पक्ष में वोट किया है.
विपक्ष ने की सरकार की आलोचना
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कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने अपने सोशल मीडिया हैंडल पर लिखा, “भारत उन 19 देशों में से एक था, जिन्होंने वोटिंग में हिस्सा नहीं लिया. इस कदम से हम एक तरह से अलग-थलग पड़ गए हैं.”
कांग्रेस के अन्य नेताओं, केसी वेणुगोपाल और पवन खेड़ा ने भी संयुक्त राष्ट्र में भारत के रुख की कड़ी आलोचना की है.
मल्लिकार्जुन खड़गे ने लिखा, “अब यह बात स्पष्ट होती जा रही है कि हमारी विदेश नीति में गड़बड़ियां हो रही हैं. प्रधानमंत्री मोदी को अब अपने विदेश मंत्री की बार-बार की गई ग़लतियों पर विचार करना चाहिए और जवाबदेही तय करनी चाहिए.”
उन्होंने लिखा कि जब एक क्षेत्र भीषण हिंसा, मानवीय तबाही और बढ़ती अस्थिरता झेल रहा है तो भारत को चुप नहीं रहना चाहिए.
उन्होंने सवाल किया, “क्या भारत ने मध्य पूर्व और पश्चिम एशिया में युद्धविराम, शांति और बातचीत की वकालत करने वाले अपना रुख़ छोड़ दिया है?”
वहीं कांग्रेस सांसद प्रियंका गांधी ने अपने सोशल मीडिया हैंडल पर लिखा, “यह शर्मनाक और निराशाजनक है कि हमारी सरकार ने प्रस्ताव पर वोटिंग से अलग रहने का फै़सला किया है. 60,000 लोग पहले ही मारे जा चुके हैं, जिनमें अधिकांश महिलाएं और बच्चे हैं. वहां की पूरी आबादी को बंधक बनाकर भूख से मारा जा रहा है और हम कोई कदम उठाने से इनकार कर रहे हैं.”
उन्होंने ईरान पर इसराइल के हमलों का भी ज़िक्र किया और लिखा, “हम इसराइली प्रधानमंत्री नेतन्याहू के एक इलाक़े को नष्ट किए जाने पर चुप हैं.”
उन्होंने सवाल किया, “एक राष्ट्र के रूप में हम अपने संविधान के सिद्धांतों और स्वतंत्रता संग्राम के मूल्यों को कैसे छोड़ सकते हैं, जिन्होंने शांति और मानवता के आधार पर दुनिया के लिए रास्ता दिखाया है?”
उन्होंने लिखा, “ग्लोबल लीडरशिप न्याय की रक्षा करने के साहस की मांग करती है और भारत ने इससे पहले बार-बार ये दिखाया है. तेज़ी से बंट रही दुनिया में हमें मानवता के लिए अपनी आवाज़ फिर से उठानी होगी और सत्य और अहिंसा के लिए बिना डरे खड़ा होना होगा.”
भारत के रुख़ पर सोशल मीडिया में चर्चा
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संयुक्त राष्ट्र महासभा में भारत की वोटिंग की चर्चा सोशल मीडिया पर भी है. विपक्ष के नेताओं के अलावा विदेश नीति और कूटनीति मामलों के जानकार भी इस पर टिप्पणी कर रहे हैं.
वरिष्ठ पत्रकार सुशांत सिंह ने लिखा, “यहां तक कि भूटान ने भी प्रस्ताव के पक्ष में मतदान किया, जबकि भारत ने इससे दूरी बना ली. ग्लोबल साउथ को भूल जाइए, दक्षिण एशिया में अपने सबसे क़रीबी साथी को भी आप साथ नहीं ले पा रहे हैं. यही भारत के घटते प्रभाव की सच्चाई है.”
द हिंदू अख़बार की कूटनीति मामलों की संपादक सुहासिनी हैदर ने लिखा, “इसी तरह के एक प्रस्ताव पर वोटिंग के केवल 6 महीने बाद, भारत ने यूएन में ग़ज़ा युद्धविराम को लेकर प्रस्ताव पर मतदान नहीं किया.”
“भारत का वोट सभी अन्य दक्षिण एशियाई देशों, ब्रिक्स देशों, शंघाई कोऑपरेशन संगठन में शामिल देशों, सभी जी7 देशों (अमेरिका को छोड़कर) से अलग है. भारत की तरफ से प्रतिनिधि ने कहा कि भारत संवाद के पक्ष में है.”
इससे पहले दिसंबर 2024 में संयुक्त राष्ट्र महासभा में ग़ज़ा में तत्काल मानवीय मदद पहुंचाने को लेकर एक प्रस्ताव पेश हुआ था. उस वक्त भारत ने इसके पक्ष में वोट किया था.
वरिष्ठ पत्रकार पंकज पचौरी ने इसे कूटनीतिक फेल्योर बताया है. उन्होंने लिखा, “भारत न तो ‘लोगों की सुरक्षा’ के लिए हमला करने वाले की आलोचना कर सकता है और न ही संयुक्त राष्ट्र में ग़ज़ा में युद्धविराम के लिए वोट कर सकता है. और हम दुनिया का नेतृत्व करना चाहते हैं?”
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित
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