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- Author, अवतार सिंह
- पदनाम, बीबीसी संवाददाता
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11 जून 2025
दिल्ली के न्यू फ्रेंड्स कॉलोनी इलाक़े में रहने वाली 95 वर्षीय डॉक्टर स्नेह भार्गव को 31 अक्तूबर 1984 की वह सुबह आज भी याद है, जब एम्स में निदेशक के तौर पर उनका पहला दिन था और अचानक प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को गोलियों से घायल अवस्था में अस्पताल लाया गया था.
डॉक्टर स्नेह भार्गव कहती हैं, “31 अक्तूबर 1984 एक सामान्य व्यस्त सुबह थी. मैं रेडियोलॉजी विभाग में एक महत्वपूर्ण केस पर चर्चा कर रही थी. लेकिन एक रेडियोग्राफर दौड़ता हुआ आया और कहा कि प्रधानमंत्री कैजुअल्टी (इमरजेंसी) में आई हैं. मुझे लगा कि प्रधानमंत्री बिना सुरक्षा और सूचना के नहीं आ सकती. यह प्रोटोकॉल नहीं है. मुझे लगा कि कुछ गड़बड़ है.”
“मैं इमर्जेंसी विभाग की ओर भागी. वहां दो युवा डॉक्टर बैठे थे, जो घबराए हुए लग रहे थे. मैंने पूछा कि प्रधानमंत्री कहां हैं, और उन्होंने उस ट्रॉली की ओर इशारा किया जिस पर इंदिरा गांधी बिना चादर के लेटी हुई थीं.”
घटना के क़रीब चार दशक बाद डॉक्टर स्नेह भार्गव ने हाल ही में अपनी यादों पर एक किताब लिखी है. यह किताब ‘द वुमन हू रैन एम्स’ नाम से प्रकाशित हुई है.
‘इंदिरा गांधी खून से लथपथ थीं’
साल 1930 में पंजाब के फिरोजपुर में जन्मी डॉक्टर स्नेह भार्गव साल 1984 से 1990 तक एम्स की पहली महिला निदेशक थीं.
उस दिन को याद करते हुए डॉक्टर स्नेह कहती हैं, “इंदिरा गांधी खून से लथपथ थीं. मैंने उनका चेहरा देखा. मैंने उनके कुछ सफ़ेद बाल देखे, जोकि उनकी हेयर स्टाइल थी, प्रधानमंत्री की हालत ये थी. ट्रॉली पर भी गोलियाँ पड़ी थीं.”
भारतीय सेना ने जून 1984 में सिखों के प्रमुख धार्मिक स्थल श्री दरबार साहिब, अमृतसर पर सैन्य अभियान चलाया था, जिसे ऑपरेशन ‘ब्लू स्टार’ कहा गया.
भारत सरकार के मुताबिक़, यह सैन्य अभियान जरनैल सिंह भिंडरावाले और उसके हथियारबंद साथियों को दरबार साहिब परिसर से बाहर निकालने के लिए चलाया गया था.
ऑपरेशन ‘ब्लू स्टार’ के पांच महीने बाद, 31 अक्तूबर 1984 को उस वक़्त की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को दिल्ली स्थित उनके आवास पर उनके सिख अंगरक्षकों ने गोलियां मार दीं.
गोली लगने के बाद इंदिरा गांधी को अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) ले जाया गया.
इंदिरा गांधी की हत्या
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इंदिरा गांधी भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू की पुत्री थीं.
उन्होंने जून 1975 से मार्च 1977 तक 21 महीनों के लिए आपातकाल लागू किया था.
1970 के दशक के शुरुआती वर्षों में दमदमी टकसाल के प्रमुख जरनैल सिंह भिंडरावाले सिख मुद्दों को मुखरता से उठाने के कारण राजनीति का केंद्र बिन्दु बन गये थे.
साल 1984 में इंदिरा गांधी ने अमृतसर में सिखों के धार्मिक स्थल स्वर्ण मंदिर में जरनैल सिंह भिंडरावाले और उसके साथियों के ख़िलाफ़ एक बड़े सैन्य अभियान का आदेश दिया.
ऑपरेशन ब्लू स्टार के नाम से चर्चित इस सैन्य अभियान में सैनिकों और श्रद्धालुओं समेत क़रीब 400 लोग मारे गए थे.
सिख समूह इस आंकड़े पर विवाद करते हैं और दावा करते हैं कि इस अभियान में हजारों लोग मारे गए थे.
इस कार्रवाई के कुछ ही महीनों के भीतर इंदिरा गांधी की उनके सिख सुरक्षाकर्मियों ने हत्या कर दी थी.
एम्स के डॉक्टरों ने क्या कोशिश की?
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डॉक्टर स्नेह भार्गव का कहना है कि दो मिनट के अंदर दो सर्जनों को बुलाया गया और उन्होंने इंदिरा गांधी की जांच की.
वो कहती हैं, “मुझे बताया गया कि फ़िलहाल नब्ज़ नहीं चल रही है लेकिन अगर उन्हें हार्ट-लंग मशीन पर रखा जाए तो शायद कुछ हो सकता है. मैंने कहा कि फिर इंतज़ार करने का क्या मतलब है, दौड़ो. हम जल्दी से प्रधानमंत्री को ऑपरेशन थियेटर में ले गए और सर्जन को सौंप दिया.”
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डॉक्टर स्नेह बताती हैं कि इंदिरा गांधी का ब्लड ग्रुप बी-नेगेटिव था, जो बहुत दुर्लभ है. उनके पास रेफ्रिजरेटर में बहुत कम बोतलें थीं. ऐसे में डॉक्टर ओ-नेगेटिव का इस्तेमाल करते हैं.
वे आगे कहती हैं, “मेडिकल सुपरिटेंडेंट ने दिल्ली के सभी अस्पतालों से खून इकट्ठा करना शुरू कर दिया. वे उन्हें गर्दन के एक तरफ से खून दे रहे थे जो नीचे से निकल रहा था.”
सोनिया गांधी की हालत क्या थी?
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जब इंदिरा गांधी को गोली मारी गई, उस समय उनके बेटे राजीव गांधी पश्चिम बंगाल में चुनाव प्रचार कर रहे थे.
जब इंदिरा गांधी को अस्पताल लाया गया तो राजीव गांधी की पत्नी सोनिया गांधी और उनके बच्चे भी वहां पहुंचे.
डॉक्टर स्नेह भार्गव कहती हैं, “राहुल गांधी और प्रियंका गांधी भी सोनिया गांधी के साथ एम्स आए थे, लेकिन बाद में दोनों बच्चों को तेजी बच्चन के घर भेज दिया गया और सोनिया गांधी वहीं रहीं. सोनिया को अस्थमा का दौरा पड़ा था. फिर उन्हें दवा देकर ठीक किया गया. उन्हें ऑपरेशन थियेटर के बाहर वाले कमरे में बैठा दिया गया.”
वे कहती हैं, “सोनिया को देखना (संभालना) मेरी ज़िम्मेदारी थी. ख़बर फैलने के बाद लोग लगातार आ रहे थे. मैं सोनिया से पूछती रहती थी कि किसे अंदर आने देना है और किसे नहीं.”
क्या मृत्यु के बारे में बताने में देरी हुई?
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डॉक्टर भार्गव बताती हैं कि उस वक़्त देश के राष्ट्रपति ज्ञानी ज़ैल सिंह विदेश में थे.
राजीव गांधी समेत कोई भी वरिष्ठ नेता दिल्ली में नहीं थे. हालांकि इंदिरा गांधी के निजी सचिव आरके धवन और राजनीतिक सलाहकार माखन लाल फोतेदार अस्पताल में मौजूद थे.
डॉक्टर भार्गव कहती हैं, “स्वास्थ्य मंत्री (बी शंकरानंद) और दूसरे कांग्रेस नेता आपस में बहस करते रहे. बाद में हमें बताया गया कि शून्य न पैदा हो, इसलिए आपको यह घोषणा नहीं करना चाहिए कि उनकी मृत्यु हो गई है.”
‘ज्ञानी जै़ल सिंह डरे हुए थे’
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इंदिरा गांधी की मृत्यु की ख़बर से दिल्ली और देश के अन्य हिस्सों में सिख विरोधी माहौल पैदा हो गया.
इस घटना के समय राष्ट्रपति ज्ञानी जै़ल सिंह यमन की यात्रा पर थे. वे भारत के पहले सिख राष्ट्रपति थे. इंदिरा गांधी की मौत की ख़बर सुनकर वे तुरंत भारत लौट आए.
डॉक्टर भार्गव ने अपनी किताब में लिखा है कि ज्ञानी जै़ल सिंह शाम क़रीब 5:20 बजे अस्पताल पहुंचे, उस समय वे काफ़ी सदमे में और डरे हुए दिख रहे थे.
वो कहती हैं, “ज़ैल सिंह भी डरे हुए थे क्योंकि ख़बर फैल चुकी थी कि सिख सुरक्षाकर्मियों ने गोलियाँ चलाई हैं. वे कुछ देर रुके और राजीव गांधी को आने दो, कहते हुए चले गए.”
राजीव गांधी की हालत क्या थी?
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इस किताब में स्नेह भार्गव लिखती हैं कि जब राजीव गांधी अस्पताल पहुंचे तो उन्होंने कुछ देर के लिए सोनिया गांधी से मुलाक़ात की.
वो राजीव गांधी की स्थिति के बारे में लिखती हैं, “वह सदमे में थे, लेकिन शांत थे. बाद में, उन्होंने मुझे बताया कि उन्होंने अपनी मां को अपने एक सिख सुरक्षा गार्ड के बारे में चेतावनी दी थी, क्योंकि वह संदिग्ध लग रहा था. वे अपनी मां के शव के पास ज़्यादा देर तक नहीं रुके.”
एम्स में सिख कर्मचारियों की स्थिति क्या थी?
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इंदिरा गांधी की मृत्यु के बाद दिल्ली में सिख विरोधी दंगे भड़के.
सिख विरोधी दंगों की जांच के लिए सरकार ने नानावटी आयोग का गठन किया था, जिसके अनुसार इन दंगों में 2,733 सिख मारे गए थे. हालांकि, सरकारी आंकड़ों और सिख संगठनों के दावों में अंतर है.
डॉक्टर भार्गव अपनी किताब में लिखती हैं कि आग के कारण कई लोगों को जली हुई हालत में भी एम्स लाया गया था.
उनका कहना है कि इंदिरा गांधी की मौत से एम्स में काम करने वाले सिख कर्मचारी भी घबरा गए थे.
वो कहती हैं, “एक टेक्नीशियन जो मदद कर रहा था, वह भी सिख था. जब उसे पता चला कि सिखों ने इंदिरा गांधी को मार दिया है, तो वह घबरा गया और तुरंत ऑपरेशन थियेटर से भाग गया. मेरा मुख्य रेडियोग्राफ़र भी सिख था. मैंने आईजी पुलिस को एम्स में पुलिस तैनात करने के लिए कहा ताकि हमारा स्टाफ़ सुरक्षित महसूस कर सके.”
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित
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