[NEWS]
इमेज स्रोत, Getty Images
- Author, मुनज़्ज़ा अनवार, मोहम्मद सोहैब
- पदनाम, बीबीसी उर्दू संवाददाता
-
11 जून 2025
भारत और पाकिस्तान के बीच मई में चार दिनों तक संघर्ष चला. अब दोनों देशों में कूटनीतिक मोर्चे से लेकर अपनी रक्षा क्षमताओं को बेहतर बनाने के बारे में चर्चा हो रही है.
भारतीय विदेश मंत्रालय ने मई के अंत में आधुनिकतम ‘फ़िफ़्थ जेनरेशन स्टेल्थ’ लड़ाकू विमान देश में बनाने की मंज़ूरी दी थी. एयरोनॉटिकल डेवलपमेंट एजेंसी इस प्रोजेक्ट को भारत में काम करने वाली प्राइवेट कंपनियों के साथ मिलकर अंजाम देगी.
इसके अलावा भारत में इसके बारे में भी बहस हो रही है कि क्या उसकी वायु सेना को रूसी एसयू 57 या अमेरिकी एफ़ 35 और एफ़ 22 रैप्टर ख़रीद लेना चाहिए.
बीबीसी हिंदी के व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ने के लिए यहाँ क्लिक करें
ऐसे में पाकिस्तान सरकार की ओर से सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म ‘एक्स’ पर एक पोस्ट में यह दावा किया गया कि प्रधानमंत्री मोहम्मद शहबाज़ शरीफ़ की अध्यक्षता में पाकिस्तान ने कई बड़ी कूटनीतिक सफलताएं हासिल की हैं. इनमें चीन की ओर से 40 फ़िफ़्थ जेनरेशन जे 35 स्टेल्थ जेट, केजे 500 अवाक्स, 19 एचक्यू डिफ़ेंस सिस्टम की पेशकश और 3.7 अरब डॉलर के क़र्ज़ की अदायगी के लिए और वक़्त देना भी शामिल है.
अभी तक चीन की ओर से इसके बारे में कोई बयान सामने नहीं आया है.
ब्लूमबर्ग ने एक रिपोर्ट में बताया है कि पाकिस्तान की ओर से जे 35 जेट समेत दूसरे चीनी मूल के रक्षा सामान ख़रीदने में दिलचस्पी दिखाने के बाद सोमवार को चीनी रक्षा कंपनियों के स्टॉक्स में तेज़ी का रुझान देखा गया.
ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के अनुसार, जे 35 स्टेल्थ फ़ाइटर जेट्स बनाने वाली कंपनी एवीआईसी शेनयांग एयरक्राफ़्ट कंपनी के स्टॉक प्राइस में सोमवार को 9.3 फ़ीसदी का इज़ाफ़ा देखने को मिला.
जे 35 स्टेल्थ फ़ाइटर जेट्स में पाकिस्तान की दिलचस्पी के बारे में ख़बरें पिछले साल से ही गर्म थीं और यह पहली बार है कि पाकिस्तान सरकार ने इस कथित चीनी पेशकश का ज़िक्र औपचारिक तौर पर किया है.
फ़िफ़्थ जेनरेशन स्टेल्थ फ़ाइटर जेट क्यों ज़रूरी?
इमेज स्रोत, Getty Images
फ़िफ़्थ जेनरेशन स्टेल्थ फ़ाइटर जेट्स में ऐसा क्या है कि भारत और पाकिस्तान की एयरफ़ोर्स उन्हें हासिल करने के लिए बेताब हैं?
इसकी जानकारी लेने के लिए हमने अटलांटिक काउंसिल के सीनियर फ़ेलो और पूर्व पेंटागन अधिकारी एलेक्स पित्सास और पाकिस्तान की वायुसेना में एयरक्राफ़्ट डिज़ाइन के क्षेत्र में पिछले दो दशकों से काम करने वाले एयर कमोडोर रज़ा हैदर (रिटायर्ड) से बात की.
एयर कमोडोर रज़ा हैदर सेंटर फ़ॉर एयरोस्पेस ऐंड सिक्योरिटी स्टडीज़ में इमर्जिंग टेक्नोलॉजीज़ के डायरेक्टर के तौर पर काम कर रहे हैं.
उन्होंने बीबीसी को बताया कि ‘इस वक़्त दुनिया में केवल पांच ऑपरेशनल फ़िफ़्थ जेनरेशन फ़ाइटर जेट्स हैं और यह अमेरिका, रूस और चीन के पास हैं. अमेरिका के पास एफ़ 22 रैप्टर और एफ़ 35 मौजूद हैं, रूस का फ़िफ़्थ जेनरेशन जेट एसयू 57 है जबकि चीन के पास भी दो फ़िफ़्थ जेनरेशन विमान हैं जिनमें जे 20 और जे 35 शामिल हैं.’
उनके मुताबिक़, “इनके अलावा ऐसे आधुनिक विमान हैं जो अभी निर्माण के चरण में हैं. इनमें ब्रिटेन, इटली और जापान की साझेदारी से बनाए जाने वाला जहाज़ टेंपेस्ट है. फ़्रांस, जर्मनी और स्पेन फ़्यूचर कॉम्बैट एयर सिस्टम (एफ़सीएएस) नाम का विमान बना रहे हैं और तुर्की की ओर से केएएएन नाम का विमान बनाया जा रहा है.”
रक्षा, एयरोस्पेस और हाईटेक क्षेत्र में आतंक निरोधी और डिजिटल बदलावों के विशेषज्ञ एलेक्स पित्सास और रज़ा हैदर के अनुसार फ़िफ़्थ जेनरेशन फ़ाइटर जेट्स के फ़ीचर इस तरह हैं:
- स्टेल्थ फ़ीचर्स यानी यह अपने डिज़ाइन की वजह से रडार पर दिखाई नहीं देता.
- एवियोनिक्स सेंसर फ़्यूज़न यानी इसके रडार, नेविगेशन और फ़ायर कंट्रोल सिस्टम सब एक दूसरे से जुड़े होते हैं जिससे पायलट की सिचुएशनल अवेयरनेस बेहतर होती है.
- सुपर क्रूज़ यानी अगर आप सुपरसोनिक उड़ान भर रहे हों तो आप बहुत कम ईंधन इस्तेमाल कर रहे होते हैं. इससे जहाज़ लंबी अवधि तक हवा में रह सकता है और इसकी रेंज बढ़ जाती है.
- नेटवर्क सेंटर यानी सभी सिस्टम के साथ आप जुड़े हुए होते हैं जो ग्राउंड पर हों जैसे रडार या हवा में हों जैसे एयरबॉर्न अर्ली वार्निंग सिस्टम (एईडब्ल्यूएस) या यूएवीज़ और ड्रोन्स.
कौन सी बातें एक विमान को फ़िफ़्थ जेनरेशन और स्टेल्थ बनाती हैं?
ध्यान रहे कि हवा में बचे रहने की जंग में किसी भी लड़ाकू विमान के लिए सबसे ख़ास बातों में से एक उसकी ‘स्टेल्थ’ क्षमता मानी जाती है, यानी रडार पर कम से कम नज़र आना है.
स्टेल्थ टेक्नोलॉजी लड़ाकू और बम गिराने वाले विमान के लिए केवल एक और अतिरिक्त फ़ीचर नहीं बल्कि अनिवार्य ज़रूरत बन चुकी है.
एलेक्स पित्सास के अनुसार, ‘स्टेल्थ टेक्नोलॉजी’ विमान के रडार क्रॉस-सेक्शन और थर्मल डिटेक्शन को कम कर देती है, जिससे विमान की मौजूदगी का पता लगाना बेहद मुश्किल हो जाता है.
उन्होंने बीबीसी से कहा, “इस विमान का डिज़ाइन इस तरह तैयार किया गया है कि इसमें विमान की पूरी इमेज रडार में वापस नहीं आती और रडार सिस्टम के लिए विमान का पता लगाना मुश्किल हो जाता है.”
पित्सास के अनुसार नए इंजन डिज़ाइन कूलिंग सिस्टम्स, एग्ज़ॉस्ट और अंदरूनी हथियारों के रखने की जगह के हीट सिग्नेचर को कम कर देते हैं जिससे थर्मल टेक्नोलॉजी के ज़रिए उसे पहचानना मुश्किल हो जाता है.
वह कहते हैं कि यह सभी विशेषताएं जैसे स्टेल्थ टेक्नोलॉजी, आधुनिक गतिशीलता और लंबी दूरी तक मार करने वाले हथियार मिलकर फ़िफ़्थ जेनरेशन के लड़ाकू विमानों को बेहद ख़तरनाक बना देते हैं जिन्हें तलाश करना और निशाना बनाना आधुनिकतम टेक्नोलॉजी के लिए भी एक बड़ी चुनौती बन जाती है.
इसके बारे में कमोडोर रज़ा हैदर कहते हैं कि फ़िफ़्थ जेनरेशन विमानों के हथियार और फ़्यूल टैंक आपको बाहर दिखाई नहीं देते क्योंकि इनकी जगह आंतरिक होती है. अगर यह बाहर होंगे तो यह व्यूज़ को रिफ़्लेक्ट कर देंगे.
इसके अलावा विमान को रडार एब्ज़ॉर्बेंट मटीरियल से बनाया जाता है. इसमें मेटल और कंपोज़िट की अलग-अलग क़िस्में हैं जिनमें रडार एब्ज़ॉर्बेंट क्षमता होती है. इस पर एक ख़ास तरह का पेंट किया जाता है जो रडार के व्यूज़ को सोख लेता है और रिफ़्लेक्ट नहीं होने देता.
“अगर तकनीकी भाषा में बात करें तो इन विमानों का रडार क्रॉस सेक्शन बहुत कम होता है जिससे यह रडार पर दिखाई नहीं देते.”
फ़िफ़्थ जेनरेशन फ़ाइटर के आने से फ़ायदा क्या होगा?
इमेज स्रोत, Getty Images
एयर कमोडोर रज़ा हैदर ने बताया कि इससे एक पायलट को ‘फ़र्स्ट लुक, फ़र्स्ट शॉट, फ़र्स्ट किल’ क्षमता मिल जाती है.
“यानी दूसरे विमान मुझे रडार पर देख ही नहीं पा रहे तो मेरे पास उसे पहले देखकर उस पर हमला करने और मार गिराने की क्षमता होगी.”
यह क्षमता कुछ सेकंडों में बदलती हुई हवाई जंग की स्थिति में एक ऐसी क्षमता है जो एक एयरफ़ोर्स को विरोधी पर बढ़त दिलवा सकती है. चूंकि विशेषज्ञों के अनुसार आने वाले युद्धों में हवाओं में बढ़त बेहद महत्वपूर्ण होगी इसलिए भी उनका महत्व बढ़ जाता है.
रज़ा हैदर कहते हैं कि दूसरा फ़ायदा यह है कि विमान के बचने की उम्मीद “इसलिए भी बढ़ जाती है कि ज़मीन से हवा में मार करने वाली मिसाइल भी उसे नहीं देख पा रही.”
स्टेल्थ टेक्नोलॉजी की ज़रूरत क्यों पड़ी?
इमेज स्रोत, Getty Images
प्रसिद्ध रक्षा विश्लेषक काइल मिज़ुकामी ‘सर्वाइवल इन द स्काई, स्टोरी ऑफ़ स्टेल्थ टेक्नोलॉजी’ में लिखते हैं, “1960 के दशक में दुनिया भर के देशों ने आधुनिक और समन्वित हवाई रक्षा प्रणाली में पूंजी निवेश शुरू किया. ज़मीन और हवा में रडार सिस्टम को सेंट्रल कमांड एंड कंट्रोल से जोड़ा गया. यहां से तत्काल ज़मीन से हवा में मार करने वाले मिसाइल सिस्टम और उड़ान भरने के लिए तैयार लड़ाकू विमानों को निर्देश दिया जा सकता था.”
वह लिखते हैं कि वियतनाम, मध्य पूर्व और पश्चिमी यूरोप में यह प्रणाली बहुत शक्तिशाली मानी जाती थी. यह किसी भी हमलावर बम गिराने वाले विमान को नष्ट करने की क्षमता रखती थी.
उनके मुताबिक़, “इस बदलती परिस्थिति ने एयरफ़ोर्सेज़ को अपनी रणनीति बदलने पर मज़बूर किया. नए तरीक़े सामने आए. जैसे एयर कमांड एंड कंट्रोल, इलेक्ट्रॉनिक वाॅरफ़ेयर, हवाई सुरक्षा को बेअसर बनाने के ऑपरेशन वग़ैरह ताकि दुश्मन के कम से कम विमान रक्षा पंक्ति को भेद कर अपने लक्ष्य तक पहुंच सकें.”
“लेकिन इन सभी रणनीतियों के बावजूद यह मिशन बेहद ख़तरनाक थे. दर्जनों विमान और उनके पायलट लगातार ख़तरे में आते रहते थे.”
काइल मिज़ुकामी के अनुसार, इन बातों ने सैन्य रणनीतिज्ञों और एयरोस्पेस इंजीनियरों को यह सोचने पर मज़बूर कर दिया कि अगर कोई विमान दुश्मन की वायु सीमा में आ जाए और रडार पर नज़र ही ना आए तो?
मिज़ुकामी बताते हैं, “ऐसी स्थिति में दर्जन भर विमानों को इकट्ठा एक लक्ष्य पर हमला करने की ज़रूरत नहीं रहती. बस एक विमान हो जो बम ले जा रहा हो, दुश्मन की पेचीदा रक्षा प्रणाली में चुपचाप दाख़िल हो, अपने लक्ष्य को निशाना बनाए और सकुशल वापस लौट आए.”
वह लिखते हैं, “अगर किसी विमान की रडार पर पहचान की हद 100 मील से कम होकर केवल 20 मील रह जाए तो स्टेल्थ विमान दुश्मन के रडार सिस्टम के बीच से चुपचाप गुज़र सकता है और दुश्मन को कानों कान ख़बर नहीं होगी.”
ध्यान रहे कि सन 1960 के दशक में एक सोवियत वैज्ञानिक प्योत्र उफिम्त्सेव ने विमान का ऐसा मॉडल तैयार किया जिससे यह बताना मुमकिन हो गया कि इलेक्ट्रोमैग्नेटिक तरंगें टू डी या थ्री डी सतहों से टकराकर किस कोण और तीव्रता से बिखरेंगी. हालांकि यह शोध सोवियत यूनियन में प्रकाशित हुआ लेकिन इस पर कोई ख़ास ध्यान नहीं दिया गया.
बाद में अमेरिकी डिफ़ेंस कंपनी लॉकहीड की नज़र उस शोध पर पड़ी और उन्होंने उफिम्त्सेव के काम का अंग्रेज़ी में अनुवाद करवाया और यही शोध आधुनिक स्टेल्थ टेक्नोलॉजी का आधार बन गया.
काइल मिज़ुकामी लिखते हैं कि लॉकहीड ने इस शोध को पूरी तरह इस्तेमाल किया क्योंकि इससे यह साबित हुआ कि विमान की ख़ास बनावट रडार पर उसके सिग्नेचर को कम कर सकती है. जहाज़ के हर बड़े हिस्से जैसे सामने वाला हिस्सा, बॉडी, पंख, कॉकपिट, फ़्लैप्स वग़ैरह का जायज़ा लिया गया और उन्हें रडार क्रॉस सेक्शन के तौर पर समझा गया.
काइल मिज़ुकामी लिखते हैं “वह जहाज़ जिनके हिस्से बड़े और चपटे होते हैं जैसे बी-52 बमवर्षक या जिनके पीछे खड़े पंख होते हैं जैसे एफ़ 111 वह रडार व्यूज़ को ज़्यादा वापस भेजते हैं और आसानी से नज़र आते हैं. यहां तक कि बम, मिसाइल या ईंधन के टैंक जैसे बाहर लगे यंत्र भी रडार तरंगों को वापस भेजते हैं. रडार से बचने या स्टेल्थ टेक्नोलॉजी से डिज़ाइन किया गया पहला जहाज़ हैव ब्लू था. इसे लॉकहीड मार्टिन ने तैयार किया और यह अपनी बनावट के हिसाब से पहले बनने वाले सभी जहाज़ों से अलग था.”
इसके बाद एफ़ 117 जहाज़ तैयार किया गया जिसे अमेरिकी वायु सेना की ओर से कई मिशन में इस्तेमाल भी किया गया और यह वह अकेला स्टेल्थ फ़ाइटर जेट भी है जिसे यूगोस्लाविया के युद्ध के दौरान सन् 1999 में सर्बिया के एयर डिफ़ेंस सिस्टम ने मार गिराया था.
भविष्य में एयर वॉरफ़ेयर कैसा होगा?
इमेज स्रोत, Getty Images
एयर कमोडोर रज़ा हैदर के अनुसार, “आजकल की एयर वॉरफ़ेयर में विमान सब कुछ नहीं है लेकिन यह पूरी जंग का एक हिस्सा है. मल्टी डोमेन ऑपरेशंस में कई दूसरी प्रणालियों मिलकर काम कर रही होती हैं जिसकी वजह से भविष्य में एयरक्राफ़्ट के आधुनिक होने के साथ-साथ दूसरी सहायक प्रणालियों में भी सुधार किया जाएगा.”
उन्होंने आधुनिक वॉरफ़ेयर का उदाहरण देते हुए कहा कि, “इसमें एक कोलैबोरेटिव कॉम्बैट एयरक्राफ़्ट लॉयल विंगमैन कॉन्सेप्ट है. इसमें यह होता है कि जहाज़ के साथ स्टेल्थ ड्रोन होते हैं जो कवच का काम करते हैं और अगर कोई मिसाइल जहाज़ की ओर फ़ायर की जाए तो यह ड्रोन उसके रास्ते में आकर जहाज़ को बचा लेते हैं.”
बकौल रज़ा हैदर, “दो से आठ ड्रोन एक पायलट के साथ होते हैं और यह एक पायलट को जानकारी भी दे रहे होते हैं. इसी तरह मिसाइल की रेंज बढ़ती जा रही है उनमें बदलाव आ रहे हैं और समय के साथ यह एयर वाॅरफ़ेयर अब एयरोस्पेस वाॅरफ़ेयर की ओर बढ़ रहा है.”
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित
[SAMACHAR]
Source link