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- Author, प्रियंका
- पदनाम, बीबीसी संवाददाता
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10 जून 2025
भारत में 16 साल बाद जनगणना होने जा रही है. केंद्रीय गृह मंत्रालय ने बीते बुधवार को बताया था कि एक मार्च, 2027 जनगणना की रेफ़रेंस डेट होगी.
पहली बार देश में डिजिटल जनगणना होने जा रही है और आज़ाद भारत में पहली बार जातियों की गणना भी इसमें शामिल की जाएगी.
केंद्रीय गृह मंत्रालय की ओर से जारी बयान के अनुसार जनगणना दो चरणों में कराई जाएगी.
पहले चरण में केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख़ और जम्मू-कश्मीर के साथ ही हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड राज्यों के बर्फ़ीले इलाक़ों में जनगणना की रेफ़रेंस डेट एक अक्तूबर 2026 होगी. दूसरा चरण एक मार्च 2027 से मैदानी इलाक़ों में होगा.
रेफ़रेंस डेट वो समय होता है, जिसके लिए आबादी का डेटा इकट्ठा किया जाता है. हालांकि, सरकार ने अभी तक ये नहीं बताया है कि जनगणना शुरू किस तारीख़ से होगी और ख़त्म किस तारीख़ पर होगी.
क्या होती है जनगणना
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देश और यहां रहने वाले लोगों के विकास के लिए, ये जानना ज़रूरी होता है कि देश में रहने वाले लोग कौन हैं. वो किस स्थिति में हैं, कितने पढ़े-लिखे हैं, कौन क्या करता है, कितने लोगों के पास रहने को घर हैं, कितनों के पास नहीं हैं. उनकी सामाजिक स्थिति क्या है. जनगणना इन्हीं सब आंकड़ों को जुटाने की प्रक्रिया है.
किसी देश या क्षेत्र विशेष की आबादी के बारे में जनसांख्यिकीय, आर्थिक और सामाजिक डेटा इकट्ठा करने, उसके संकलन, विश्लेषण और सार्वजनिक करने को ही जनगणना कहा जाता है.
इसके तहत आबादी की आयु, लिंग, भाषा, धर्म, शिक्षा, व्यवसाय और निवास आदि को लेकर विस्तृत जानकारी जुटाई जाती है. इनका इस्तेमाल नीति बनाने और कल्याणकारी योजनाओं आदि के लिए किया जाता है.
भारत में 1872 से जनगणना हो रही है और आज़ाद भारत में अभी तक ये प्रक्रिया जारी रही.
देरी से क्यों हो रही है जनगणना?
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भारत की जनगणना, जनगणना अधिनियम, 1948 के प्रावधानों के तहत की जाती है.
केंद्रीय गृह मंत्रालय के तहत आने वाला ऑफ़िस ऑफ़ रजिस्ट्रार जनरल एंड सेंसस कमिश्नर जनगणना करवाता है.
भारत में हर 10 साल के अंतराल पर जनगणना कराई जाती है. पिछली जनगणना 2011 में दो चरणों में की गई थी.
अगली जनगणना 2021 में होनी थी लेकिन कोरोना महामारी की वजह से इसे टाल दिया गया था और अब ये क़रीब छह साल की देरी से कराई जाएगी.
इस साल एक फ़रवरी को पेश किए गए बजट में जनगणना के लिए 574.80 करोड़ रुपये आवंटित किए गए थे. जबकि साल 2021-22 के बजट में इसके लिए 3 हज़ार 768 करोड़ रुपये का आवंटन किया गया था.
केंद्रीय गृह मंत्रालय ने अब बजट में कटौती के बारे में जानकारी दी है.
“जिन देशों ने कोविड-19 के तुरंत बाद जनगणना कराई, उन्हें जनगणना के आंकड़ों की गुणवत्ता और कवरेज से संबंधित समस्याओं का सामना करना पड़ा. सरकार ने जनगणना की प्रक्रिया तत्काल शुरू करने का निर्णय लिया है, जो जनगणना की संदर्भ तिथि अर्थात 01 मार्च, 2027 को पूरी होगी.”
एक्स पर दी जानकारी में कहा गया है, “जनगणना के लिए बजट कभी बाधा नहीं रहा है क्योंकि धनराशि आवंटन हमेशा सरकार द्वारा सुनिश्चित किया जाता रहा है.”
इस बार की जनगणना में क्या है अलग?
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जनगणना की प्रक्रिया को जल्दी और सुचारू रूप से पूरा करने के लिए पहली बार 2027 की जनगणना डिजिटल माध्यम से होगी.
हालांकि, 1931 से लेकर अब तक की जनगणना में पूछे जाने वाले सवाल लगभग एक से होते हैं. लेकिन एक सवाल जो 1951 से नहीं होता था वो था संबंधित व्यक्ति की जाति से जुड़ा हुआ.
हालांकि, इसमें अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति से जुड़ी जानकारी होती थी लेकिन अन्य जातियों के बारे में ये जानकारी नहीं दी जाती थी.
मगर इस बार की जनगणना में हर शख़्स को अपनी जाति बताने का विकल्प दिया जाएगा, जिसे एक बड़े बदलाव के तौर पर देखा जा रहा है.
आज़ादी के बाद या 1931 के बाद ये पहली बार है जब जातिगत जनगणना, जनगणना का हिस्सा होगी.
विपक्षी पार्टियों की ओर से लंबे समय से जातिगत जनगणना कराए जाने की मांग हो रही थी. इसी साल अप्रैल महीने में सरकार ने एलान किया था कि अगली जनगणना में जातिगत जनगणना भी शामिल होगी.
परिसीमन और महिला आरक्षण के मुद्दे पर क्या होगा असर?
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जनगणना का असर लोकसभा और राज्य विधानसभा सीटों के अगले परिसीमन, संसद और विधानसभाओं में महिलाओं के लिए प्रस्तावित 33 फ़ीसदी आरक्षण पर पड़ेगा.
महिला आरक्षण क़ानून के अनुसार, इसके लागू होने के बाद पहली जनगणना के आंकड़ों के आधार पर परिसीमन की प्रक्रिया शुरू होने के बाद लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में महिलाओं के लिए एक तिहाई सीटों का आरक्षण लागू होगा.
जनगणना के बाद परिसीमन आयोग का गठन करना होगा और केवल आबादी के आधार पर परिसीमन के ख़िलाफ़ कई दक्षिणी राज्यों के विरोध को देखते हुए गहन विचार-विमर्श की आवश्यकता होगी.
केंद्रीय गृह मंत्रालय के प्रवक्ता की ओर से इस बारे में कहा गया है, “केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कई बार स्पष्ट किया है कि परिसीमन प्रक्रिया में दक्षिणी राज्यों की चिंताओं का ध्यान रखा जाएगा और उचित समय पर सभी से चर्चा होगी.”
संविधान के मुताबिक़, हर बार जनगणना के बाद परिसीमन की प्रक्रिया भी होती थी. 1951, 1961 और 1971 की जनगणना के आधार पर ये प्रक्रिया हुई.
इंडियन एक्सप्रेस के वरिष्ठ पत्रकार श्यामलाल यादव कहते हैं कि 1971 की जनगणना के आधार पर जब 1976 में परिसीमन प्रक्रिया हुई तब भी उत्तर भारत और दक्षिण भारत के बीच बड़ा विवाद खड़ा हुआ था.
उन्होंने कहा, “दक्षिण भारत में आबादी धीमी गति से बढ़ रही थी जबकि उत्तर भारत में ये तेज़ी से बढ़ती दिख रही थी. दक्षिण के राज्यों की ये चिंता थी कि हम लोग जनसंख्या नियंत्रित कर रहे हैं और उसकी वजह से हमें नुक़सान होता है. क्योंकि लोकसभा और विधानसभा सीटों की संख्या तय करने में जनसंख्या एक बड़ा क्राइटेरिया होता है.”
श्यामलाल यादव कहते हैं कि ‘इसी विवाद की वजह से 1976 के बाद परिसीमन रोक दिया गया था. इसकी वजह से तय किया गया कि अब परिसीमन 2001 में जो जनगणना होगी, उसके आधार पर किया जाएगा.’
उन्होंने कहा, “इस बार जनगणना के आंकड़े बहुत महत्वपूर्ण होने जा रहे हैं. ये ही नए परिसीमन के लिए आधार बनेगा. लेकिन 2027 में तो पहले जनगणना होगी फिर इसके फाइनल आंकड़े आने में समय लगता है. इसलिए 2029 के लोकसभा चुनाव तक इस जनगणना से कुछ बदलता नहीं दिख रहा है. लेकिन उसके बाद के चुनावों में यही जनगणना परिसीमन का आधार बनेगी. “
(बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित)
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