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श्रीकृष्ण ने हजारों साल पहले ही दे दिया था ‘सक्सेस फॉर्मूला’, अपना लिया तो कोई माई का लाल नहीं रोकेगा सफल होने से

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Gita Updesh: आज की तेज रफ्तार जिंदगी में हर व्यक्ति सफलता की तलाश में भाग रहा है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि श्रीकृष्ण ने हजारों साल पहले भगवद गीता में सफलता पाने का अचूक सूत्र दे दिया था? चाहे कर्म का महत्व हो, फल की चिंता न करना हो या संतुलन बनाए रखना, गीता के ये सिद्धांत आज भी जीवन में सफलता की कुंजी हैं.

Gita Updesh, Bhagavad Gita Success Quotes: आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में हर इंसान सफलता की तलाश में भटकता रहता है. करियर अथवा बिजनेस की बात हो या रिश्तों में संतुलन बनाने को लेकर चाहे आध्यात्मिक शांति का मैटर हो. लेकिन क्या आपने कभी जानने की कोशिश की है कि हजारों साल पहले ही भगवद गीता में श्रीकृष्ण ने सफलता पाने का अचूक फार्मूला दे दिया था?दरअसल महाभारत के युद्धभूमि कुरुक्षेत्र में, जब अर्जुन संशय और भ्रम में डूबे हुए थे, तब श्रीकृष्ण ने जो ज्ञान दिया, वह न सिर्फ आध्यात्मिक जीवन बल्कि व्यावहारिक जीवन में भी सफलता की कुंजी बन चुका है.

कर्म करो, फल की चिंता मत करो

श्रीकृष्ण ने गीता के दूसरे अध्याय के 47वें श्लोक में कहा कि “कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन. मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि॥”अर्थात्, तुम्हारा अधिकार सिर्फ कर्म करने में है, फल में नहीं. यानी अगर आप किसी भी क्षेत्र में सफल होना चाहते हैं, तो पूरी ऊर्जा और निष्ठा के साथ अपना कर्तव्य निभाइये. फल की चिंता करने से मन भटकता है और परफॉर्मेंस पर असर पड़ता है.

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सफलता-असफलता दोनों में संतुलित रहें

गीता में श्रीकृष्ण कहते हैं कि “सिद्ध्यसिद्ध्योः समो भूत्वा समत्वं योग उच्यते॥”यहां स्पष्ट कहा गया है कि जो व्यक्ति सफलता और असफलता दोनों में समान भाव रखता है, वही सच्चा योगी है. यदि मनुष्य हर परिस्थिति में स्थिर रहे, तो उसका निर्णय और परिश्रम दोनों अधिक प्रभावी हो जाते हैं.

बिना लोभ के कार्य ही सफलता का सच्चा मार्ग

गीता में श्रीकृष्ण ने बार-बार कहा है कि “आसक्ति रहित होकर कर्म करो.” यहां पर आसक्ति का मतबल है कि किसी भी चीज के प्रति लगाव या मोह हो जाना. कई बार लोग सफलता पाने की धुन में इस कदर भागते हैं कि वह लक्ष्य से भटक जाते हैं. क्योंकि वह उससे मिलने वाले फल के बारे में अधिक सोचने लगते हैं. लेकिन यदि आप बिना किसी लालच या स्वार्थ के ईमानदारी से अपना कार्य करते हैं, तो सफलता देर-सवेर जरूर मिलती है.

गीता में श्रीकृष्ण ने कहा है जैसा सोचोगे, वैसा बनोगे

गीता के 17वें अध्याय में श्रीकृष्ण कहते हैं कि “श्रद्धामयोऽयं पुरुषो, यो यच्छ्रद्धः स एव सः॥” जिस व्यक्ति में जैसी श्रद्धा होती है, वह वैसा ही बनता है. यानी सफलता पाने के लिए खुद पर विश्वास, अपने कर्म पर भरोसा और जीवन के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण अनिवार्य है.

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[SAMACHAR]

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