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7 जून 2025
अमेरिका के एक वरिष्ठ सांसद ने पाकिस्तान के पूर्व विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो ज़रदारी के नेतृत्व में आए शिष्टमंडल से कहा कि उनके देश को ‘जैश-ए-मोहम्मद’ जैसे चरमपंथी संगठनों को ख़त्म करने और धार्मिक अल्पसंख्यकों की सुरक्षा के लिए हर संभव कोशिश करनी चाहिए.
अमेरिकी सांसद ब्रैड शेरमैन ने राजधानी वॉशिंगटन में गुरुवार को पाकिस्तानी शिष्टमंडल से मुलाक़ात के बाद सोशल मीडिया नेटवर्क एक्स पर एक पोस्ट किया, जिसमें लिखा कि उन्होंने पाकिस्तानी नेताओं को चरमपंथ को काबू करने की अहमियत बताई और जैश-ए-मोहम्मद जैसे संगठन को ख़त्म करने की अपील की. उन्होंने जैश-ए-मोहम्मद के लिए ‘घिनौने’ शब्द का इस्तेमाल किया.
पाकिस्तान के साथ 10 मई को संघर्ष विराम के बाद भारत और पाकिस्तान ने अपना पक्ष समझाने के लिए दुनिया के कई देशों में अपने प्रतिनिधिमंडल भेजे हैं.
इसी के तहत पाकिस्तानी प्रतिनिधिमंडल इस संघर्ष पर अपना नज़रिया समझाने के लिए अमेरिका पहुंचा था.
पाकिस्तानी प्रतिनिधिमंडल का अमेरिकी राजधानी का दौरा लगभग उसी समय हुआ है, जब कांग्रेस सांसद शशि थरूर के नेतृत्व में भारतीय सांसदों का सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल वाशिंगटन डीसी में था.
जैश-ए-मोहम्मद को ख़त्म करने की नसीहत
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शेरमैन ने एक्स पर एक पोस्ट में कहा कि उन्होंने पाकिस्तानी प्रतिनिधिमंडल को जैश-ए-मोहम्मद को ख़त्म करने को कहा जिसने 2002 में डेनियल पर्ल की हत्या कर दी थी. डेनियल पर्ल उन्हीं के चुनाव क्षेत्र के रहने वाले थे.
उन्होंने लिखा, ”पर्ल का परिवार अब भी उस ज़िले में रहता है. पाकिस्तान को जैश को ख़त्म करने की हरसंभव कोशिश करनी चाहिए. उसे क्षेत्र में आतंकवाद से लड़ने के लिए कदम उठाने चाहिए.”
शेरमैन ने पाकिस्तानी प्रतिनिधिमंडल से अपील की कि वे अपनी सरकार को डॉ. शकील अफरीदी को रिहा करने की ज़रूरत के बारे में बताएं, जो ओसामा बिन लादेन को मारने में अमेरिका की मदद करने के आरोप में जेल में बंद हैं. साल 2012 में, एक पाकिस्तानी कोर्ट ने अफरीदी को 33 साल जेल की सजा सुनाई थी.
उन्होंने कहा कि डॉ. अफरीदी को रिहा करना 9/11 के पीड़ितों के लिए एक अहम कदम है.
पाकिस्तान में लोगों का मानना है कि डॉ अफ़रीदी की मदद से ही अमेरिकी नौसैनिक ने 9/11 हमलों के मास्टरमाइंड ओसामा बिन लादेन को मारकर बिना किसी चुनौती के वापस चले गए. इतना ही नहीं, उन्होंने लादेन के शव के बारे में कोई भनक तक नहीं लगने दी.
डॉ. अफ़रीदी पाकिस्तान के क़बाइली ख़ैबर ज़िले में डॉक्टर के तौर पर काम करते थे. अमेरिका के फ़ंड से चलने वाली स्वास्थ्य सेवाओं और कई टीकाकरण कार्यक्रमों के प्रमुख थे.
एक सरकारी कर्मचारी के तौर पर उन्होंने कई शहरों में हेपेटाइटिस बी के लिए टीकाकरण कार्यक्रम चलाए थे. उनमें से एक वो एबटाबाद शहर भी था, जहां ओसामा बिन लादेन पाकिस्तानी सेना की नाक के नीचे रह रहे थे.
अमेरिकी ख़ुफ़िया एजेंसी की योजना थी कि वो एबटाबाद में रह रहे किसी बच्चे के ख़ून का सैंपल ले सके, ताकि डीएनए टेस्ट के ज़रिए पता चल सके कि उनका ओसामा बिन लादेन से कोई रिश्ता है या नहीं.
ऐसा कहा जाता है कि डॉक्टर अफ़रीदी के स्टाफ़ के एक व्यक्ति ने वहां से ख़ून का सैंपल इकट्ठा किया. हालांकि ये मालूम नहीं है कि अमेरिका को इससे बिन लादेन की लोकेशन खोजने में मदद मिली या नहीं.
सिंधु नदी समझौते का मामला भी उठा
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शेरमैन के मुताबिक़ पाकिस्तानी प्रतिनिधिमंडल के साथ बैठक के दौरान सिंधु नदी के पानी पर हक का सवाल भी उठाया.
उन्होंने कहा, ”चीन को इस क्षेत्र में पानी को नियंत्रित करने के लिए भारत के ख़िलाफ कोई कदम नहीं उठाना चाहिए. न ही भारत को सिंधु नदी को नियंत्रित करने के लिए पाकिस्तान के ख़िलाफ़ कोई कदम उठाना चाहिए.”
भारत ने 22 अप्रैल को जम्मू-कश्मीर में 26 लोगों की हत्या के बाद पाकिस्तान के साथ सिंधु जल समझौता निलंबित कर दिया था. भारत का आरोप था कि इन हत्याओं में ‘पाकिस्तानी आतंकवादियों’ का हाथ था. हालांकि पाकिस्तान ने इससे इनकार किया था. पाकिस्तान का कहना था कि भारत एकतरफा कदम उठा कर सिंधु जल समझौता निलंबित नहीं कर सकता.
उन्होंने पाकिस्तान मे सिंध में पानी की कमी के मुद्दे पर भी चर्चा की.
उन्होंने लिखा, ”सिंधु नदी करोड़ों पाकिस्तानियों की जीवन रेखा है और उस जल संसाधन की रक्षा करना अहम है. मैं पाकिस्तान के मोरो शहर में अशांति और सिंध में पानी के अधिकार के लिए विरोध प्रदर्शन करते समय मारे गए इरफ़ान और जाहिब लघारी की मौत के बारे में सुनकर बहुत चिंतित हूं.”
उन्होंने लिखा, ”सिंध में लोग जबरन गायब किए जा रहे हैं. उनकी हत्या हो रही है और उन्हें राजनीतिक दमन का सामना करना पड़ा है. 2011 में अपनी स्थापना के बाद से, पाकिस्तान के अपने मानवाधिकार आयोग ने लोगों को जबरन गायब किए जाने के 8,000 से अधिक मामलों का दस्तावेजीकरण किया है. लेकिन इनकी कभी भी सही तरीके से जांच नहीं की गई. मैंने पाकिस्तान के शिष्टमंडल के सामने ये मुद्दा उठाया.”
उन्होंने एक्स पर लिखा, ”पाकिस्तान में रहने वाले ईसाई, हिंदू और अहमदिया मुसलमानों को हिंसा, उत्पीड़न, भेदभाव या गैर बराबरी वाली न्याय व्यवस्था के डर के बगैर अपने धर्म का पालन करने और लोकतंत्र में हिस्सा लेने की आजादी मिलनी चाहिए.”
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित
[SAMACHAR]
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