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- Author, दिलनवाज़ पाशा
- पदनाम, बीबीसी संवाददाता
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7 जून 2025
65 साल की शकुंतला देवी के घर जब आधा घंटा मोटर चलाने के बाद भी पानी नहीं आया तो वो किसी तरह सीढ़ियां उतरते हुए ये देखने नीचे आईं कि बाक़ी लोगों के घर में पानी आ रहा है या नहीं.
उनकी तरह, बाक़ी लोग भी पानी ना आने को लेकर निराश थे.
शकुंतला देवी कहती हैं, “मैं रोज़ाना दिन में दो बार आधा घंटा मोटर चलाती हूं, लेकिन बमुश्किल एक गिलास पानी आता है.”
शकुंतला देवी उत्तर पश्चिम दिल्ली में रोहिणी इलाक़े के सेक्टर 34 में डीडीए के बनाए फ्लैट में किराए पर रहती हैं.
शकुंतला कहती हैं, “पता है पानी नहीं आएगा, फिर भी दोनों टाइम इस उम्मीद से मोटर चलाती हूं कि शायद आ जाए. अगर पानी आया और मैंने मोटर नहीं चलाई तो अफ़सोस होगा कि पानी आया था, मैंने भरा नहीं.”
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‘पेंशन से ज़्यादा ख़र्च पानी पर’
यहां रहने वाले बाक़ी लोगों की तरह ही शकुंतला देवी भी पीने के लिए पानी ख़रीदती हैं.
बीस लीटर की एक बोतल उन्हें चालीस रुपए की पड़ती है. कई बार एक दिन में दो बोतल पानी ख़र्च हो जाता है.
शकुंतला कहती हैं, “वृद्धा पेंशन पर जी रही हूं. जितनी मेरी पेंशन है, उससे ज़्यादा महीने में पीने के लिए पानी ख़रीदना पड़ता है.”
शकुंतला के लिए हालात हमेशा ऐसे नहीं थे. दो साल पहले तक उनके घर पानी आता था, जिसे वो पीने के लिए भी इस्तेमाल करती थीं. लेकिन अब हालात बदल गए हैं.
इन फ्लैट में रहने वाले अधिकतर लोगों की कहानी शकुंतला जैसी ही है. लगभग सभी को पीने के लिए पानी बाज़ार से ख़रीदना पड़ता है.
पानी पर हो रहे ख़र्च ने दीपक जैसे लोगों के घरों का बजट बिगाड़ दिया है.
दीपक कहते हैं, “रोज़ाना दो बोतल पानी ख़रीदता हूं. ग्राउंड फ्लोर पर रहता हूं तो बीस लीटर की एक बोतल तीस रुपए में मिल जाती है. ब्रांडेड पानी ख़रीदना हमारी पहुंच के बाहर है.”
दीपक की पत्नी कहती हैं, “हमारी आय का लगभग दस प्रतिशत पानी ख़रीदने पर ख़र्च हो रहा है. अगर ये पानी ना ख़रीदना पड़े तो हमारी ज़िंदगी बहुत आसान हो.”
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मांग ज़्यादा, आपूर्ति कम
राजधानी दिल्ली देश में आबादी के लिहाज़ से सबसे बड़ा शहर है. 2011 की जनगणना के मुताबिक़, दिल्ली की आबादी 1.5 करोड़ से ज़्यादा है और यह आबादी लगातार बढ़ रही है.
दिल्ली जल बोर्ड के अनुमान के मुताबिक़, राजधानी को हर रोज़ क़रीब 129 करोड़ गैलन पानी की ज़रूरत है. लेकिन आपूर्ति हो रही है लगभग 100 करोड़ गैलन की. यानी ज़रूरत के लिहाज़ से दिल्ली को रोज़ाना क़रीब तीस करोड़ गैलन पानी कम मिल रहा है.
ज़रूरत और आपूर्ति के बीच ये फ़ासला दिल्ली की आबादी के एक बड़े हिस्से पर भारी पड़ रहा है.
दक्षिणी दिल्ली के संगम विहार से लेकर उत्तर-पश्चिमी दिल्ली के रोहिणी तक, आम लोग पानी की इस क़िल्लत की क़ीमत चुका रहे हैं.
बढ़ती गर्मी ने पानी के इस संकट को और गंभीर कर दिया है. हालात उन लोगों के लिए सबसे ज़्यादा मुश्किल हैं जिनके घर ना टंकी से पानी पहुंचता है और ना दिल्ली जल बोर्ड के टैंकर से.
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‘जितना ख़र्च रसोई का है, उससे ज़्यादा पानी का’
संगम विहार के देवली इलाक़े में रहने वाली कटोरी देवी के आंगन में बाल्टी, ड्रम और अन्य खाली बर्तनों का अंबार है.
एयर कंडीशनर से निकली एक पतली नली से बाल्टी में बूंद-बूंद पानी टपक रहा है.
कटोरी देवी कहती हैं, “पिछले दो महीने से हमारे घर पानी नहीं आया है. पंद्रह सौ रुपए में एक टैंकर पानी ख़रीदते हैं, उससे जैसे-तैसे ज़रूरत पूरी करते हैं. एसी से निकलने वाले पानी को इकट्ठा करते हैं ताकि इस्तेमाल कर सकें.”
एक बाल्टी में गंदे पानी को दिखाते हुए वो कहती हैं, “बारिश हुई तो तिरपाल से पानी इकट्ठा किया. कुछ बाल्टी भर लीं. लेकिन ये सिर्फ पौधे या वॉशरूम में डालने लायक है, कोई और काम इससे नहीं हो सकता.”
संगम विहार के देवली इलाक़े की जिस गली में कटोरी देवी का परिवार रहता है, उसके अधिकतर घरों में पानी नहीं पहुंच पाता है. हालांकि, उनके आसपास के इलाक़ों में रोज़ाना आधे घंटे पानी आता है.
कटोरी की बहू सीमा देवी कहती हैं, “हमारा जितना ख़र्च रसोई का है, उससे ज़्यादा पानी का है. पानी हमें खाने से भी महंगा पड़ रहा है.”
कटोरी के बगल के मकान में रहने वाली पूनम देवी पानी के संकट की वजह से अपनी बहुओं और नाती-पोतों को गांव भेज रही हैं.
पूनम कहती हैं, “पानी नहीं है तो हमारी ज़िंदगी नर्क है. इतनी गर्मी है और बच्चों को नहलाने तक के लिए पानी नहीं है. अब बहुएं और बच्चे सब गांव जाएंगे और महीने भर बाद आएंगे जब बारिश होने लगेगी. हम हर पंद्रह दिन में दो हज़ार लीटर का टैंकर नहीं ख़रीद कर सकते हैं.”
उनके घर में भी पानी के सभी बर्तन खाली हैं. टैंकर से जो पानी ख़रीदकर मंगाया था, वो ख़त्म हो गया है.
पानी की क़िल्लत की वजह से उनके घर में कहासुनी हो जाना आम बात है. उनकी बहू व्यंग्य के अंदाज़ में कहती हैं, “पानी ना आने से हमारे घर में क्लेश हो जाता है. एक बाल्टी पानी में कोई कैसे बर्तन धोए, खाना बनाए.”
संगम विहार एक घनी आबादी वाली अनाधिकृत कॉलोनी है, जहां अनुमान के मुताबिक़ दस लाख से अधिक लोग रहते हैं. यहां एक बड़ी आबादी टैंकर से पानी की आपूर्ति पर निर्भर है.
मुश्किल उन परिवारों के लिए सबसे ज़्यादा है जहां ना पाइप से पानी पहुंचता है और ना टैंकर से.
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कच्ची कॉलोनियों का हाल
दिल्ली में ऐसी 1700 से अधिक अनाधिकृत कॉलोनी हैं. इनमें से अधिकतर में पानी की लाइन बिछी है और दिल्ली जल बोर्ड पानी की आपूर्ति करता है. लेकिन ऐसी झुग्गी-बस्तियां जहां पाइप तो पहुंचा है लेकिन पर्याप्त मात्रा में पानी नहीं पहुंच पा रहा है, वहां आबादी के अधिकतर हिस्से को पानी ख़रीदकर पीना पड़ रहा है.
अलग-अलग इलाक़ों में पानी की क़ीमत अलग-अलग है. देवली की एक गली में टैंकर से दस रुपए में बीस लीटर पानी बिक रहा है. यहां से लोगों को पानी भरवाकर ख़ुद ले जाना पड़ता है.
लेकिन जो लोग पानी की बोतल घर तक मंगवाते हैं, उन्हें बीस लीटर की एक बोतल के तीस से लेकर चालीस रुपए तक और ब्रांडेड बोतल के 90 से लेकर 100 रुपए चुकाने पड़ते हैं.
दिल्ली का ये जल संकट सिर्फ़ अनऑथराइज्ड कॉलोनी तक ही सीमित नहीं, बल्कि योजना के तहत बसाए गए इलाकों तक भी पहुंच गया है.
दक्षिण-पश्चिमी दिल्ली के वसंत कुंज इलाक़े में डीडीए के निर्मित अपार्टमेंट में रहने वाली पूजा भाटिया पीने के पानी के लिए घर में लगवाए गए फिल्टर पर निर्भर हैं. कई बार उन्हें भी बोतल बंद पानी ख़रीदना पड़ता है.
पूजा भाटिया कहती हैं, “हमारी सोसाइटी में पानी का पाइप नहीं पहुंचा है. यहां डीडीए टैंकर से पानी मंगवाता है. फिर उसमें भूजल मिलाकर उसे घरों में सप्लाई किया जाता है. इस पानी का टीडीएस इतना ज़्यादा होता है कि इसे पिया नहीं जा सकता है. ऐसे में हमें 25 हज़ार रुपए में आरओ लगवाना पड़ा है और इसकी मरम्मत पर सालाना क़रीब छह हज़ार रुपए ख़र्च हो जाते हैं.”
तीन लोगों के उनके परिवार को रोज़ाना क़रीब छह सौ लीटर पानी की ज़रूरत होती है. लेकिन उन्हें दो दिन में लगभग एक हज़ार लीटर पानी ही मिल पाता है.
पूजा कहती हैं, “पानी की क़िल्लत की वजह से जितनी ज़रूरत है उतना पानी नहीं मिल पाता है. हम आरओ से निकलने वाले वेस्ट वॉटर को बाल्टी में इकट्ठा करते हैं और फिर उसका इस्तेमाल गमलों में पानी देने के लिए करते हैं.”
वसंत कुंज इलाके में किराने की दुकानों का अधिकतर हिस्सा पानी की बोतलों से भरा है. इस दुकान पर काम करने वाला एक कर्मचारी बताता है, ‘हाउसिंग सोसायटी के अधिकतर घरों में रोज़ाना एक बोतल पानी जाता है. कुछ घरों में दो बोतलें भी ली जाती हैं. अधिकतर लोग यहां ब्रांडेड पानी ख़रीदते हैं. एक बोतल 90 रुपए की आती है.’
पूजा भाटिया कहती हैं, “पीने लायक साफ़ पानी टंकी में आना चाहिए. बहुत से लोग पानी ख़रीद सकते हैं, लेकिन ये बुनियादी ज़रूरत है. हमें ऐसे लोगों के बारे में भी सोचना होगा जो पानी ख़रीदने में सक्षम नहीं है.”
केंद्रीय दिल्ली के चाणक्यपुरी में बसी विवेकानंद झुग्गी बस्ती में पिछले कुछ महीनों में पानी का पाइप पहुंच गया है. लेकिन यहां अभी भी टैंकर के लिए लाइन लगती है. रोज़ शाम लगभग छह बजे यहां दिल्ली जल बोर्ड का टैंकर आता है. लेकिन लोग पांच बजे से ही इकट्ठा होना शुरू हो जाते हैं. यहां पानी को लेकर ऐसी मारामारी है कि कुछ बच्चे कई सौ मीटर पहले से ही चलते हुए टैंकर पर दौड़कर चढ़ जाते हैं ताकि पानी लेने के लिए अपना पाइप पहले डाल सकें.
अपना नाम न ज़ाहिर करते हुए विवेकानंद झुग्गी बस्ती में रहने वाली एक महिला कहती हैं, “पाइपलाइन लग गई है. कुछ देर पानी भी आता है, लेकिन ये ज़रूरत के हिसाब से काफ़ी नहीं होता. इसलिए यहां पानी भरने को लेकर इतनी मारामारी रहती है.”
ऐसा ही हाल गीता कॉलोनी के पास बसी झुग्गी बस्ती का भी है. यहां भी रोज़ाना सुबह सात बजे आने वाले पानी के टैंकर के लिए लोग छह बजे से ही कतार में लग जाते हैं. टैंकर से पहले पानी को लेकर बहस या खींचातानी तक होना यहां आम बात है.
नीति आयोग के समग्र जल प्रबंधन सूचकांक के मुताबिक़, दिल्ली भारत का दूसरा सबसे अधिक जल संकटग्रस्त शहर है. दिल्ली अपनी पानी की ज़रूरतों के लिए पड़ोसी राज्यों पर निर्भर है.
अभी जो 100 करोड़ गैलन यानी क़रीब 380 करोड़ लीटर पानी रोज़ाना दिल्ली में सप्लाई होता है उसका 61 प्रतिशत पानी यमुना नदी, 30 प्रतिशत गंगा नहर और बाक़ी 9 प्रतिशत भूजल से आता है.
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क्या कहते हैं एक्सपर्ट?
काउंसिल ऑन एनर्जी, एन्वायरमेंट एंड वॉटर के सीनियर प्रोग्राम लीड नितिन बस्सी मानते हैं कि दिल्ली के जल संकट से निपटने के लिए नज़रिया बदलना होगा.
नितिन बस्सी कहते हैं, “जो पानी लोगों के लिए इस्तेमाल के लिए भेजा जा रहा है, वो पूरा उन तक नहीं पहुंचता है. दिल्ली में अगर सौ यूनिट पानी लोगों तक भेजा जाता है तो उसमें से साठ यूनिट ही पहुंच पाता है. चालीस यूनिट बर्बाद हो जाता है. पानी का ये नुक़सान भारी पड़ रहा है.”
नितिन बस्सी कहते हैं, “पानी की लीकेज और चोरी को रोकना होगा. इसके अलावा ऐसे सिस्टम लगाने पर ज़ोर देना होगा जो कम पानी इस्तेमाल करते हैं. जैसे वॉशरूम में कम पानी इस्तेमाल करने वाले टैप लगाकर भी पानी बचाया जा सकता है. हमें आपूर्ति बढ़ाने के अलावा मांग कम करने पर भी ज़ोर देना होगा.”
नितिन बस्सी कहते हैं, “पीने के अलावा पानी की दूसरी ज़रूरतों जैसे कार को धोना, निर्माण कार्य, सड़कों की धुलाई, बाग़ीचों में या दूसरी ऐसी गतिविधियों में हम साफ़ किया गया ट्रीटेड वेस्ट पानी इस्तेमाल कर सकते हैं.”
दिल्ली जल बोर्ड घरेलू इलाक़ों में हर माह प्रति परिवार बीस हज़ार लीटर तक मुफ़्त पानी देता है. विशेषज्ञ मानते हैं कि पानी पर सब्सिडी सिर्फ़ ज़रूरतमंदों को मिलनी चाहिए ताक़ि बेहतर इंफ्रास्ट्रक्चर विकसित किया जा सके.
नितिन बस्सी कहते हैं, “दिल्ली में 70 से 80 प्रतिशत तक आबादी पानी के लिए बिल नहीं चुकाती है क्योंकि पानी मुफ़्त दिया जाता है. हमारे पास लोगों की आर्थिक स्थिति का डेटा है. जो ज़रूरतमंद हैं, उन्हें ही पानी मुफ़्त दिया जाए. सभी को मुफ़्त पानी देना भी पानी की बर्बादी का एक बड़ा कारण है. पानी एक सोशल गुड के साथ-साथ एक इकोनॉमिक गुड भी है. बेहतर इंफ़्रास्ट्रक्चर बनाने के लिए हमें पानी की जायज़ क़ीमत उपभोगताओं से लेनी होगी.”
दिल्ली की जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी में सेंटर फॉर लॉ एंड गवर्नेंस में प्रोफ़ेसर प्रकाश चंद कांडपाल मानते हैं कि पानी की ये क़िल्लत एक सामाजिक संकट में बदल सकती है.
प्रोफ़ेसर दिनेश कांडपाल कहते हैं, “एलीट क्लास के लिए पानी की उपलब्धता है और रहेगी. लेकिन जो तीस प्रतिशत जनता झुग्गी बस्तियों, रिसेटलमेंट कॉलोनियों या अनाधिकृत कॉलोनियों में है, वहां अधिकतर लोग ग़रीबी रेखा से नीचे रहते हैं. इन इलाक़ों में पानी लेने के लिए लोग लाइनों में लगते हैं. कई घंटे सिर्फ़ पानी लेने में ख़र्च हो जाते हैं. कई बार लोगों के बीच बहस और झगड़ा भी हो जाता है. ऐसी स्थिति से कहीं ना कहीं राज्य के लिए लोगों में नाराज़गी होती है. यदि ये हालात नहीं सुधरे तो आने वाले समय में पानी का संकट समाज में तनाव का कारण भी बन सकता है.”
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क्या है समाधान?
दिल्ली जल बोर्ड ने राजधानी के सभी हिस्सों में पानी पहुंचाने के इंफ्रास्ट्रक्चर को अपग्रेड किया है और टैंकरों की संख्या भी बढ़ाई है. यहीं नहीं जीपीएस से टैंकरों को ट्रैक करने की पहल भी की है ताक़ि पहुंचाए जा रहे पानी पर नज़र रखी जा सके.
दिल्ली जल बोर्ड के सामने कई चुनौतियां भी हैं. विशेषज्ञों के मुताबिक़ सबसे बड़ी चुनौती आपूर्ति के दौरान पानी के नुक़सान (वॉटर वेस्ट) की है.
दिल्ली जल बोर्ड के अनुमान के मुताबिक़ चालीस फ़ीसदी से अधिक पानी आपूर्ति के दौरान बर्बाद हो जाता है. पाइपलाइनों में लीकेज, अवैध टंकियां और पानी की चोरी इसका सबसे बड़ा कारण है.
पानी पर सब्सिडी का असर दिल्ली जल बोर्ड की आर्थिक सेहत पर भी हुआ है और बोर्ड का क़र्ज़ बढ़ता जा रहा है.
2023 के डेटा के मुताबिक़, दिल्ली जल बोर्ड पर 73 हज़ार करोड़ से अधिक का क़र्ज़ है, 2018 के बाद से लगभग दोगुना हो गया है.
दिल्ली जल बोर्ड इस जल संकट से निपटने के लिए क्या क़दम उठा रहा है ये जानने के लिए हमने दिल्ली जल बोर्ड से कई बार संपर्क किया, लेकिन ये रिपोर्ट प्रकाशित होने तक कोई जवाब नहीं मिल सका.
दिल्ली का जल संकट गहराता जा रहा है. बढ़ती आबादी और पानी की मांग के लिए सिर्फ़ पानी की आपूर्ति बढ़ाना आसान नहीं है.
विशेषज्ञों का मानना है कि ज़रूरत है पानी के प्रति नज़रिए और आदतों में बदलाव की. सवाल यही है कि क्या दिल्ली इसके लिए तैयार है.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित
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