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‘जब मैं नाटक करती हूं तो भूल जाती हूं कि मैं किस जाति से हूं’, चबूतरा थियेटर की कहानी क्यों है ख़ास?

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इमेज कैप्शन, चबूतरा थियेटर के फाउंडर महेश चन्द्र देवा के साथ अभिनय सीखने वाले कलाकार

  • Author, नीतू सिंह
  • पदनाम, लखनऊ से, बीबीसी हिंदी के लिए
  • 27 मई 2025

लखनऊ के डालीगंज के रविदास पार्क में पीपल के पेड़ की छांव में बना चबूतरा, सिर्फ़ ईंट-सीमेंट से बनी एक जगह नहीं है. ये एक मंच है, पाठशाला है और ख़ुद पर यक़ीन करने की हिम्मत की ज़मीन भी है.

इस जगह ने ना जाने कितने ही बच्चों को यकीन दिलाया है कि किसी भी पृष्ठभूमि का इंसान एक्टर बन सकता है और सिनेमा में काम करने वाले लोग दूसरी दुनिया से नहीं आते हैं.

लगभग ना के बराबर संसाधनों के साथ एक टीचर बीते 10 सालों से यहां के बच्चों को एक्टिंग और थियेटर के गुर सिखा रहे हैं.

यहां हर शाम दर्जनों बच्चे थियेटर की प्रैक्टिस करते हैं और ये अब तक अलग-अलग विषयों पर आधारित 100 से ज्यादा प्ले कर चुके हैं.

[SAMACHAR]

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