Generic Medicine : भारत सरकार की जेनेरिक दवा योजना को धंधेबाज खा गए हैं। आम जनता को जेनेरिक दवा के रूप में सस्ती तथा अच्छी दवा नहीं मिल रही है। कहने को तो भारत में जेनेरिक दवा बेचने के 9500 से भी अधिक केन्द्र हैं। सच्चाई यह है कि पूरे भारत में कहीं भी नागरिकों को जेनेरिक दवा नहीं मिल रही है। जहां कहीं जेनेरिक दवा मिल भी रही है तो डॉक्टरों तथा निजी दवा कंपनियों का गठजोड़ उन जेनेरिक दवा का प्रयोग रोकने के रास्ते में बड़ा बाधक बन रहा है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने शुरू की थी जेनेरिक दवा की योजना
आपको बता दें कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यह महसूस किया कि सामान्यजनों को सस्ती दवायें उपलब्ध होनी चाहिएं तब जेनेरिक दवाओं को प्रस्तुत किया गया। देश में 9,500 प्रधानमंत्री जन औषधि केन्द्र स्थापित किये गए। 60 कैटेगरीज की 60,000 किस्म की दवाइयां उन औषधि केन्द्रों के लिए बनाई जाती है, फिर भी ब्रांडेड औषधि के मुकाबले जेनेरिक औषधियों का उत्पादन हिस्सा मात्र डेढ़ प्रतिशत ही है। यानी ब्रांडेड फार्मा कंपनियों का ही बाजार में बोलबाला है।
फार्मा कंपनियां दवा के नाम पेटेंट करा कर ऊंची कीमत पर उन्हें बेचती हैं, जबकि जेनेरिक दवा 40 से 90 प्रतिशत तक कम मूल्य पर उपलब्ध हैं। क्रोसिन व डोलो का शुद्ध साल्ट पेरासिटामोल है किन्तु पेटेंट नाम होने से साल्ट कई गुणा ऊंची कीमत पर बिकता है। पिछले दिनों आरोप लगा था कि डोलो बेचने वाली कंपनी ने चिकित्सकों को करोड़ों रूपये की रकम इसलिए दी कि वे डोलो को प्रमोट करें।
भारत सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालय ने चिकित्सकों को जेनेरिक औषधियां मरीज के पर्चे पर लिखने की सलाह दी तो इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने आसमान सिर पर उठा लिया। पूरे देश में जेनेरिक औषधियों के विरुद्ध अंदरखाने अभियान चलाया गया। मरीजों और उनके तीमारदारों को यह बताया गया कि जेनेरिक दवायें बकवास हैं, 30 प्रतिशत भी असरदार नहीं। खास कर कैंसर व हार्ट रोग की जेनेरिक दवाइयां तो बिल्कुल बेअसर है।
भारत सरकार की जेनेरिक दवा योजना को रद्दी की टोकरी में डाला
डॉक्टरों ने दवा कंपनियों के साथ गठजोड़ कर रखा है। इसी कारण तमाम डाक्टरों ने मिलकर भारत सरकार में स्वास्थ्य मंत्रालय की सलाह को रद्दी की टोकरी में डाल दिया है। आश्चर्य है कि सरकारी अस्पताल के डॉक्टर्स भी पर्ची पर ब्रांडेड दवाइयों के नाम लिखते हैं जबकि जेनेरिक औषधि को प्रिस्क्राइब करने के आदेश हैं। जो सरकारी डॉक्टर प्राइवेट प्रैक्टिस करते हैं, जिन्होंने अपने निजी क्लीनिक पर मेडिकल स्टोर खोल रखा है या खुलवा रखा है, वहां जेनेरिक औषधि नहीं, ब्रांडेड दवायें ही मिलती है।
अधिकांश जन औषधि केन्द्रों पर दवाओं की उपलब्धता नहीं होती। एक उदाहरण के तौर पर उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर जिला अस्पताल परिसर में प्रधानमंत्री जन औषधि केंद्र पर जाइये। सेल्समेन वीडियो गेम खेलते मिलेंगे या मोबाइल फोन पर गाना सुनते। पर्चे पर एक नजर मारेंगे और हाथ से इशारा कर देंगे कि दवा नहीं है। 80 प्रतिशत ऐसा ही होता है। जिला अस्पताल के सामने एक मेडिकल स्टोर पर भी जन औषधि केन्द्र का बोर्ड लटका है।
वहां भी जेनेरिक दवाइयां कम ही उपलब्ध हैं। पुरानी घास मंडी स्थित जन औषधि केन्द्र पर अलबत्ता ज्यादा ग्राहक आते हैं किन्तु वहां भी सभी जेनेरिक औषधियां उपलब्ध नहीं है। यह तो मात्र उत्तर प्रदेश के एक जिले का उदाहरण है। देश के किसी भी कोने में जाएं जेनेरिक दवा की योजनान को धंधेबाज पूरी तरह से हजम कर चुके हैं।
जेनेरिक दवा के नाम पर चल रहे खेल को समझें
भारत में झारखण्ड प्रदेश से सामने आई एक मीडिया रिपोर्ट से जेनेरिक दवा की योजना को खा जाने से समझ सकते हैं। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार झारखंड प्रदेश के शहरी सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र डोरंडा, रांची में डॉक्टर की अपनी मनमानी है। यहां डॉक्टर ब्रांडेड दवाएं लिख रहे हैं और पेशेंट को दवा खरीदकर लाने को कहा जाता है तब उन्हें बताया जाता है दवा कैसे लेना है। यदि कोई जेनरिक या दूसरी कंपनी की सस्ती दवा लेकर आता है, तो उसे डराया जाता है इससे काम नहीं होगा। पेशेंट को मजबूरन महंगी दवा खरीदनी पड़ रही है। डोरंडा स्वास्थ्य केन्द्र में आए मरीजों के साथ ये परेशानी देखी गयी है।
जहां एक लाइन तो डॉक्टर से मिलने के लिए होती है, तो दूसरी लाइन डॉक्टर से दवा दिखाने वालों की होती है। भीड़ होने पर वहां मौजूद जवान जब इसका कारण पूछते हैं तो उनको जवाब मिलता है कि डॉक्टर साहब दवा खरीदकर लाने को बोले थे, कब कितनी खुराक लेनी है ये डॉक्टर बतायेंगे। हद तो तब हो जाती हो जब दूसरी बार आप डॉक्टर से मिलने जाएंगे तो वो आपसे पहले जो दवा चली है उसकी खाली बोतल या रैपर जो भी हो लाने को कहा जाएगा, पुरानी पर्ची से काम नहीं चलेगा। आपको वहां से लौटना पड़ सकता है। इसकी एक वजह ये भी हो सकती है वो कन्फर्म करना चाहते हैं कि पिछली बार जो दवा प्रिस्क्राइब किए थे वही आपने खरीदा है या फिर किसी अन्यु दुकान से जेनरीक दवा तो नहीं ले ली है।
महंगी दवा खरीदने को मजबूर हैं मरीज
प्राइवेट अस्पतालों, प्राइवेट क्लिनिकों तथा नर्सिंग होम का और भी बुरा हाल है. कुछ डॉक्टर्स ऐसे भी हैं जिनकी लिखी दवा उनके ही मेडिकल शॉप में मिलेगी या फिर किसी खास दवाई दुकान में। कोई जेनरिक दवा खरीदकर पैसा बचाना भी चाहे तो वो ऐसा नहीं कर सकता। कई मेडिकल शॉप में दवाइयों पर छूट दी जाती है लेकिन यहां पर कुछ डॉक्टर के प्रिस्क्राइब दवा नहीं मिलने में परेशानी होती है।
अब इसे एमआर का प्रेशर कहें या कमीशन का लालच डॉक्टर जेनरिक दवा लिखने से बचते हैं। दवाई दुकानदार भी लोगों को बताते हैं कि जेनरिक दवा फायदा नहीं करता। वो भी ब्रांडेड दवा ही प्रेफर करते हैं और सस्ती दवा से दूर रहने की सलाह देते हैं। अब गरीब मजबूरी में महंगी दवा खरीदने को मजबूर हो जाता है. इस मामले में स्वास्थ्य विभाग को पहल करनी चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट के आदेश का भी असर नहीं
सुप्रीम कोर्ट ने एक मई 2025 को मौखिक रूप से टिप्पणी की है कि यदि डॉक्टरों को केवल जेनेरिक दवाएं ही लिखने के लिए विधिक रूप से बाध्य किया जाए, तो फार्मा कंपनियों द्वारा महंगी ब्रांडेड दवाओं के प्रचार हेतु डॉक्टरों को दी जाने वाली कथित घूस की समस्या काफी हद तक समाप्त हो सकती है। न्यायमूर्ति विक्रम नाथ, न्यायमूर्ति संजय करोल और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की खंडपीठ इस विषय पर दायर एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें यह आरोप लगाया गया है कि दवा कंपनियां व्यवसाय बढ़ाने और महंगी व अनावश्यक दवाओं को लिखवाने के लिए डॉक्टरों को घूस देती हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने दवा कंपनियों से जुडी याचिका की सुनवाई के दौरान यह टिप्पणी की है। इस याचिका में दवा कंपनियों पर मनमानी का आरोप लगाया गया था। सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति संदीप मेहता ने कहा कि “राजस्थान में अब एक कार्यपालक आदेश है कि प्रत्येक डॉक्टर को केवल जेनेरिक दवाएं ही लिखनी होंगी। वे किसी कंपनी का नाम नहीं लिख सकते। इससे काफी हद तक समस्या सुलझ सकती है। ”
उन्होंने आगे जोड़ा, “सोचिए, अगर ऐसा ही निर्देश पूरे देश में लागू कर दिया जाए, तो इस तरह की सारी समस्याएं स्वत: समाप्त हो जाएंगी।” सुप्रीम कोर्ट के इस मौखिक निर्देश का भी डाक्टरों तथा प्राइवेट कंपनियों ने मजाक बनाया है। प्राइवेट डाक्टरों का कहना है कि भारत में जेनेरिक दवा नहीं बिकने देंगे। डॉक्टरों तथा बड़ी-बड़ी दवा कंपनियों का गठजोड़ मिलकर भारत सरकार की जेनेरिक दवा योजना को खा गए हैं। Generic Medicine
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