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film kathal :बीते दिनों 71वें नेशनल फिल्म अवॉर्ड्स की घोषणा हुई, जिसमें नेटफ्लिक्स पर साल 2023 में रिलीज हुई फिल्म ‘कटहल : ए जैकफ्रूट मिस्ट्री’ने बेस्ट फिल्म का अवॉर्ड अपने नाम किया है. फिल्म के राइटर और गीतकार अशोक मिश्रा इस उपलब्धि को किसी सपने के सच होने जैसा बताते हैं. उन्होंने इस फिल्म के लेखन, निर्माण और रिलीज से जुड़े अनुभवों और चुनौतियों को उर्मिला कोरी से साझा किया है.–
कहानी का आईडिया आठ साल पहले आया
इस फिल्म का आईडिया फिल्म के निर्देशक यशोवर्द्धन मिश्रा को फिल्म मेकिंग की पढ़ाई के दौरान ही आया था. यह करीब सात-आठ साल पहले की बात है. शॉर्ट फिल्म ‘मंडी’ की रिलीज के बाद वह कटहल की कहानी को भी शॉर्ट फिल्म के जरिये कहना चाहते थे. उन्होंने कुछ निर्माताओं को अप्रोच भी किया, लेकिन सभी ने रिजेक्ट कर दिया।वो कहते हैं कि कभी-कभी रिजेक्शन अच्छा होता है, वरना आज फिल्म को बेस्ट फीचर फिल्म का नेशनल अवॉर्ड नहीं मिलता.
बाप बेटे का नहीं दोस्त जैसा रिश्ता
इस फिल्म के निर्देशक यशोवर्द्धन मिश्रा और मेरे बीच बाप बेटे का रिश्ता है लेकिन हम दोस्त की तरह है. हमारी दोस्ती इतनी गाढ़ी है कि काम के वक़्त अगर कुछ गलत हो जाए तो सिर्फ मैं ही नहीं बल्कि वह भी मुझे स्टुपिड बोल सकता है. कटहल की राइटिंग और मेकिंग के दौरान हमारे कई मन मुटाव भी हुए थे। संवाद में भी हमें लगता था कि ये सही नहीं है लेकिन आखिर में फिल्म के हित में मिलकर फैसला ले ही लेते थे.
आजम खान की भैंस चोरी की घटना से नहीं है प्रेरित फिल्म
‘कटहल’ की कहानी की प्रेरणा राजनेता आजम खान की भैंस चोरी के प्रकरण से जुड़ी बतायी जाती है, लेकिन मैं इसे सही नहीं कहूंगा। आजम खान की भैंस चोरी के बारे में “जो भी मैंने सुना है, वो यह कि आजम खान की भैंसें बहुत महंगी थीं. उनकी 12 से 15 भैंसें गुम हुई थीं, जो करोड़ों की रही होंगी, तो ऐसे में चोरी की रिपोर्ट लिखाना बिल्कुल सही था. जहां तक इस फिल्म की प्रेरणा की बात है, तो दिल्ली के एक सांसद के घर से कटहल चोरी होने की खबर सामने आयी थी, तो आइडिया वहीं से आया. बाकी की कहानी हमने डेवलप की. फिल्म की कहानी को लिखने में लगभग एक साल लगा.”
कई किरदारों व सीक्वेंस की प्रेरणा वास्तविक लोगों से मिली
हम फिल्म को पूरा रियलिस्टिक टच देना चाहते थे इसलिए कमरे में बैठकर कहानी नहीं लिखी. मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के कई इलाकों में जाकर पुलिस अधिकारियों से बातचीत की. इंस्पेक्टर से लेकर कांस्टेबल तक सभी से मिले. उन पुलिसकर्मियों ने कई दिलचस्प कहानियां साझा कीं, जिनसे फिल्म में नयापन आया. हम एक युवा महिला इंस्पेक्टर से मिले थे. बातचीत के दौरान एक कांस्टेबल आया, उन्होंने इंस्पेक्टर को सैल्यूट किया, फाइल में कुछ दस्तखत करवाये और जाने लगे. तभी इंस्पेक्टर ने उन्हें रोका और हमसे परिचय करवाया, ‘ये मेरे पति हैं.’ यह पल हमें इतना अपील कर गया कि हमने इसे महिमा और उसके कॉन्स्टेबल बॉयफ्रेंड के जरिये फिल्म में शामिल किया.” राजपाल का किरदार भी एक रियल इंसान से प्रेरित है. हम महोबा में अनुज नाम के एक पत्रकार से मिले, जो अपना छोटा-सा चैनल चलाते हैं. उनका व्यक्तित्व इतना रोचक था कि हमने फिल्म में उनका नाम भी ‘अनुज’ ही रखा.”
पहले दो घंटे 45 मिनट की थी
फिल्म की लम्बाई दो घंटे की है, लेकिन शुरुआत में फिल्म की लंबाई पहले दो घंटे 45 मिनट की थी. फिल्म के निर्माताओं ने इससे ऐतराज जताया कि इतनी लंबी फिल्म कोई नहीं देखेगा. पहले 15 मिनट काटे, फिर 15 मिनट और उन्होंने कम करने को कहा. फिल्म सवा दो घंटे की बनी, फिर नेटफ्लिक्स ने फिल्म को दो घंटे की करने को कहा, जिसकी वजह से विजेंद्र कालरा का रोल कम करना पड़ा. वैसे यह बात फिल्मों में आम है. वह भी समझते हैं, क्योंकि इससे फिल्म को फायदा पहुंचाता है. फिल्म स्वीट और सिंपल हो गयी.
दलित अभिनेत्री की थी तलाश
इस फिल्म की कहानी में महिमा बसोर का किरदार दलित महिला का है, तो शुरुआत में हम इस भूमिका के लिए किसी दलित अभिनेत्री को ही कास्ट करने की सोच रहे थे. कई नये चेहरों का ऑडिशन लिया, लेकिन बात नहीं बनी. फिल्म एक कमर्शियल माध्यम है, तो आपको इस बात का भी ध्यान रखना पड़ता है. गुनीत मोंगा की परिचित सान्या मल्होत्रा थीं. उन्होंने फिल्म का आइडिया सुनते ही हां कह दिया. सान्या को देखकर कइयों का कहना था कि दलित गोरे कबसे होने लगे. ये पूर्वाग्रह होता है.ऑडिशन में हमें कई सुंदर, गोरी और दलित लड़कियां आयी थीं.
रियल लोकेशन पर शूटिंग की दिक्कतें
कटहल रियल लोगों की कहानी है और यह रियल लोकेशन पर शूट हुई है. रियल लोकेशन पर शूटिंग की चुनौतियाँ भी कम नहीं होती है. एक दिन पुलिस स्टेशन के अंदर का सीन शूट हो रहा था. सामने एक मंदिर था. शिवरात्रि का दिन था, तो लाउडस्पीकर भी बज रहा था. हमें लगा कि आज का दिन बेकार जायेगा. हमने उनसे लाउडस्पीकर न बजाने की रिक्वेस्ट की. उन्होंने बात मान ली. फिल्म में एक पुरानी वैन का इस्तेमाल हुआ है. वो अचानक से एक दिन शूटिंग के वक्त बंद हो गयी. किसी तरह से मैकेनिक ढूंढकर हमने उसे बनवाया था.
छोटे शहर और गांव की कहानियां कहते रहेंगे
आनेवाले प्रोजेक्ट की बात करूँ तो यशोवर्द्धन अपनी पत्नी के साथ मिलकर एक कहानी लिख रहा है. मेरी एक कहानी पूरी हो गयी है. निर्माताओं से बात हो रही है. छोटे शहर और गांवों की कहानियों को ही लाने की कोशिश रहेगी क्योंकि वहीँ असली कहानियां मिलती है. मैं तो अलग -अलग भारतीय भाषाओँ को भी अपनी फिल्मों में जोड़ता रहता हूँ. मुझे हिंदी तभी अच्छी लगती है , जब उसमें भोजपुरी,अवधि ,बघेली, बुंदेली जैसी प्रादेशिक भाषाएं भी जुड़ी हो. कटहल से पहले वेल डन अब्बा और वेलकम टू सज्जनपुर में भी यह नजर आया था.
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