CBSE: 10वीं की बोर्ड परीक्षाओं और पाठ्यक्रम में क्या है बड़े बदलाव की योजना
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केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई) ने नौवीं और दसवीं कक्षा के लिए पाठ्यक्रम और परीक्षा को लेकर कुछ बड़े बदलावों की घोषणा की है.
सबसे बड़ा बदलाव है दसवीं कक्षा के लिए साल में दो बार बोर्ड परीक्षा आयोजित करना.
इसके अलावा बोर्ड परीक्षा आयोजन की अवधि और कुछ विषयों में द्विस्तरीय पाठ्यक्रम के विकल्प देने जैसे मुद्दे शामिल हैं.
सीबीएसई का कहना है कि ये बदलाव राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 के दिशानिर्देशों के अनुरूप किए जा रहे हैं और इससे स्टूडेंट्स के प्रदर्शन में सुधार आएगा.
साल में दो बार बोर्ड परीक्षाएं, क्या होंगे नियम
मंगलवार को सीबीएसई ने नियमों का मसौदा जारी किया जिसके अनुसार, साल में दो बार 10वीं कक्षा की बोर्ड परीक्षाएं आयोजित की जाएंगी.
इसके अनुसार, स्टूडेंट एक या दोनों बोर्ड परीक्षाओं में शामिल होने का विकल्प चुन सकते हैं और अगर वे बाद वाली बोर्ड परीक्षा चुनते हैं तो वे उन विषयों को छोड़ सकते हैं जिनमें वे आगे नहीं पढ़ना चाहते हैं.
साथ ही दो बोर्ड परीक्षाओं में एक इम्प्रूवमेंट परीक्षा होगी.
बोर्ड परीक्षाओं की अवधि को मौजूदा 32 दिनों से कम करके 16 से 18 दिनों में कराने का भी प्रस्ताव है. पहले चरण की परीक्षा 17 फ़रवरी से छह मार्च के बीच और दूसरे चरण की परीक्षा 5 मई से 20 मई के बीच कराने का प्रस्ताव है.
इसका मतलब है कि स्टूडेंट्स को दो परीक्षाओं के बीच एक या दो दिन का गैप मिलेगा. मौजूदा समय में यह गैप पांच से 10 दिनों तक का होता है.
पहले चरण के नतीजे 20 अप्रैल तक और दूसरे चरण के नतीजे 30 जून तक आएंगे.
इन नियमों पर सभी पक्षों से राय मांगी गई है जिनमें स्कूल, अध्यापक, अभिभावक, छात्र और आम लोग अपने विचार 9 मार्च तक दे सकते हैं.
मसौदे में प्रस्ताव किया गया है कि इस योजना को अगले साल से लागू किया जा सकता है.
पाठ्यक्रम में बदलाव
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एक अन्य बदलाव में 9वीं और 10वीं कक्षा में साइंस और सोशल साइंस में दो विकल्प वाले पाठ्यक्रम को लागू करने के लिए गवर्निंग बॉडी की ओर से हरी झंडी मिल गई है.
इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के अनुसार, सीबीएसई छात्रों को इन दो विषयों में स्टैंडर्ड और एडवांस्ड दो विकल्प दिए जाएंगे.
अगले साल इसे कक्षा 9 के लिए और 2028 से कक्षा 10 की बोर्ड परीक्षाओं में लागू किया जाएगा.
विद्यार्थियों के प्रदर्शन में सुधार के लिए विज्ञान और सामाजिक विज्ञान के विषयों में दो विकल्प देने की तैयारी है और तर्क है कि इससे छात्रों को आगे की प्रवेश परीक्षाओं की तैयारी में आसानी होगी.
एनईपी 2020 में सुझाव दिया गया है कि गणित के साथ साथ सभी विषयों को दो स्तर पर लागू किया जा सकता है, जिसमें कुछ छात्रों को स्टैंडर्ड लेवल और कुछ को एडवांस्ड लेवल का विषय चुनने का विकल्प होगा.
विज्ञान और सामाजिक विज्ञान में दो स्तर के पाठ्यक्रम को 9वीं कक्षा में अगले साल से लागू करना है उसके लिए एनसीईआरटी को किताबें तैयार करने की ज़िम्मेदारी दी गई है.
हिंदुस्तान टाइम्स की एक ख़बर के मुताबिक़ सीबीएसई चेयरमैन राहुल सिंह ने कहा, “कक्षा 10 में इन दोनों विषयों के एडवांस्ड लेवल में अतिरिक्त सामग्री जोड़ी जाएगी. एग्ज़ाम में एडवांस्ड लेवल के लिए अतिरिक्त प्रश्न पत्र जोड़े जा सकते हैं या उनके अलग अलग प्रश्न पत्र भी बनाए जा सकते हैं.”
नेशनल करिकुलम फ़्रेमवर्क फॉर स्कूल एजुकेशन 2023 के अनुसार, सभी कक्षाओं के लिए नई पुस्तकें तैयार करने की ज़िम्मेदारी एनसीईआरटी को दी गई थी और उसने 2023 में कक्षा एक और दो के लिए और 2024 में कक्षा तीन और छह के लिए नई पुस्तकें जारी की थीं.
इस साल कक्षा चार, पांच, सात और आठ की नई किताबें आने वाली हैं.
सीबीएसई चेयरमैन राहुल सिंह के अनुसार, अगले सत्र यानी 2026-2027 से कक्षा 9 की किताबें आएंगी.
बदलाव के पीछे तर्क
साल में दो बार बोर्ड परीक्षाएं आयोजित किए जाने के जारी मसौदे में कहा गया है कि बोर्ड परीक्षाओं को आसान बनाया जाएगा जिससे छात्रों की मूल क्षमता का पता लग सके, न कि महीनों की कोचिंग और रटने की ज़रूरत पड़े.
मसौदे के अनुसार साथ ही इसका मक़सद है कि स्कूल की कक्षाओं में नियमित शामिल होने वाला कोई भी स्टूडेंट बिना अतिरिक्त कोशिशों के इन परीक्षाओं को पास कर सके.
साथ ही इसमें कहा गया है, “बोर्ड परीक्षाओं के ख़ौफ़ को ख़त्म करने के लिए छात्रों को साल में दो बार एक्ज़ाम देने का विकल्प दिया जाएगा, एक मुख्य परीक्षा होगी और दूसरी ज़रूरत के अनुसार इंप्रूवमेंट.”
गणित के बाद विज्ञान विषयों में दो स्तरीय विकल्प देने के पीछे भी बोर्ड का तर्क है कि इससे छात्रों को अपने पसंदीदा विषय का चुनाव करने में आसानी होगी.
शिक्षा जगत से जुड़े जानकारों का कहना है कि दो विकल्पों से उन छात्रों को आसानी होगी जो आगे चलकर संयुक्त प्रवेश परीक्षा (जेईई) में शामिल होना चाहते हैं.
बोर्ड का मानना है कि मौजूदा पाठ्यक्रम उन छात्रों के लिए आधुनिक नहीं माना जाता जो प्रवेश परीक्षाओं की तैयारी करते हैं, इसलिए उन्हें कोचिंग क्लास का सहारा लेना पड़ता है.
हालांकि एनसीईआरटी के पूर्व डायरेक्टर जेएस राजपूत ने बीबीसी से बात करते हुए कहा, “हालांकि इस उपाय से थोड़ा बहुत फ़ायदा हो सकता है लेकिन छात्रों पर कोचिंग का बोझ कम करने के लिए कई बुनियादी बदलाव लाने होंगे.”
2019-2020 से सिर्फ़ गणित ही एकमात्र विषय रहा है जिसमें सीबीएसई ने 10वीं के लिए दो स्तर के पाठ्यक्रम लागू किए- स्टैंडर्ड मैथमेटिक्स और बेसिक मैथमेटिक्स. हालांकि इन दोनों स्तरों में पाठ्यक्रम एक जैसा है लेकिन बोर्ड एग्ज़ाम में प्रश्नपत्रों की जटिलता में अंतर है.
दिल्ली पैरेंट्स एसोसिएशन की पदाधिकारी अपराजिता गौतम ने बीबीसी से कहा, “यह प्रयोग गणित में किया गया और उसका बच्चों को फ़ायदा हुआ है. जिन्हें आगे चलकर गणित नहीं चुनना है या जिनकी पसंद कोई और विषय है उन्हें एडवांस्ड स्तर का पाठ्यक्रम नहीं पढ़ना पड़ता.”
वो कहती हैं, “इसी तरह जिन बच्चों को गणित में आगे जाना है और प्रवेश परीक्षाओं और प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करनी है उनके लिए दसवीं से ही एक विकल्प मौजूद होगा और उन्हें अपनी तैयारी में आसानी होगी.”
नए बदलावों को लागू करने में क्या हैं दिक्कतें
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पाठ्यक्रम और एग्ज़ाम समेत नए बदलावों को लेकर अभिभावकों में कुछ आशंकाएं भी हैं क्योंकि पाठ्यक्रम की किताबें उपलब्ध होने में देरी होती है, जो बदलाव की प्रक्रिया को धीमा कर देता है.
दिल्ली पैरेंट्स एसोसिएशन की अपराजिता गौतम का कहना है कि जो बदलाव किए जा रहे हैं, उन्हें जब तक सही से लागू नहीं किया जाएगा, छात्रों की मुश्किलें आसान नहीं होंगी.
बीबीसी से बात करते हुए उन्होंने कहा, “सबसे बड़ी समस्या है कि सीबीएसई की नई किताबें समय से उपलब्ध नहीं होतीं और सत्र शुरू के तीन तीन महीने बाद कहीं जाकर प्रकाशित होकर मिल पाती हैं.”
इस समस्या को लेकर कई अभिभावकों ने भी शिकायत की है.
अपराजिता गौतम का कहना है कि सीबीएसई से संबद्ध कई स्कूल इसका फ़ायदा उठाते हुए अपनी किताबें प्रकाशित करके अभिभावकों से उन किताबों को ख़रीदने के लिए मजबूर करते हैं.
वो कहती हैं, “सबसे पहले सीबीएसई बोर्ड के निजी स्कूलों को अपनी किताबें छापकर पाठ्यक्रम के तौर पर उन्हें पढ़ाने पर रोक लगनी चाहिए और यह तभी हो सकता है जब सीबीएसई की किताबें समय पर सबको उपलब्ध हों.”
उनका कहना है कि एनईपी के तहत इतने बदलाव हो रहे हैं कि अभी स्पष्टता आने में समय लगेगा कि वाक़ई क्या हो रहा है और यह कितना लागू हो पाएगा.
क्या कहते हैं एनसीईआरटी के पूर्व डायरेक्टर
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एनसीईआरटी के पूर्व डायरेक्टर जेएस राजपूत ने बीबीसी से बात करते हुए कहा कि यह बहुत पहले से चर्चा होती थी कि पाठ्यक्रम को सरल बनाया जाए क्योंकि इसकी वजह से बहुत सारे बच्चे ड्रॉप आउट हो जाते हैं.
उनके अनुसार, बच्चों के बस्ते के बोझ को कम करने के लिए एक यशपाल कमेटी बनी थी. इसमें सुझाव दिया गया था कि भूगोल, इतिहास, राजनीति शास्त्र और अर्थशास्त्र का पाठ्यक्रम बहुत अधिक है.
जेएस राजपूत बताते हैं, “अपने कार्यकाल में हमने छह, सात और आठवीं कक्षा के लिए इन चार विषयों को एकीकृत किया था और इसे नौवीं और दसवीं के लिए भी किया जाना था, लेकिन उस समय नहीं हो पाया.”
उनके अनुसार, पाठ्यक्रम में नए बदलावों को संभवतः बच्चों की रुचि को ध्यान में रखकर किया जा रहा है, जिसे बहुत पहले हो जाना चाहिए था.
वो कहते हैं, “हमारी शिक्षा में सबसे बड़ी समस्या ये रही कि ज़बरदस्ती सबकुछ पढ़ना ही है, लेकिन ये देखा जाना चाहिए कि बच्चे की रुचि किधर जा रही है.”
हालांकि कोचिंग के बोझ से मुक्ति मिलने के दावों से वो पूरी तरह सहमत नहीं हैं.
वो कहते हैं, “बच्चों की कोचिंग पर निर्भरता तब तक कम नहीं होगी जब तक शिक्षकों के लाखों रिक्त पद नहीं भरे जाएंगे और प्राथमिक शिक्षा में तो ख़ासकर शिक्षकों की भारी कमी है. नई शिक्षा नीति में यह माना भी गया है और अनियमित शिक्षकों की जगह नियमित भर्तियों की बात कही है.”
“अगर कोचिंग इंडस्ट्री पर निर्भरता कम करनी है तो सबसे पहले शिक्षकों पर भरोसा करना होगा और सबसे अधिक भरोसा प्राथमिक शिक्षा के अध्यापकों पर करना होगा, उनकी सुविधाएं सुनिश्चित होनी चाहिए और उनकी भर्तियां समय से होनी चाहिए.”
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित.