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3 मिनट पहले
”पिछले 20-30 साल से देख रहा हूं कि हिंदुस्तान की न्यायपालिका की हालत धीरे-धीरे ख़स्ता होती जा रही है. जब मैंने 1978 में वकालत शुरू की थी, तब न्यायपालिका बहुत स्वतंत्र थी. ये माहौल धीरे-धीरे बिगड़ता गया.”
“अभी भी कुछ बहुत अच्छे जज हैं. लेकिन वैसे जज गिने-चुने हैं… ऐसे वातावरण में 48 साल के बाद वकालत जारी रखने में कोई आनंद नहीं था.”
ये शब्द सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील दुष्यंत दवे के हैं.
आमतौर पर वकील रिटायर नहीं होते तो आख़िर उन्होंने यह फ़ैसला क्यों किया?
कुछ दिनों पहले की बात है. अपना 70वां जन्मदिन मनाने के बाद दुष्यंत दवे ने वकालत छोड़ने का एलान किया था. हमारे संवाददाता उमंग पोद्दार ने उनसे ऐसे ही कई सवाल के जवाब जानने चाहे. सवालों में करियर और न्यायपालिका से जुड़े कई मुद्दे शामिल थे.
दुष्यंत दवे भारत के बड़े वकीलों में से एक रहे हैं. इन्होंने कई बड़े मामलों में बहस की है. इनमें 2जी स्पेक्ट्रम घोटाला, व्यापम घोटाला और अनुच्छेद 370 को हटाने के ख़िलाफ़ याचिकाएं शामिल हैं. वे तीन बार सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष भी रह चुके हैं. सरकार और न्यायपालिका के कामकाज के सबसे चर्चित आलोचकों में से भी एक रहे हैं.
वकालत छोड़ने के फ़ैसले पर उनका कहना था कि इसके अनेक कारण हैं. उनके कई शौक़ हैं. इन्हें वे ज़्यादा वक़्त देना चाहते हैं. जैसे, संगीत सुनना, किताबें पढ़ना, गोल्फ़ खेलना और परिवार के साथ वक़्त बिताना…
यहां पेश है बीबीसी संवाददाता उमंग पोद्दार की दुष्यंत दवे के साथ बातचीत के चुनिंदा अंश.
सवाल न्यायपालिका की स्वतंत्रता का
जब हमने उनसे पूछा कि उन्हें क्यों लगता है कि न्यायपालिका की स्वतंत्रता कम हुई है तो दुष्यंत दवे ने कहा, “इसके कई कारण हैं.”
उनका मानना है कि भारत की अदालतों के सामने मुकदमों की संख्या बहुत ज़्यादा है.
वह कहते हैं, “आज भारत में पांच करोड़ से ज़्यादा मामले लंबित हैं. इन्हें अभी की गति से पूरी तरह सुनने में 50 से 100 साल लग सकते हैं.”
“हम अच्छे जजों की नियुक्ति नहीं कर पा रहे हैं, इसके कारण न्यायपालिका की क्षमता कम हुई है.”
उन्होंने न्यायपालिका की स्वतंत्रता कम होने से जुड़ी दो मिसालें दी. वे कहते हैं कि एक तरफ़ अदालतों में सरकार के ख़िलाफ़ फ़ैसले कम आ रहे हैं और दूसरी ओर, सालों से जेल में पड़े लोगों को ज़मानत तक मिलने में मुश्किल हो रही है.
वो कहते हैं, “ऐसा हमने इंदिरा गांधी के समय भी देखा है. जब-जब एक मज़बूत प्रधानमंत्री देश में आता है, तो न्यायपालिका पर दबाव बढ़ जाता है.”
उनका कहना था कि हाल के कई मुख्य न्यायाधीशों के कार्यकाल में सरकार सुप्रीम कोर्ट में केस जीतती गई.
इसके साथ ही उन्होंने कई ऐसे मामलों का हवाला भी दिया, जिनके फ़ैसले से वो निराश हुए. जैसे, बाबरी मस्जिद-राम जन्मभूमि केस, रफ़ाल फाइटर विमानों की ख़रीद, प्रवर्तन निदेशालय की शक्तियों का केस और कुछ दूसरे मामले.
जब हमने दुष्यंत दवे से पूछा कि जज तो कहते हैं कि उन पर कोई दबाव नहीं रहता. जजों का आमतौर पर कहना है कि उनकी आलोचना सिर्फ़ इस बात के लिए नहीं करनी चाहिए कि वे सरकार के ख़िलाफ़ फ़ैसले नहीं दे रहे.
इस पर दुष्यंत दवे का कहना था कि उनके मुताबिक बहुत सारे मामले ऐसे थे, जिनमें साफ़ था कि कोर्ट का फ़ैसला सरकार के ख़िलाफ़ आना चाहिए था. ऐसा हुआ नहीं.
ऐसे मामलों में उन्होंने दिल्ली दंगों और भीमा कोरेगांव की हिंसा से जुड़े मामले भी गिनवाए. इन मामलों में कई अभियुक्त सालों से जेल में बंद हैं और मुक़दमा शुरू ही नहीं हुआ है.
दवे की राय में ऐसे मामले अगर एक स्वतंत्र न्यायपालिका के सामने आते तो उन्हें रिहा कर दिया जाता.
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जज बृजगोपाल लोया महाराष्ट्र के एक जज थे. इनकी मृत्यु 2014 में हुई. उस वक़्त वे अमित शाह के ख़िलाफ़ एक मामले की सुनवाई कर रहे थे. जज लोया की मौत से जुड़ी एक याचिका में दुष्यंत दवे ने बहस की थी.
इस याचिका में सुप्रीम कोर्ट से जज लोया की मौत की एक स्वतंत्र जांच की मांग की गई थी. हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने इसकी इजाज़त नहीं दी.
दुष्यंत दवे के मुताबिक, “हमारे लोकतंत्र के हाल के इतिहास में यह केस सबसे दुखद घटनाओं में से एक था.”
वह कहते हैं कि ऐसा नहीं है कि न्यायपालिका बिल्कुल अच्छा काम नहीं कर रही. जहां दो नागरिकों के बीच का मामला है, न्यायपालिका सही काम कर रही है. लेकिन दुष्यंत दवे मानते हैं, “लोगों का सबसे बड़ा मसला सरकारों के साथ रहता है.”
उन्होंने कहा, “अगर उन मामलों में न्यायपालिका अपनी स्वतंत्रता नहीं दिखा पा रही है तो यह कहना सही नहीं होगा कि वह अच्छा काम कर रही है.”
कोर्ट की आलोचना
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हमने उनसे यह जानना चाहा कि वे बहुत समय से कोर्ट की कड़ी आलोचना करते आ रहे हैं. क्या इससे उनकी प्रैक्टिस या आमदनी पर भी फ़र्क़ पड़ा?
उन्होंने इस बात का जवाब खुल कर नहीं दिया. उन्होंने कहा, “इन सब चीज़ों में जाने की कोई ज़रूरत नहीं है. मैंने 250 रुपए से प्रैक्टिस शुरू की थी और उसके बाद भगवान ने मुझे बहुत कुछ दिया है. गुजरात में मैं 20 सालों तक सबसे ज़्यादा टैक्स देने वाला प्रोफ़ेशनल था.”
हालांकि, उन्होंने यह ज़रूर जोड़ा, “जब तक आप किसी प्रकार का बलिदान देने के लिए तैयार नहीं है, तब तक आप देश के लिए काम नहीं कर सकते.”
अपनी दशकों की वक़ालत के क़िस्से सुनाते हुए उन्होंने कहा, “ऐसा नहीं है कि जब मेरे पास पैसे आ गए, उसके बाद मैं खुल कर बोलने लगा. मैं 30 सालों से जजों से लड़ रहा हूं. कितने जज होंगे जिनकी बदतमीज़ी के कारण मैंने उनके सामने पेश होना बंद कर दिया था. इस सूची में भारत के एक पूर्व चीफ़ जस्टिस भी शामिल हैं. लेकिन मैं किसी का भी नाम नहीं लेना चाहूंगा.”
उन्होंने यह भी कहा, “मेरी आलोचनाओं के कारण मुझ पर किसी प्रकार का पलटवार नहीं हुआ है.”
आज ऐसा क्यों है कि बहुत कम वक़ील खुल कर कोर्ट की आलोचना करते हैं, इस सवाल पर दुष्यंत दवे ने कहा, “पहले के ज़माने में ऐसे वकील थे जो स्वतंत्रता के आंदोलन का नेतृत्व कर रहे थे. लेकिन आज कोई त्याग देने को तैयार नहीं है. सब लोग सोचते हैं, मैं आज कुछ बोलूंगा तो मेरे ऊपर न जाने क्या विपत्ति आ जाएगी.”
उनका मानना है कि आज लोगों की सोचने की क्षमता और नैतिक साहस को ख़त्म किया जा रहा है. वह कहते हैं, “ऐसी हालत हो गई है कि लोग समझते हैं कि ठीक है… दूसरा आदमी जेल जा रहा है. मुझे क्या पड़ी है.”
जजों पर राय
दुष्यंत दवे ने हाल के कई मुख्य न्यायाधीशों की आलोचना की है. हालांकि, जब अगस्त 2022 में चीफ़ जस्टिस एनवी रमन्ना रिटायर हो रहे थे तो उनकी अदालत में दुष्यंत दवे की आंखों में आँसू आ गए थे. कई लोग इस बात से हैरान थे.
दुष्यंत दवे ने बताया कि जस्टिस एनवी रमन्ना के कार्यकाल की उनकी कई आलोचनाएं हैं. उन्होंने कहा, “दिल्ली के जहाँगीपुरी में जब लोगों के घरों को बुलडोज़र से तोड़ा जा रहा था तब मैं कोर्ट में था. मैंने बिना किसी याचिका के जस्टिस रमन्ना से एक मौखिक निवेदन किया कि आप इसे रोकिए. उन्होंने तुरंत बुलडोज़र पर रोक लगा दी. यह एक इकलौता कारण था जिससे मैं उनके रिटायरमेंट पर भावुक हो गया.”
अदालतों में भ्रष्टाचार की ख़बरें
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हाल ही में दिल्ली हाई कोर्ट के पूर्व जज और इलाहाबाद हाई कोर्ट के वर्तमान जज जस्टिस यशवंत वर्मा के घर पर कथित तौर पर भारी मात्रा में कैश बरामद हुआ. उनके ख़िलाफ़ 200 से ज़्यादा सांसदों ने महाभियोग प्रस्ताव लाने का समर्थन किया है.
आम लोगों के बीच न्यायालयों में भ्रष्टाचार की चर्चा होती है. हमने दुष्यंत दवे से पूछा कि उन्होंने अपने सामने कभी भ्रष्टाचार देखा या उसके बारे में सुना है? उनका जवाब था, “मैंने बहुत सुना है. बहुत देखा है. लेकिन इसकी चर्चा हम नहीं कर सकते.”
उन्होंने इसके बारे में कोई उदाहरण देने से मना कर दिया. लेकिन कहा, “भ्रष्टाचार के कई रूप होते हैं. कभी लोग भ्रष्टाचार पैसों से करते हैं. कभी विचारों से. कभी लोभ के लिए और कभी अपने परिवार के फ़ायदे के लिए. मैंने ये सब कई उच्च न्यायालयों और सुप्रीम कोर्ट में देखा है… और एक नहीं सैकड़ों जजों को (करते हुए देखा है).”
वे इसमें जोड़ते हैं, “मैंने ख़ुद भी यह अनुभव किया है. मेरे बहुत से ऐसे केस हैं जिसमें मुझे ताज्जुब हुआ कि मैं क्यों हार गया. और कई मामलों में ताज्जुब हुआ कि जहाँ मुझे हार जाना चाहिए था, मैं जीत गया. कई बार मुवक्किल या नीचे के वकील क्या करते हैं, यह वरिष्ठ वकीलों को पता नहीं चलता.”
उन्होंने कहा, “ऐसे भी कई जज हैं जिन पर किसी तरह के प्रलोभन का असर नहीं होता है.”
उनका कहना था कि वकील और वकीलों की संस्थाएं जैसे, बार एसोसिएशन भी भ्रष्टाचार के बारे में खुल कर बात नहीं करतीं. उनका मानना है, “इससे अमीर और प्रभावशाली लोगों को फ़ायदा होता है और ग़रीब लोग पीछे छूट जाते हैं.”
आगे की ज़िंदगी कैसी होगी
बातचीत में उन्होंने बताया कि वे आगे समाज के लिए भी काम करना चाहते हैं.
जब हमने उनसे पूछा कि क्या वे कभी राजनीति में आएंगे. उनका कहना था, “मेरा जैसा स्वभाव है, मैं राजनीति में एक दिन भी टिक नहीं पाऊँगा. मुझे पहले एक बार राज्यसभा में सांसद बनने का मौक़ा मिला था और एक बार हाई कोर्ट में जज बनने का… लेकिन मैंने दोनों को ठुकरा दिया.”
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित
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