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Bihar Election 2025: बिहार के लोकप्रिय सांसद राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर गुटखा और चबाने वाले तंबाकू उत्पादों पर देशव्यापी प्रतिबंध लगाने की मांग की है. उन्होंने कहा कि गुटखा देश के गरीब, श्रमिक और वंचित वर्ग की जिंदगी को खोखला कर रहा है और इसे अब तत्काल रोका जाना जरूरी है.
गरीबों को तबाह कर रहा गुटखा
सांसद पप्पू यादव ने अपने पत्र में लिखा कि महज 2 से 10 रुपये में बिकने वाले गुटखे के छोटे-छोटे सैशे रिक्शा चालकों, दिहाड़ी मजदूरों, खेतिहर किसानों और फुटपाथ पर गुजर-बसर करने वाले लाखों परिवारों को बर्बादी और मौत की ओर धकेल रहे हैं. यह वर्ग पहले से ही गरीबी और बेरोजगारी से त्रस्त है, और गुटखे की लत उनकी मुश्किलें और बढ़ा रही है.
गंभीर स्वास्थ्य संकट
उन्होंने कहा कि गुटखा और तंबाकू में पाए जाने वाले 28 कैंसरकारी रसायन मुंह और गले के कैंसर, हृदय रोग और स्ट्रोक जैसी घातक बीमारियों का कारण बनते हैं. भारत में हर साल करीब 70,000 नए मौखिक कैंसर के मामले सामने आते हैं और 50,000 से अधिक लोगों की जान चली जाती है. पिछले 15 वर्षों में गुटखा-तंबाकू ने लगभग 57 लाख भारतीयों की जान ले ली है.
पप्पू यादव ने चिंता जताई कि गरीब लोग इलाज का खर्च नहीं उठा पाते. ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी और बड़े अस्पतालों में महंगे इलाज ने स्थिति को और भयावह बना दिया है.
गुटखा कंपनियों पर आरोप
सांसद ने डी.एस. ग्रुप (रजनीगंधा), माणिकचंद, पान बहार, गोदफ्रे फिलिप्स, जेएमजे और शिखर समूह जैसी प्रमुख गुटखा कंपनियों पर गंभीर सवाल उठाए. उन्होंने कहा कि ये कंपनियां करोड़ों गरीब भारतीयों की जान के साथ खिलवाड़ कर अपने मुनाफे को प्राथमिकता दे रही हैं.
प्रधानमंत्री से उठाई मांगें
अपने पत्र में पप्पू यादव ने प्रधानमंत्री से अपील की कि शराब और ड्रग्स की तरह गुटखा और तंबाकू उत्पादों पर भी सख्त नियंत्रण लगे और देशव्यापी प्रतिबंध लगाया जाए. इसके साथ ही उन्होंने मांग रखी कि…
- गुटखा निर्माण कंपनियों को बंद किया जाए.
- गरीब और मजदूर वर्ग के लिए निःशुल्क कैंसर जांच एवं उपचार केंद्र स्थापित किए जाएं.
- राष्ट्रव्यापी जागरूकता अभियान चलाकर समाज को गुटखे के खतरों से सचेत किया जाए.
राजनीतिक और सामाजिक संदेश
पप्पू यादव की यह पहल बिहार की सीमाओं से निकलकर राष्ट्रीय स्तर पर गुटखा और तंबाकू पर बहस को नई दिशा दे सकती है. राजनीतिक जानकारों का मानना है कि गुटखा प्रतिबंध जैसे मुद्दे पर आवाज उठाना स्वास्थ्य और सामाजिक न्याय, दोनों स्तर पर असर डाल सकता है.
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