भारतीय शेयर बाज़ार में आ रही गिरावट आम लोगों के लिए भी क्यों है चिंता की बात? – द लेंस
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पिछले कुछ दिनों से भारतीय शेयर बाज़ार की स्थिति और उससे जुड़े आर्थिक सवाल आम लोगों के बीच चर्चा का विषय बने हुए हैं.
एक ओर जहां भारतीय अर्थव्यवस्था की विकास दर, डिजिटल पेमेंट्स के क्षेत्र में उभरते हब के रूप में भारत की पहचान और वैश्विक निवेशकों की बढ़ती रुचि की चर्चा हो रही है.
वहीं दूसरी ओर आम लोग महंगाई, बढ़ती ईएमआई, नौकरियों को लेकर अनिश्चितता और शेयर बाज़ार में उथल-पुथल से परेशान हैं.
शेयर बाज़ार के उतार-चढ़ाव अक्सर सुर्खियां बटोरते हैं, लेकिन आम लोगों के लिए यह सवाल महत्वपूर्ण है कि इन आर्थिक घटनाक्रमों का उनके निजी जीवन पर क्या प्रभाव पड़ रहा है.
भारत की आर्थिक प्रगति के आम नागरिकों के लिए क्या मायने हैं? क्या शेयर बाज़ार की मौजूदा गिरावट लंबे समय तक जारी रह सकती है?
क्या भारत की आर्थिक नीतियाँ वैश्विक बाज़ारों के प्रभाव से लोगों को बचाने में सक्षम हैं?
क्या नौकरियों के अवसर बढ़ाना सरकारी नीतियों का हिस्सा है? और भारतीय अर्थव्यवस्था के सामने आने वाली प्रमुख चुनौतियाँ क्या हैं?
बीबीसी हिन्दी के साप्ताहिक कार्यक्रम, ‘द लेंस’ में कलेक्टिव न्यूज़रूम के डायरेक्टर ऑफ़ जर्नलिज़्म मुकेश शर्मा ने इन्हीं सब मुद्दों पर चर्चा की.
इन सवालों पर चर्चा के लिए योजना आयोग के पूर्व सदस्य डॉक्टर नरेंद्र जाधव, द मिंट की कंसल्टिंग एडिटर पूजा मेहरा और द एन शो के एडिटर नीरज बाजपेई शामिल हुए.
शेयर बाज़ार में गिरावट का क्या कारण है?
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भारतीय शेयर बाज़ारों में गिरावट थमने का नाम नहीं ले रही है, कई साल के बाद गिरावट का दौर इतना लंबा चला है.
कुछ महीने पहले तक बाज़ार में निवेश पर हज़ारों, लाखों के मुनाफ़े की बात करने वाले कई एक्सपर्ट के सुर अब बदलने लगे हैं.
बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज (बीएसई) का सेंसेक्स सितंबर 2024 में क़रीब 86 हज़ार के स्तर तक पहुंच गया था. अब यह 74,000 के आस-पास कारोबार कर रहा है.
भारतीय शेयर बाज़ार में हालिया गिरावट को लेकर द एन शो के एडिटर नीरज बाजपेई ने कहा, “लोगों को अमेरिका में निवेश करने में भारत की तुलना में ज़्यादा फ़ायदा मिल रहा है. यही वजह है कि वे भारतीय बाज़ारों से पैसा निकालकर विदेशी बाज़ारों में निवेश कर रहे हैं.”
उन्होंने बताया, “भारत, चीन, मलेशिया, थाईलैंड जैसे देशों से पूंजी अमेरिका की ओर बढ़ रही है. इसका कारण यह है कि अमेरिका में बिना अधिक जोखिम उठाए निवेशकों को 6-7 फ़ीसदी का रिटर्न मिल रहा है.”
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द मिंट की कंसल्टिंग एडिटर पूजा मेहरा ने शेयर बाज़ार में हालिया गिरावट पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा, “मार्केट कितनी देर तक गिरावट की स्थिति में रहेगी, यह कई बातों पर निर्भर करेगा. इनमें एक प्रमुख कारण अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की नीतियों से पैदा हुई वैश्विक अनिश्चितता भी है.”
उन्होंने कहा, “निवेशक अमेरिकी बाज़ारों को सुरक्षित मानते हैं, क्योंकि वहां जोखिम कम है और इस समय अमेरिकी अर्थव्यवस्था अच्छी स्थिति में है. इसलिए, निवेशक अपना पैसा अमेरिकी बाज़ारों की ओर ले जा रहे हैं.”
योजना आयोग के पूर्व सदस्य डॉक्टर नरेंद्र जाधव ने इस पर कहा, “भारतीय अर्थव्यवस्था की मज़बूती को देखते हुए मेरा मानना है कि यह गिरावट थोड़े समय के लिए जारी रह सकती है, लेकिन यह स्थिति लंबे समय तक नहीं बनी रहेगी.”
उन्होंने कहा, “डोनाल्ड ट्रंप हर रोज़ अलग-अलग ख़बरें लेकर आ रहे हैं. उनकी नीतियों और बयानों में स्पष्टता का अभाव है. अमेरिकी अर्थव्यवस्था मेक्सिको जैसे देशों से बड़े पैमाने पर आयात करती है. अगर इन पर टैरिफ़ लगाया जाता है, तो अमेरिकी जनता के लिए परेशानियां बढ़ेंगी और वहां महंगाई आ सकती है. हालांकि, जिस दिन इन मुद्दों पर स्पष्टता आ जाएगी, उस दिन बाज़ार में स्थिरता लौट आएगी.”
डॉक्टर जाधव के मुताबिक़, भारतीय अर्थव्यवस्था की मज़बूत बुनियाद और वैश्विक अनिश्चितता के समाधान के बाद बाज़ारों में सुधार की उम्मीद की जा सकती है.
आम निवेशकों के लिए कितनी चिंता की बात?
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शेयर बाज़ार में आई गिरावट के कारण निवेश का मूल्य घट गया है और कुछ निवेश घाटे में भी चले गए हैं. स्मॉलकैप और मिडकैप स्टॉक की लगातार बिकवाली के कारण निवेशकों में घबराहट है.
सेंसेक्स में आई गिरावट के कारण सिस्टमेटिक इन्वेस्टमेंट प्लान (एसआईपी) के माध्यम से बाज़ार में पैसा लगाने वाले म्यूचुअल फंड निवेशक चिंतित हैं.
उन्हें समझ नहीं आ रहा कि इस समय एसआईपी को रोक दें या फिर इससे अपना पूरा पैसा निकला लें.
द एन शो के एडिटर नीरज बाजपेई ने शेयर बाज़ार की मौजूदा स्थिति पर चर्चा करते हुए कहा, “मार्केट में दो तरह के लोग होते हैं – एक जो ट्रेडिंग करते हैं और दूसरे जो निवेशक होते हैं. इस समय मार्केट के हालात से ट्रेडिंग करने वाले लोग बहुत परेशान हैं, हालांकि निवेशकों के पोर्टफोलियो भी घाटे में आ गए हैं.”
उन्होंने कहा, “यह चिंता की बात ज़रूर है, लेकिन अगर आपने अच्छी कंपनियों में निवेश किया है, तो घबराने की ज़रूरत नहीं है. इसलिए, अगर आपने कोई अच्छा स्टॉक चुना है, तो डरकर उसे न बेचें.”
“चाहे आपने एसआईपी के ज़रिए निवेश किया हो या किसी अन्य तरीके़ से, घबराने की आवश्यकता नहीं है. आपको तभी चिंता करने की ज़रूरत है, जब आपने अच्छी कंपनियों में निवेश नहीं किया हो और आपके पैसे आधे हो गए हों.”
बाजपेई ने बाज़ारों के प्रकार पर कहा, “मार्केट तीन तरह के होते हैं – लार्जकैप, मिडकैप और स्मॉलकैप. जिन लोगों ने लार्जकैप में निवेश किया है, उन्हें ज़्यादा चिंता करने की ज़रूरत नहीं है. लेकिन जिन्होंने मिड और स्मॉलकैप में निवेश किया है, उन्हें सतर्क रहने की आवश्यकता है.”
उन्होंने निवेशकों को सलाह देते हुए कहा, “अगर आप स्मॉल और मिडकैप में निवेश कर रहे हैं, तो कम से कम 10 साल के लिए पैसे छोड़ने की तैयारी रखें. वहीं, लार्जकैप में निवेश करने वालों को कम से कम पांच साल तक निवेश को होल्ड करना चाहिए.”
उन्होंने वैश्विक बाज़ारों की स्थिति पर टिप्पणी करते हुए कहा, “साल 2025 तक रिटर्न बनाना बहुत मुश्किल रहने वाला है. दुनिया के सभी बाज़ार अमेरिका की ओर देखते हैं. जब तक वहां अनिश्चितता बनी रहेगी, तब तक दुनिया का कोई भी बाज़ार ठीक से नहीं चल पाएगा.”
भारत में बेरोज़गारी बढ़ने के कारण
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भारत में बेरोज़गारी एक ऐसा ज्वलंत मुद्दा है जो लगातार बढ़ता ही जा रहा है और देश की युवा पीढ़ी के लिए चिंता का सबब बना हुआ है.
हर बार चुनाव के दौरान यह मुद्दा ज़ोर-शोर से उठाया जाता है, लेकिन चुनाव ख़त्म होते ही यह ठंडे बस्ते में चला जाता है.
ऐसे में सवाल उठता है कि आख़िर इतने सालों और इतनी सरकारों के बाद भी इस गंभीर समस्या का स्थायी समाधान क्यों नहीं निकल पाया है?
द मिंट की कंसल्टिंग एडिटर पूजा मेहरा ने भारत में बढ़ती बेरोज़गारी पर चिंता जताते हुए कहा, “पिछले महीने जारी आर्थिक सर्वेक्षण में कहा गया है कि जितनी नौकरियां पैदा करने की ज़रूरत है, उतनी नौकरियां अभी नहीं बन पा रही हैं. सर्वेक्षण में यह भी बताया गया है कि इस स्थिति को सुधारने के लिए किस तरह की नीतियों की ज़रूरत है.”
उन्होंने कहा, “सर्वेक्षण में यह भी उल्लेख किया गया है कि जिस तेज़ी से महंगाई बढ़ रही है, उस हिसाब से लोगों की आमदनी नहीं बढ़ पा रही है. आने वाले समय में भी मुझे यह समस्या तब तक सुलझती हुई नहीं दिखाई देती, जब तक सभी आवश्यक नीतियों को लागू नहीं किया जाता.”
मेहरा ने राजनीतिक पहलू पर कहा, “मेरी राय में, बेरोज़गारी चुनाव में इतना बड़ा मुद्दा नहीं बन पाया है. राजनीतिक दल अन्य मुद्दों पर चुनाव जीत सकते हैं. इसलिए, हमारे देश के नेताओं पर बेरोज़गारी को लेकर उतना दबाव नहीं है.”
नीरज बाजपेई ने भारत में बढ़ती बेरोज़गारी और रोज़गार की गुणवत्ता से जुड़े मुद्दों पर कहा, “अगर हम भारत के पिछले 25-30 साल के इतिहास को देखें, तो हमारी अर्थव्यवस्था 7 फ़ीसदी से ऊपर नहीं जा पाती.”
“हाल के आंकड़ों की बात करें तो हमारी अर्थव्यवस्था 6-6.5 फ़ीसदी के आसपास ही विकास कर रही है. यह ध्यान रखना ज़रूरी है कि हमारी अर्थव्यवस्था धीमी नहीं हो रही है, बल्कि यह उसी गति से चल रही है जैसे पहले चल रही थी.”
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उन्होंने कहा, “हमारे देश में बेरोज़गारी की समस्या नहीं है, बल्कि रोज़गार की गुणवत्ता एक बड़ी चिंता का विषय है. यानी जो लोग काम कर रहे हैं, उन्हें उनके काम के हिसाब से पर्याप्त वेतन नहीं मिलता.”
बाजपेई ने घरेलू कर्ज़ के बढ़ते स्तर पर भी चिंता जताते हुए कहा, “हमारा घरेलू कर्ज़ जीडीपी के अनुपात में पहले 29-30% के आसपास था, जो अब बढ़कर 40% हो गया है. इसमें से एक तिहाई लोग असुरक्षित लोन ले रहे हैं, जैसे पर्सनल लोन टीवी, मोबाइल जैसी चीज़ें खरीदने के लिए. यह एक गंभीर चिंता का विषय है. अगर आप निजी खपत के लिए लोन ले रहे हैं, तो इसका मतलब है कि आपकी आय घट रही है.”
उन्होंने कहा, “अगर आज भी एक इंजीनियर को कैंपस प्लेसमेंट में 3.5-4 लाख रुपये का पैकेज मिल रहा है, जो 15-20 साल पहले भी मिलता था, तो यह स्पष्ट है कि समस्या यहीं है.”
तकनीकी चुनौतियों पर बात करते हुए उन्होंने कहा, “तकनीकी बदलावों के कारण कोई भी सरकार नौकरियां पैदा नहीं कर पा रही है. अमेरिका जैसे देश में भी स्वास्थ्य और वित्त क्षेत्र में बड़े पैमाने पर छंटनी की तैयारी है, क्योंकि वहां एआई के ज़रिए काम किया जा रहा है.”
उन्होंने कहा, “दुनिया भर के सामने सबसे बड़ी चुनौती यह है कि नौकरियां और रोज़गार की गुणवत्ता कैसे सुधारी जाए. मुझे नहीं लगता कि दुनिया की कोई भी सरकार इस मुद्दे को ठीक से लोगों के सामने रख पा रही है.”
नरेंद्र जाधव ने इस मुद्दे पर कहा, “भारत में रोज़गार के अवसर कम हैं और रोज़गार क्षमता उससे भी कम है. ऐसा नहीं है कि कॉलेजों से ग्रेजुएट्स नहीं निकल रहे हैं, वे बड़ी संख्या में हैं, लेकिन उनके लिए नौकरियां नहीं हैं क्योंकि वे उस काबिल नहीं हैं. रोज़गार क्षमता बढ़ाने के लिए स्किल डेवलपमेंट पर ध्यान देने की ज़रूरत है.”
उन्होंने कहा, “मेरा मानना है कि देश के स्तर पर हम यह स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं हैं कि हमारे यहां बेरोज़गारी कितनी है. खासकर पढ़े-लिखे लोगों में बेरोज़गारी का स्तर बहुत अधिक है.”
“दुनिया भर में जितनी भी अर्थव्यवस्थाएं हैं, उनमें सबसे तेज़ी से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था भारत की है. लेकिन यह तेज़ी सिर्फ़ संगठित क्षेत्र में देखने को मिली है. असंगठित क्षेत्र अभी भी कोविड के स्तर से उबर नहीं पाया है.”
उन्होंने आय और मांग के बीच असंतुलन पर भी चिंता जताते हुए कहा, “जिनके पास नौकरियां हैं, उनकी सैलरी भी जितनी बढ़नी चाहिए, उतनी नहीं बढ़ रही है. इसकी वजह से कुल खपत सीमित है. इसका मतलब है कि अगर मांग नहीं बढ़ रही है, तो रोज़गार कैसे पैदा होंगे?”
विदेशी निवेशकों के मुद्दे पर उन्होंने कहा, “अगर हम निवेशकों की बात करें, तो जो लोग अमेरिकी बाज़ार में पैसा लगाते हैं, उन्हें टैक्स सुधार के बाद भी 7-8% का रिटर्न मिल रहा है. अगर भारत में उन्हें सिर्फ 5% रिटर्न मिल रहा है, तो वे भारत के बाज़ारों में निवेश क्यों करेंगे? विदेशी निवेशकों पर भारत ने जो कैपिटल गेन टैक्स लगाया है, उसे तुरंत हटाने की ज़रूरत है.”
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित.