Constitution Murder – Day : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 25 जून के दिन को काला दिन कहा है। 25 जून को काला दिन कहने के पीछे बहुत ही खास कारण है इतना ही नहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आह्वान पर भारतीय जनता पार्टी 25 जून के दिन को संविधान हत्या दिवस के रूप में मना रही है । संविधान हत्या दिवस मनाने के पीछे भी बहुत बड़ा कारण बताया गया है । सवाल यह भी उठता है कि जब भारत का संविधान अमर है तो Constitution Murder – Day का क्या औचित्य है यहां हम संविधान हत्या दिवस का व्यापक विश्लेषण कर रहे हैं ।
प्रधानमंत्री बता रहे हैं 25 जून को संविधान हत्या दिवस
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह तथा भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा समेत अनेक नेताओं ने 25 जून को संविधान हत्या दिवस कहा है। 25 जून को Constitution Murder – Day कहने के पीछे बहुत बड़ा कारण बताया गया है । प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने सोशल मीडिया पोस्ट के द्वारा 25 जून के दिन को संविधान हत्या दिवस बताया है । प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी पोस्ट में लिखा है कि आज भारत के लोकतांत्रिक इतिहास के सबसे काले अध्यायों में से एक, आपातकाल लागू होने के पचास साल पूरे हो गए हैं ।
भारत के लोग इस दिन को ‘संविधान हत्या दिवस’ के रूप में मनाते हैं. इस दिन, भारतीय संविधान के मूल्यों को दरकिनार कर दिया गया, मौलिक अधिकारों को निलंबित कर दिया गया, प्रेस की आज़ादी को ख़त्म कर दिया गया और कई राजनीतिक नेताओं, सामाजिक कार्यकर्ताओं, छात्रों और आम नागरिकों को जेल में डाल दिया गया. ऐसा लग रहा था जैसे उस वक्त सत्ता में बैठी कांग्रेस सरकार ने लोकतंत्र को गिरफ़्तार कर लिया हो ।
उन्होंने आगे कहा, “कोई भी भारतीय कभी नहीं भूल पाएगा कि किस तरह से हमारे संविधान की भावना का हनन किया गया, संसद की आवाज़ को दबाया गया और अदालतों को नियंत्रित करने की कोशिश की गई. 42वां संशोधन उनकी हरकतों का एक प्रमुख उदाहरण है. ग़रीबों, हाशिए पर पड़े लोगों और दलितों को ख़ास तौर पर निशाना बनाया गया, यहां तक कि उनकी गरिमा का अपमान भी किया गया ।
प्रधानमंत्री ने विस्तार से बताया संविधान हत्या दिवस के विषय में
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी पोस्ट में संविधान हत्या दिवस के विषय में विस्तार से बताया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि हम आपातकाल के ख़िलाफ़ लड़ाई में डटे रहने वाले हर व्यक्ति को सलाम करते हैं । ये पूरे भारत से, सभी क्षेत्रों से, विभिन्न विचारधाराओं से आए लोग थे, जिन्होंने एक ही मकसद से एक-दूसरे के साथ मिलकर काम किया. भारत के लोकतांत्रिक ढांचे की रक्षा करना और उन आदर्शों को बनाए रखना, जिनके लिए हमारे स्वतंत्रता सेनानियों ने अपना जीवन समर्पित किया. यह उनका सामूहिक संघर्ष था, जिसने सुनिश्चित किया कि तत्कालीन कांग्रेस सरकार को लोकतंत्र को बहाल करना पड़ा और नए चुनाव कराने पड़े, जिसमें वे बुरी तरह हार गए।
प्रधानमंत्री ने कहा, “हम अपने संविधान में सिद्धांतों को मजबूत करने और एक विकसित भारत के अपने सपने को साकार करने के लिए मिलकर काम करने की अपनी प्रतिबद्धता को भी दोहराते हैं. हम प्रगति की नई ऊंचाइयों को छूएं और गरीबों और दलितों के सपनों को पूरा करें ।
प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि जब आपातकाल लगाया गया था, तब मैं आरएसएस का युवा प्रचारक था. आपातकाल विरोधी आंदोलन मेरे लिए सीखने का एक अनुभव था, इसने हमारे लोकतांत्रिक ढांचे को बचाए रखने की अहमियत को फिर से पुष्ट किया । इसके साथ ही, मुझे राजनीतिक स्पेक्ट्रम के लोगों से बहुत कुछ सीखने को मिला. मुझे खुशी है कि ब्लूक्राफ्ट डिजिटल फाउंडेशन ने उन अनुभवों में से कुछ को एक किताब के रूप में संकलित किया है, जिसकी प्रस्तावना एच.डी. देवेगौड़ा जी ने लिखी है, जो खुद आपातकाल विरोधी आंदोलन के एक दिग्गज थे ।
संविधान हत्या दिवस के पीछे की सोच का सच
एक जीवित संविधान के लिए संविधान हत्या दिवस जैसे शब्द का प्रयोग बहुत अधिक कड़वा प्रतीत होता है । दरअसल 25 जून 1975 को भारत में इमरजेंसी लगाने की घोषणा की गई थी। 25 जून 1975 को पूरे 50 साल हो गए हैं ।भारत में इमरजेंसी यानी आपातकाल घोर संवैधानिक कार्य था। भारत में इमरजेंसी (आपातकाल) लगाने की 50वीं जयंती के मौके पर भाजपा ने देशभर में संविधान हत्या दिवस मनाने का फैसला किया है । इस दिन को संविधान हत्या दिवस के रूप में मनाने का कठोर फैसला समझने के लिए इमरजेंसी का पूरा इतिहास जान लेना बहुत जरूरी है।
संविधान हत्या दिवस बनाम काला चैप्टर
संविधान हत्या दिवस के मौके पर प्रसिद्ध राजनेता तथा पूर्व सांसद के सी त्यागी ने इमरजेंसी के पूरे इतिहास पर विस्तार से लेख लिखा है। एक ‘काले अध्याय’ ( चैप्टर ) की स्मृति शीर्षक से लिखे गए लेख में के सी त्यागी ने कहा है कि 12 जून, 1975 के दिन तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के पारिवारिक मित्र डीपी धर के निधन का दुखद समाचार उनके लिए भावनात्मक झटके जैसा था। प्रातः से ही गुजरात विधानसभा चुनाव के नतीजे आने शुरू हुए और मतगणना के प्रारंभिक दौर से ही ‘जनता मोर्चा’ नै कांग्रेस के उम्मीदवारों पर बढ़त बनानी शुरू कर दी। मोर्चे का गठन जेपी, मोरारजी भाई के संयुक्त प्रयासों का नतीजा था, जब चिमनभाई पटेल की भ्रष्ट सरकार के विरुद्ध छात्रों के आंदोलन ने उग्र रूप धारण कर लिया।
जब सरकार के विरुद्ध एकजुट हुआ विपक्ष
केसी त्यागी ने कहा कि बाद में मोरारजी भाई द्वारा विधानसभा भंग करने हेतु आमरण अनशन की घोषणा ने इंदिरा सरकार को विधानसभा भंग करने के लिए मजबूर कर दिया। चुनाव परिणाम में कांग्रेस पार्टी पराजित हुई और विपक्षी गठबंधन गांधीवादी नेता बाबू भाई पटेल के नेतृत्व में सरकार बनाने में सफल रहा। गुजरात के चुनावी नतीजों ने जहां एक ओर बिहार के छात्र-युवा आंदोलन को गति प्रदान की, वहीं दूसरी ओर समूचा विपक्ष सरकार के विरुद्ध होने लगा।
लेकिन सबसे अधिक चौंकाने वाला फैसला इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस जगमोहन लाल सिन्हा द्वारा सुनाया गया, जब उन्होंने समाजवादी नेता राजनारायण की एक याचिका पर अपना निर्णय दिया कि इंदिरा गांधी ने रायबरेली चुनाव (1971) में चुनाव जीतने के लिए भ्रष्ट तरीके अख्तियार किए और उनका चुनाव रद्द कर छह वर्ष के लिए अयोग्य घोषित किया। इंदिरा गांधी के आवास के बाहर भीड़ जुटनी शुरू हुई ।
यही वह दिन है, जब लोकतंत्र पटरी से उतरा हुआ खने लगा था। वफादार मंत्री, पार्टी पदाधिकारी अपने चहेतों के साथ आस्था प्रकट पहुंचे। ब्याकुल भीड़ कभी-कभी जस्टिस जगमोहन लाल सिन्हा मुर्दाबाद के भी नारे लगाती नजर आ रही थी। इंदिरा गांधी के वकील बीएन खरे की इस दलील को स्वीकार कर लिया गया कि प्रधानमंत्री के तत्काल इस्तीफा देने से पूरे देश में प्रशासन अस्त-व्यस्त हो जाएगा स्तीफा देना जस्टिस सिन्हा ने फैसले पर 20 दिन तक रोक लगाने का निर्णय लिया।
लगा था इंदिरा इज इंडिया का नारा
इसी बीच संजय गांधी, आरके धवन और हरियाणा के मुख्यमंत्री बंसीलाल, तीनों मिलकर भावी योजना के क्रियान्वयन में लग गए। इस मुहिम को कांग्रेस के अध्यक्ष देवकांत बरुआ ने भी बल दिया, जब ‘इंदिरा इज इंडिया’ का भौंडा नारा लगाया। 13 जून को दिल्ली में उपस्थित विपक्षी नेताओं ने राष्ट्रपति भवन के पास धरना देकर इंदिरा गांधी के इस्तीफे की मांग कर डाली। कांग्रेस की 20 जून की रैली के समकक्ष 22 जून को रामलीला मैदान में भव्य रैली के आयोजन की घोषणा की गई। रैली की तैयारी चल रही थी कि जेपी की कोलकाता से दिल्ली आने वाली सभी फ्लाइट रद्द कर दी गई।
सभी दलों ने पुनः बैठक कर सभा के लिए 25 जून का दिन चुना। इतिहास अपने आप को कैसे दोहराता है, इसकी एक बानगी उस दिन नारों से प्रफुल्लित हो रही थी, जेपी इसके नायक थे। युवा कवि रामधारी सिंह दिनकर द्वारा उनके सम्मान में तैयार कर गाया गीत इतिहास बन गया ‘जयप्रकाश है नाम समय की करवट का, अंगड़ाई का भूचाल, बवंडर के ख्वाबों से भरी हुई तरुणाई का।’ रामलीला मैदान के बाहर तक लंबी कतारें लगी थीं, मानो समूची दिल्ली जेपी के सिंहनाद को सुनने को बेचैन थी।
मंच का संचालन जनसंघ के तेज-तर्रार नेता मदनलाल खुराना कर रहे थे। मुझे भी सत्यपाल मलिक के साथ-साथ मंच पर बैठने का सौभाग्य मिला, लोकदल प्रतिनिधि के रूप में हम आमंत्रित थे। दो दर्जन कांग्रेसी सांसद इस भोज में उपस्थित रहे, लेकिन इससे भी अधिक सांसदों ने अपना समर्थन इसके लिए दोहराया।
रैली में उपस्थित सभी विपक्षी नेताओं ने एक स्वर से इंदिरा गांधी के त्यागपत्र की मांग की और उन पर तानाशाही पूर्वक व्यवहार करने का आरोप लगाया। जेपी ने कहा, वह नैतिकता खोकर प्रधानमंत्री बनी हैं, लिहाजा सभी से आग्रह है कि अवैध आदेशों का पालन न करें। इसमें सरकारी कर्मचारी भी शामिल हैं, लेकिन कांग्रेस की संजय ब्रिगेड इसे सेना और पुलिस से जेपी की अपील को मुद्दा बनाकर प्रचारित करती रही।
कठोर यातनाएं दी गई सभी नेताओं को
कैसी त्यागी ने Constitution Murder – Day की सार्थक बताते हुए आगे लिखा है कि सभा समाप्त होने के बाद ही आपातकाल घोषित करने के लिए राष्ट्रपति से अनुमति ली गई और सभी दलों के शीर्षस्थ नेताओं समेत लगभग एक लाख 75 हजार कार्यकर्ताओं पर झूठे मुकदमे लगाकर जेल में डाल दिया गया। सभी मूलभूत अधिकार समाप्त किए जा चुके थे। समाचार पत्रों पर सेंसरशिप लगा दी गई।
अदालत को भी गुप्त निर्देश दिए गए कि बंदियों की जमानत याचिकाओं को लटकाया जाए। उनकी परिवार वालों से मुलाकात भी न कराई जाए। मानसिक एवं शारीरिक यातनाएं भी दी जाने लगीं। कई जेलों से बंदियो के मृत्यु समाचार भी मिले। यह सिलसिला लगभग 19 महीने चला। आखिरकार विश्व जनमत के विरोध एवं बांग्लादेश में रोख मुजीब की हत्या की वजह से आपातकाल समाप्त केरने की घोषणा कर चुनाव कराने का निर्णय लिया गया और चुनाव में इंदिरा गांधी को पराजित होना पड़ा। इस प्रकार आप समझ गए होंगे की 25 जून का दिन संविधान हत्या दिवस कैसे बन गया ।
Constitution Murder – Day
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