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दिल्ली हाई कोर्ट ने दिल्ली दंगों की साज़िश के मामले में आठ अभियुक्तों की ज़मानत याचिकाओं पर अपना फ़ैसला सुरक्षित रख लिया है.
ज़मानत याचिका दायर करने वालों में शरजील इमाम, उमर ख़ालिद, गुलफिशा फातिमा, खालिद सैफी, सलीम खान, शिफा उर-रहमान, अतहर खान और मीरान हैदर शामिल हैं.
दिल्ली पुलिस का आरोप है कि इन लोगों ने सीएए (नागरिकता संशोधन अधिनियम) के ख़िलाफ़ प्रदर्शन के दौरान अशांति फैलाने की साजिश रची थी, जिसके कारण फरवरी 2020 में राष्ट्रीय राजधानी में दंगे हुए.
अभियुक्तों का कहना है कि वे कई सालों से जेल में हैं और अभी तक मुकदमा शुरू नहीं हुआ है. मुकदमे में हो रही देरी के कारण उन्हें रिहा किया जाना चाहिए.
उन्होंने ये बात भी उठाई कि इस मामले में देवांगना कलिता और नताशा नरवाल जैसे अन्य अभियुक्तों को ज़मानत मिल चुकी है.
आज दिल्ली पुलिस की ओर से बहस पूरी करते हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अभियु्क्तों की ज़मानत याचिकाओं का विरोध किया. उन्होंने कहा कि दिल्ली दंगे “मात्र दंगा नहीं, बल्कि भारत की संप्रभुता पर एक हमला था.”
तुषार मेहता ने कहा कि इसका मकसद “वैश्विक स्तर पर भारत को बदनाम करना था” क्योंकि इसकी तारीख़ तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के भारत दौरे के दौरान चुनी गई थी.
उन्होंने कहा कि “लंबे समय से जेल में रहने की बात पर विचार किया जा सकता है, लेकिन तब नहीं जब आप देश की राजधानी में हिंसा फैलाना चाहते हों.”
शरजील इमाम के भाषणों और उमर ख़ालिद और गुलफिशा फातिमा के ख़िलाफ़ गवाहों के बयानों पर ज़ोर देते हुए तुषार मेहता ने कहा कि हिंसा भड़काने की एक सुनियोजित साजिश थी.
उन्होंने कहा, “अब कहा जा रहा है कि बुद्धिजीवी जेल में हैं. मैं दिखाना चाहता हूँ कि ये ‘बुद्धिजीवी’ क्या कर रहे थे.”
इस मामले में 20 लोगों को अभियुक्त बनाया गया है. पुलिस के मुताबिक़, इस मामले में 6 अभियुक्तों को ज़मानत मिल गई है, 12 अभी जेल में हैं और 2 अभियुक्त फ़रार हैं.
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