पिता-पुत्र की हत्या का 40 साल पुराना मामला जिसमें सज्जन कुमार को सुनाई गई उम्र क़ैद की सज़ा
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साल 1984 में दिल्ली में दो सिखों की हत्या के एक मामले में पूर्व कांग्रेस सांसद सज्जन कुमार को कोर्ट ने दोषी मानते हुए उम्र क़ैद की सज़ा सुनाई है.
राउज़ एवेन्यू कोर्ट में विशेष न्यायाधीश कावेरी बावेजा की अदालत ने फ़ैसला सुनाते हुए लिखा है, “इस घटना के समय यानी 1 नवम्बर 1984 को, गवाह संख्या 11 की उम्र करीब़ 14 साल थी और वो 10वीं क्लास की छात्रा थी.”
यह गवाह जसवंत सिंह की बेटी ही थी.
कोर्ट ने माना है कि इस उम्र की बच्ची ऐसी (हत्या) घटना को कभी भूल नहीं सकती और इसलिए अदालत ने इस गवाही को स्वीकार किया.
कोर्ट ने सज्जन कुमार को दंगा और हत्या समेत कई अन्य धाराओं के तहत दोषी पाया है.
फिलहाल सज्जन कुमार सिख विरोधी दंगे के एक अन्य मामले में तिहाड़ जेल में उम्र क़ैद की सज़ा काट रहे हैं.
तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद दिल्ली में सिखों के ख़िलाफ़ भड़के दंगों में हज़ारों सिख मारे गए थे. इसमें जसवंत सिंह और उनके बेटे तरुणदीप सिंह भी थे.
सज्जन कुमार पर इस हिंसा के दौरान भीड़ का नेतृत्व करने का आरोप लगाया गया था. यह इलाक़ा दिल्ली के सरस्वती विहार पुलिस थाने की हद में आता है.
दो सिखों की हत्या का क्या था मामला?
इस मामले में पीड़ित पक्ष के वकील एचएस फुल्का बताते हैं कि 1 नवंबर 1984 को जसवंत सिंह और उनके बेटे तरुणदीप सिंह की पश्चिमी दिल्ली में हत्या कर दी गई थी.
एचएस फुल्का ने कहा कि हत्या से पहले भीड़ ने दोनों को पीटा भी था.
फुल्का कहते हैं, ”जसवंत सिंह की पत्नी, बेटी और भतीजियों को भी इस भीड़ ने बेरहमी से पीटा. इस भीड़ का नेतृत्व सज्जन कुमार कर रहे थे.”
इस मामले के रिकॉर्ड में जसवंत सिंह की बेटी ख़ुद पीड़ित और एक गवाह भी हैं. उन्होंने आरोप लगाया था कि शाम करीब 4 से 4.30 बजे के बीच भीड़ आई और उनके घर पर आगे और पीछे से हमला कर दिया.
उन्होंने अपनी गवाही में यह भी बताया कि घर के बाहर हजारों लोग ईंट, लाठियां और लोहे की छड़ें लिए हुए थे और भीड़ ने उनकी पिटाई शुरू कर दी.
मृतक की पत्नी ने न्यायमूर्ति जेडी जैन और न्यायमूर्ति डीके अग्रवाल की कमेटी के सामने 6 नवंबर 1991 को एक बयान दर्ज़ कराया था कि उन्होंने घटना के बाद एक पत्रिका में सज्जन कुमार की तस्वीर देखकर उनकी पहचान की थी, जो उस भीड़ को उकसा रहे थे.
इंसाफ़ के लिए लंबा इंतज़ार
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एचएस फुल्का का कहना है कि जसवंत सिंह की पत्नी ने साल 1985 में हलफ़नामे में स्पष्ट लिखा था कि सज्जन कुमार भीड़ का नेतृत्व कर रहे थे, लेकिन उनके ख़िलाफ़ कोई मामला दर्ज़ नहीं किया गया.
एचएस फुल्का बताते हैं कि इसके बाद उन्होंने उपराज्यपाल को पत्र लिखा. न्यायमूर्ति जैन और अग्रवाल समिति ने मामला दर्ज करने की सिफ़ारिश की, उसके बाद साल 1991 में मामला दर्ज़ किया गया.
मामला दर्ज होने के बाद परिवार के बयान भी दर्ज किए गए लेकिन उसके बाद इस मामले में कोई एक्शन नहीं लिया गया.
फुल्का बताते हैं, “जब साल 2014 में एनडीए सरकार सत्ता में आई तो हमने ऐसे मामलों में दोबारा जांच करने की मांग की, जिन्हें पुलिस ने बंद कर दिया था और इन मामलों को अदालत में पेश भी नहीं किया गया था.”
केंद्र सरकार ने इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के रिटायर जस्टिस जीपी माथुर की अध्यक्षता में एक समिति गठित की.
एचएस फुल्का बताते हैं, “इस समिति ने रिपोर्ट दी कि सिख विरोधी दंगों से जुड़े कई मामले ग़लत तरीके से बंद कर दिए गए थे, उनके सबूत मौजूद हैं और उनकी दोबारा जांच होनी चाहिए.”
इसके बाद साल 2015 में सरकार ने एसआईटी गठित की. इस एसआईटी ने सभी मामलों को फिर से खोल दिया.
राउज एवेन्यू कोर्ट में ये मामला 5 मई 2021 को शुरू हुआ था और 12 फरवरी 2025 को कोर्ट ने गवाहों के बयान के आधार पर सज्जन कुमार को दोषी करार दे दिया था.
गवाहों की पहचान रखी गई गुप्त
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इस मामले के दौरान पीड़ित गवाहों ने कोर्ट से कहा था कि उनकी जान को भी ख़तरा है. मृतक जसवंत सिंह की पत्नी, बेटी और भतीजी इस मामले में गवाह हैं.
वकील एचएस फुल्का बताते हैं, “परिवार बहुत डरा और घबराया हुआ था.” उन्होंने पहले कहा कि वे सामने नहीं आना चाहते. इसके बाद कोर्ट ने स्पष्ट आदेश दिया कि उनकी पहचान गुप्त रखी जाएगी. इसके बाद ये परिवार अपना बयान दर्ज कराने सामने आया.”
सज्जन कुमार ने इस फैसले में गवाहों के दावों को झूठा और राजनीति से प्रेरित बताया है. उन्होंने क्षेत्र में किसी हिंसा या दंगा फैलाने वाली भीड़ का हिस्सा होने से भी इनकार कर दिया.
सज्जन कुमार ने अदालत में ख़ुद को निर्दोष बताया था और किसी भी अपराध करने से इनकार किया था.
सिख विरोधी हिंसा
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31 अक्तूबर 1984 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की उनके निजी सुरक्षा गार्डों ने हत्या कर दी थी. ये गार्ड सिख थे और घटना के बाद दिल्ली दिल्ली समेत कई इलाक़ों में सिखों के ख़िलाफ़ दंगे भड़क गए.
इन दंगों की जांच के लिए सरकार ने ‘नानावटी आयोग’ का गठन किया था. आयोग ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि इस नरसंहार में 2733 सिख मारे गए. हालांकि इन दंगों में मारे गए लोगों से जुड़े सरकारी आंकड़े और सिख संगठनों के दावों में काफ़ी अंतर है.
सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील एचएस फुल्का लंबे समय से साल 1984 के सिख विरोधी दंगों के पीड़ितों का केस लड़ रहे हैं.
वो बताते हैं कि, “अधिकांश मामले अब ख़त्म हो चुके हैं. सज्जन कुमार के ख़िलाफ़ एक और मामला लंबित है. वहीं जगदीश टाइटलर के ख़िलाफ़ तीन सिखों की हत्या का मामला लंबित है. जबकि तीन अन्य मामले ट्रायल कोर्ट में लंबित हैं.”
जगदीश टाइटलर भी कांग्रेस के नेता रहे हैं और उनपर भी सिख विरोधी दंगे में शामिल होने के आरोप लगे हैं. सिख विरोधी दंगों से जुड़ी कुछ अपील दिल्ली हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में भी लंबित हैं.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित