Noida News : नोएडा तथा ग्रेटर नोएडा में रहने वाले खास नागरिकों ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी (PM Modi) से एक बहुत बड़ी मांग की है। नोएडा तथा ग्रेटर नोएडा के इन खास नागरिकों ने नोएडा (गौतमबुद्धनगर) के जिलाधिकारी मनीष वर्मा (DM Manish Varma) के माध्यम से अपनी मांग को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी तक पहुंचाया है। नोएडा के DM को प्रधानमंत्री के नाम संबोधित एक ज्ञापन देकर नोएडा तथा ग्रेटर नोएडा के इन खास नागरिकों ने अपनी मांग रखी है।
सरकारी विभागों में तैनात रहने वाले नागरिकों ने की है मांग
आपको बता दें कि, नोएडा तथा ग्रेटर नोएडा में बड़ी संख्या में रिटायर सरकारी अधिकारी तथा कर्मचारी रहते हैं। नोएडा तथा ग्रेटर नोएडा में रहने वाले रिटायर सरकारी अधिकारियों तथा कर्मचारियों ने अपनी एक संस्था बना रखी है। नोएडा तथा ग्रेटर नोएडा में रिटायर सरकारी कर्मचारियों तथा अधिकारियों की संस्था का नाम जीबी नगर पेंशनर्स वैलफेयर एसोसिएशन है। इस एसोसिएशन के पदाधिकारियों ने नोएडा के DM को एक ज्ञापन सौंपा है। इस ज्ञापन में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के सामने पेंशनर्स की महत्वपूर्ण मांग उठाई गई है।
क्या कहा गया है ज्ञापन में?
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नाम संबोधित ज्ञापन में कहा गया है कि, केन्द्रीय सिविल सेवा (पेन्शन) नियमों और भारत की संचित निधि से पेंशन देनदारियों पर व्यय के सिद्धान्तों के वैधकरण से संबंधित विधेयक मा0 संसद से पारित हो जाने के फलस्वरूप केन्द्र सरकार को पूर्व पेंशनरों और वर्तमान पेंशनरों में विभेद करने का अधिकार भी प्राप्त हो गया है। इस प्रकार केन्द्र सरकार के द्वारा पूर्व पेंशनरों एवं वर्तमान पेंशनरों में भेद करने के अधिकार प्राप्त करने से न केवल माननीय उच्चतम न्यायालय के विभिन्न निर्णयों का उल्लंघन होता है वरन दिनांक 01.01.2016 के पहले व इसके पश्चात के पेंशनरों के मध्य 7वें वेतन आयोग द्वारा प्रदत्त समानता भी समाप्त होने का जोखिम उत्पन्न हो गया है। हालांकि केन्द्र सरकार द्वारा स्पष्ट भी किया गया है कि यह कार्यवाही कतिपय मुकदमों से उत्पन्न स्थिति के कारण करनी पड़ी है। यदि ऐसा था तो भी उक्त बिल में इस आशय का उल्लेख किया जा सकता था कि यह एक सीमित उद्देश्य के लिए है एवं इसका कोई प्रभाव आगामी केन्द्रीय वेतन आयोग पर नहीं पडेगा ।
आदरणीय महोदय देश की सामाजिक व्यवस्था में देश के प्रत्येक नागरिक को न्याय एवं सुरक्षा प्रदान करना भी प्रत्येक कल्याणकारी शासन व्यवस्था का मुख्य उद्देश्य होता है। इस न्याय को प्रदान किए जाने हेतु न्यायालयों के द्वारा दिये गये निर्णय को सामान्य जन सहित प्रत्येक क्षेत्र के लोगों द्वारा स्वीकार किए जाने की अपेक्षा की जाती है। इस कम में महोदय यह भी अवगत कराना है कि डी.एस. नाकरा बनाम यूनियन ऑफ इण्डिया से संबंधित सिविल रिट पिटीशन संख्या-5939.41/1980 में मा0 उच्चतम न्यायालय के 5 जजों की संवैधानिक पीठ द्वारा दिये गये निर्णय में अन्य के साथ निम्नलिखित संवीक्षा भी की गई है।
(क) पेंशन उन लोगों के लिये सामाजिक न्याय प्रदान करने हेतु एक सामाजिक उपाय है जिन्होंने अपने जीवन की सर्वोत्तम अवधि अपनी नियोक्ता के लिये इस आश्वासन के दृष्टिगत कठिन परिश्रम किया कि बुढापे में उन्हें समाज में बेसहारा न छोडा जायेगा।
(ख) पेशन योजना इस लक्ष्य के साथ आगे बढनी चाहिये जिससे स्वतंत्र एवं स्वाभिमान से उसी स्तर का जीवन व्यतीत करे वह सेवा निवृत्त से पूर्व व्यतीत कर रहा था।
(ग) क्या कोई बलपूर्वक यह कह सकता है कि सशोधित पेंशन स्कीम केवल उन्हीं लोगों के लिये काफी होगी जो एक निर्धारित तिथि के बाद सेवानिवृत्त होगें, लेकिन वे लोग जो इससे पूर्व सेवानिवृत्त हुये हैं। मूल्य वृद्धि एवं रूपये के गिरते हुये मूल्य का कष्ट नहीं सहते।
मा. उच्चतम न्यायालय के उपरोक्त निर्णय के आधार पर ही पूर्व पेंशनरों और वर्तमान पेंशनरों को एक ही क्लास के रूप में मानते हुए उनके मध्य समानता प्राप्त है यही नहीं सप्तम वेतन आयोग द्वारा भी पूर्व पेशनरों एवं वर्तमान पेंशनरों में समानता प्रदान करते हुए वेतन/पेशन के ढाचे की संरचना की गई है। इस आधार पर दिनांक 01.01.06 के पूर्व एवं उसके पश्चात के पेंशनरो को अभी तक समानता प्राप्त है।
उल्लेखनीय है कि मा. न्यायालयों में पूर्व एवं वर्तमान पेंशनरों को न्याय प्रदान करने में कोई त्रुटि परिलक्षित होने की स्थिति में न्यायालय में ही इस हेतु संशोधित न्याय प्राप्त करने की प्रक्रिया की जानी चाहिये, परन्तु स्थापित न्याय को नकारते हुये इसके लिए संसद के बहुमत का उपयोग करना तो एक स्वस्थ परम्परा नहीं कही जा सकती। एक सामान्य नागरिक के लिए तो संसद एक कल्याणकारी कानून बनाने के लिए होती है न कि एक स्थापित कानून के द्वारा प्रदान किए गए न्याय को नकारने हेतु। इस प्रकार की परम्परा शुरु करने से तो हर आगामी सरकारें पिछले बनाए गए कल्याणकारी कानून को अपने पक्ष में करने हेतु संसद में बहुमत का सहारा ले सकेगी भले ही की गयी कार्यवाही न्याय संगत न हो।
उपर्युक्त के साथ ही यह भी उल्लेखनीय है कि केन्द्र सरकार को केन्द्रीय सिविल (पेंशन) नियमावली 1972 में भी तदनुसार संशोधन मान लिया गया है। इस संबंध में प्रस्तुत करना है कि वर्ष 1972 में पेंशन को एक सम्पत्ति मानते हुये यह संविधान के मूल अधिकार में आता था। संविधान के 44वें संशोधन के द्वारा सम्पत्ति के मूल अधिकार को संविधान के अनुच्छेद 300ए के अन्तर्गत न्यायिक अधिकार में शामिल किया गया है।
ज्ञातव्य है कि पूर्व से विद्यमान असमानता को समाप्त करने की सातवें वेतन आयोग की संस्तुति वर्ष 2016 में आपके नेतृत्व वाली भारत सरकार द्वारा स्वीकार की जा चुकी है, इसलिये अब उसमें विभेद करने का अधिकार प्राप्त करने का प्रयास करना नैतिक दृष्टि से उचित नहीं है। अत: अखिल भारतीय राज्य पेंशनर्स फेडरेशन के आहवान पर हमारा सादर अनुरोध है कि कृपया मामले में पुर्नविचार कराते हुये ऐसी व्यवस्था कराने का कष्ट करें जिससे (पेशनर्स) पूर्व प्रदत्त सुविधाओं से वंचित न हो सके। Noida News
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