दुनिया जहान: क्या हमें अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायालय की ज़रूरत है?
इमेज स्रोत, Getty Photographs
सितंबर 2018 में संयुक्त राष्ट्र महासभा को संबोधित करते हुए अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कहा था कि अमेरिका अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायालय को कोई सहायता नहीं देगा.
उन्होंने कहा था कि अमेरिका के संदर्भ में अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायालय का न तो कोई अधिकार क्षेत्र है, न कोई कानूनी वैधता, और न ही कोई अधिकार. सात साल बाद, दोबारा अमेरिका का राष्ट्रपति बनने के कुछ हफ्ते बाद ही डोनाल्ड ट्रंप ने अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायालय से संबंधित एक अध्यादेश पर हस्ताक्षर कर दिए.
इसके तहत अमेरिका ने अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायालय के वरिष्ठ अभियोजकों को अमेरिकी वीज़ा देने पर प्रतिबंध लगा दिया. इस आदेश को लागू करने के लिए संसद की मंज़ूरी की आवश्यकता नहीं है. अमेरिका पहले भी अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायालय को निशाना बना चुका है, लेकिन अब इटली और अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायालय के बीच भी तनाव बढ़ गया है.
हालांकि, इटली उन देशों में शामिल है जिन्होंने अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायालय के कार्यों में सहयोग करने संबंधी संधि पर हस्ताक्षर किए हैं. इस न्यायालय की अन्य मामलों में भी आलोचना होती रही है.
बीबीसी हिंदी के व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ने के लिए यहाँ क्लिक करें
अनूठा न्यायालय
तो इस हफ़्ते दुनिया जहान में हम यह जानने की कोशिश करेंगे कि क्या हमें अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायालय की ज़रूरत है?
जर्मनी स्थित इंटरनेशनल न्यूरैनबर्ग प्रिंसिपल्स एकेडमी की उपनिदेशक डॉक्टर विविएन डीट्रिच बताती हैं कि अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायालय पहला स्थायी न्यायालय है, जहां उन लोगों के ख़िलाफ़ मुकदमा चलाया जाता है, जिन पर जनसंहार, युद्ध अपराध, आक्रमण करने या मानवता के ख़िलाफ़ अपराध जैसे गंभीर आरोप लगे हों. यानी ऐसे अपराध जो अंतरराष्ट्रीय समुदाय के लिए गंभीर चिंता का विषय हैं.
“इस न्यायालय की खास बात यह है कि पहली बार पीड़ित लोग अदालत की कार्यवाही में शामिल हो सकते हैं और न्याय की मांग कर सकते हैं.”
अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायालय का मुख्यालय नीदरलैंड के दी हेग में स्थित है. 1998 में संयुक्त राष्ट्र के सम्मेलन में एक अंतरराष्ट्रीय संधि रोम स्टैट्यूट के तहत इसका गठन किया गया था. इस न्यायालय ने 2002 से काम करना शुरू किया. डॉक्टर विविएन डीट्रिच बताती हैं कि अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायालय संयुक्त राष्ट्र का हिस्सा नहीं है, बल्कि एक स्वतंत्र न्यायालय है.
इस वजह से यह संयुक्त राष्ट्र द्वारा रवांडा और पूर्व यूगोस्लाविया में हुए युद्ध अपराधों और गंभीर अपराधों की जांच व मुकदमे के लिए बनाए गए ट्राइब्यूनल या न्यायाधिकरणों से अलग है, क्योंकि ये ट्राइब्यूनल विशेष देशों के मामलों के लिए बनाए गए थे. अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायालय के गठन से पहले विभिन्न देशों में युद्ध अपराध या मानवता के ख़िलाफ़ अपराधों के मुकदमों के लिए अलग-अलग ट्राइब्यूनल गठित किए जाते थे.
इसी तरह नाजी अधिकारियों पर मुकदमा चलाने के लिए 1945 में न्यूरैंबर्ग में ट्राइब्यूनल बनाया गया था और एक साल बाद जापानी सैनिक अधिकारियों व राजनेताओं पर मानवता के ख़िलाफ़ अपराधों के लिए मुकदमा चलाने के लिए टोक्यो युद्ध अपराध ट्राइब्यूनल गठित किया गया था.
जिन देशों ने रोम स्टैट्यूट की शर्तों को स्वीकार किया, उन्हें स्टेट्स पार्टी कहा जाता है. वे अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायालय के साथ सहयोग करने के लिए बाध्य हैं. 2025 में यूक्रेन इसका 125वां सदस्य बना. डॉक्टर विविएन डीट्रिच कहती हैं कि कई महत्वपूर्ण देशों ने इसमें शामिल होने से इनकार कर दिया था.
“इसमें कई बड़े देश शामिल नहीं हैं. अमेरिका, चीन, रूस, भारत, पाकिस्तान और इसराइल इसका हिस्सा नहीं हैं. वे राष्ट्रीय संप्रभुता के मुद्दे के कारण नहीं चाहते कि उनके नागरिकों पर अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत मुकदमा चलाया जाए. बड़े देशों के इस संधि से बाहर रहने के कारण अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायालय को एक प्रभावी वैश्विक न्यायिक संस्था बनने में बड़ी दिक्कत पेश आती रही है. यही इसकी सबसे बड़ी कमजोरी भी है.”
अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायालय में 18 न्यायाधीश होते हैं, जिनका चुनाव स्टेट्स पार्टी द्वारा किया जाता है. प्रत्येक न्यायाधीश नौ साल के कार्यकाल तक ही पद पर रह सकता है. इस न्यायालय का अपना कोई पुलिस बल नहीं है, इसलिए अपराधियों को पकड़कर अदालत में पेश करने के लिए यह स्टेट्स पार्टी या सदस्य देशों के सहयोग पर निर्भर रहता है.
डॉक्टर विविएन डीट्रिच मानती हैं कि इस न्यायालय की स्थापना जवाबदेही को मजबूत करने के लिए की गई थी. यह एक महत्वाकांक्षी विचार है, जिसका मूल सिद्धांत यह है कि अपराधियों को कानून के कटघरे में खड़ा कर सजा दी जा सके.
वैश्विक न्याय
इमेज स्रोत, Getty Photographs
लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में अंतरराष्ट्रीय कानून के प्रोफेसर गैरी सिंपसन कहते हैं कि जब अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायालय की स्थापना हुई थी, तब उम्मीद थी कि यह सरकारों द्वारा व्यापक स्तर पर किए गए अपराधों पर ध्यान केंद्रित करेगा. लेकिन इस न्यायालय द्वारा सुनाई गई पहली सजा डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो (डीआरसी) के एक मिलिशिया गुट के नेता थॉमस उबांगा के मामले में थी.
उन्होंने बताया कि उबांगा डीआरसी के निवासी थे, जिन्हें गिरफ्तार कर 2006 में अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायालय को सौंपा गया था. उन पर 15 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को अपने विद्रोही गुट में भर्ती करने और युद्ध अपराधों के आरोप लगे थे.
2012 में उन्हें दोषी करार दिया गया और 14 साल कारावास की सजा सुनाई गई. अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायालय में मृत्युदंड का प्रावधान नहीं है. इसके न्यायाधीश दोषी व्यक्ति को अधिकतम 30 साल की सजा दे सकते हैं.
2021 में, युगांडा के विद्रोही गुट लॉर्ड्स रेजिस्टेंस आर्मी के पूर्व कमांडर डोमिनिक ओंगविन को भी हत्याओं, युद्ध अपराधों और 15 साल से कम उम्र के बच्चों को विद्रोही गुट में भर्ती करने के आरोप में दोषी पाया गया. गैरी सिंपसन कहते हैं कि यह मामला काफी चर्चा में रहा, क्योंकि जब ओंगविन छोटे थे, तब उनका अपहरण कर इस विद्रोही गुट में शामिल किया गया था. इस वजह से वे खुद भी युद्ध अपराधों का शिकार हुए थे, मगर बाद में इस गुट के नेता बनने के बाद उन्होंने अपराध किए.
गैरी सिंपसन द्वारा जिन मामलों का जिक्र किया गया, वे सभी अफ्रीकी देशों से जुड़े हैं. इसकी क्या वजह है?
इस पर गैरी सिंपसन कहते हैं, “दरअसल, अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायालय उन्हीं मामलों की सुनवाई कर सकता है, जिन्हें स्टेट्स पार्टी या सदस्य देशों की सरकारों ने जांच और मुकदमे के लिए उसे सौंपा हो. यानी अदालत जिन मामलों की सुनवाई करती है, वह काफी हद तक उन देशों की सरकारों पर निर्भर करता है.”
अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायालय में मुकदमों की सुनवाई पूरी होने में लंबा समय लग जाता है. गैरी सिंपसन के अनुसार, इसका एक कारण यह है कि कई बार सरकारें सहयोग में तत्परता नहीं दिखातीं, जिससे मुकदमे की सुनवाई में देरी होती है. दूसरी वजह यह है कि इन मामलों में गवाहों की संख्या अधिक होती है और सभी के बयान दर्ज करने और पूछताछ में समय लगता है.
अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायालय की स्थापना को लगभग 23 साल हो चुके हैं. तब से अब तक इस अदालत ने केवल 11 मामलों में अभियुक्तों को दोषी करार दिया है और 4 को बरी किया है.
गैरी सिंपसन कहते हैं कि यह संख्या अपेक्षाकृत कम जरूर लग सकती है, लेकिन असल में बहुत कम लोगों पर मुकदमा चलाया जाता है. इसलिए इन मामलों के प्रतीकात्मक प्रभाव को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए.
लंबा खेल
इमेज स्रोत, Getty Photographs
किंग्स कॉलेज लंदन में युद्ध और समाज की प्रोफेसर रेचेल कर बताती हैं कि इस समय अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायालय में चार मुकदमे चल रहे हैं, जिनमें से तीन की सुनवाई पूरी हो चुकी है और फैसला जल्द आने वाला है, जबकि चौथे मुकदमे की सुनवाई अभी जारी है. इसमें सेंट्रल अफ्रीकन रिपब्लिक के चार अभियुक्तों के खिलाफ मामला अदालत के समक्ष है. लेकिन अगर इतने कम मामले अदालत में हैं, तो क्या लोग यह नहीं सोचेंगे कि हमें इस अदालत की जरूरत भी है या नहीं?
रेचेल कर स्वीकार करती हैं, “यह सवाल उठ सकता है, क्योंकि जिन अभियुक्तों के खिलाफ मुकदमे चल रहे हैं, उन्हें दुनिया में कम ही लोग जानते हैं, इसलिए इन मामलों की ज्यादा चर्चा नहीं होती. लेकिन इसके अलावा, अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायालय ने कई लोगों के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी किए हैं. ज्यादातर मीडिया का ध्यान इसी पर है कि इसमें आगे क्या कार्यवाही होगी.”
अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायालय की स्थापना के बाद से अब तक इस अदालत ने 60 गिरफ्तारी वारंट जारी किए हैं.
रेचेल कर बताती हैं कि इस समय अदालत ने 31 लोगों को संदिग्ध घोषित किया है, जो फरार हैं. इनमें कई जाने-माने लोग भी शामिल हैं, जैसे सूडान के पूर्व राष्ट्रपति ओमर अल बशीर और लीबिया के पूर्व नेता गद्दाफी के बेटे सैफ गद्दाफी. हाल ही में, अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायालय ने इसराइल के प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू और रक्षा मंत्री योव गैलांत को ग़ज़ा में इसराइली कार्रवाई के दौरान मानवता के ख़िलाफ़ अपराधों के आरोप में संदिग्ध घोषित कर उनके ख़िलाफ़ गिरफ्तारी वारंट जारी किए हैं. इससे पहले, रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और उनके करीबी सहयोगियों के ख़िलाफ़ यूक्रेन से जबरन बच्चों को बाहर भेजने और मानवता के ख़िलाफ़ अपराधों के आरोप में वारंट जारी किए गए थे.
जनवरी 2025 में, अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायालय के प्रमुख अभियोजक करीम ख़ान ने अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान सरकार के वरिष्ठ नेताओं की गिरफ्तारी के लिए वारंट जारी करने की याचिका दायर की थी. रेचेल कर कहती हैं कि तालिबान के वरिष्ठ नेताओं पर लिंग आधारित उत्पीड़न को मानवता के खिलाफ अपराध के रूप में आरोपित किया गया है. उनका मानना है कि यह न केवल अफ़ग़ानिस्तान बल्कि अन्य जगहों पर भी लिंग आधारित उत्पीड़न को कानून के दायरे में लाने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है.
अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायालय द्वारा संदिग्ध घोषित किए गए लोगों की गिरफ्तारी के लिए 125 देश कानूनी रूप से बाध्य हैं, लेकिन हमेशा ऐसा नहीं होता. रेचेल कर बताती हैं कि हाल ही में एक लीबियाई संदिग्ध, जिसके ख़िलाफ़ गिरफ्तारी वारंट जारी किया गया था, इटली में मौजूद था. लेकिन इटली ने उसे गिरफ्तार करने के बजाय निजी विमान से वापस भेज दिया. इटली का कहना था कि अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायालय द्वारा जारी किए गए वारंट में कई गलतियां और खामियां थीं, इसलिए उस व्यक्ति को गिरफ्तार नहीं किया जा सकता था. अदालत ने कहा है कि वह इस मामले की जांच कर रहा है.
2002 में जब यह न्यायालय स्थापित हुआ, उसी साल अमेरिकी संसद ने यूएस सर्विस मेंबर्स प्रोटेक्शन एक्ट नामक कानून पारित कर दिया, जिसके तहत अमेरिकी सैनिकों और सरकारी अधिकारियों पर अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायालय मुकदमा नहीं चला सकता.
अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति जो बाइडेन ने अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायालय द्वारा रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की गिरफ्तारी के लिए वारंट जारी करने का स्वागत किया था. लेकिन जब अदालत ने इसराइल के प्रधानमंत्री और रक्षा मंत्री के खिलाफ वारंट जारी किए, तो उन्होंने इसकी आलोचना करते हुए इसे पूरी तरह अमान्य बताया.
अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायालय की आलोचना केवल उसकी कार्यवाहियों की वजह से ही नहीं, बल्कि उसके कामकाज के तरीके की वजह से भी होती रही है. इस साल के लिए इस अदालत का बजट 19 करोड़ यूरो रखा गया है.
रेचेल कर कहती हैं कि यह राशि सुनने में बड़ी लग सकती है, “लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि दुनिया भर में युद्धों पर सैकड़ों अरब डॉलर खर्च किए जाते हैं. हां, यह ज़रूर कहा जा सकता है कि अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायालय को अधिक मुकदमे चलाने चाहिए. सवाल यह नहीं है कि इस अदालत की ज़रूरत है या नहीं, बल्कि सवाल यह होना चाहिए कि क्या हमें बेहतर तरीके से काम करने वाले अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायालय की ज़रूरत है?”
अगले चार साल
इमेज स्रोत, Getty Photographs
कनाडा की यूनिवर्सिटी ऑफ फ्रेजर वैली में क्रिमिनोलॉजी के सहायक प्रोफेसर मार्क कर्स्टिन कहते हैं कि अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायालय का काम करने का तरीका धीमा और ढीला रहा है, जिसे सुधारने की ज़रूरत है.
“कई लोगों की तरह मैं भी चाहूंगा कि अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायालय व्लादिमीर पुतिन, तालिबान के नेता और बिन्यामिन नेतन्याहू जैसे बड़े नेताओं को अपने कानून के कटघरे में खड़ा करने की कोशिश करे. लेकिन इन नेताओं को गिरफ्तार करना बेहद मुश्किल है. दूसरी बात यह भी है कि अदालत को अपनी स्वतंत्रता बनाए रखनी चाहिए और अमेरिकी दबाव में नहीं आना चाहिए. लेकिन वह अमेरिका से टकराव भी मोल नहीं ले सकता, क्योंकि उस लड़ाई में वह जीत नहीं सकता.”
अमेरिका द्वारा अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायालय पर प्रतिबंध लगाए जाने के बाद 79 देशों ने एक संयुक्त बयान जारी कर न्यायालय के प्रति अपना समर्थन दोहराया. मार्क कर्स्टिन कहते हैं कि अगर इस न्यायालय में 125 स्टेट पार्टी हैं, तो बाकी देश क्या कर रहे हैं? ऐसे में सवाल उठता है कि क्या कुछ देश अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायालय से खुद को अलग भी कर सकते हैं?
मार्क कर्स्टिन का मानना है कि कई देशों की इस न्यायालय को लेकर अलग राय है, और कई बार उनके तरीके इस न्यायालय के कामकाज से मेल नहीं खाते. लेकिन ऐसा नहीं लगता कि कुछ देश खुद को इससे अलग करेंगे, क्योंकि इससे केवल दुनिया को ही नहीं, बल्कि उनकी अपनी जनता को भी एक संदेश जाएगा. इसलिए मुझे नहीं लगता कि ऐसा होगा, मगर हमें सतर्क ज़रूर रहना चाहिए.
इसी सतर्कता के चलते हमें याद रखना चाहिए कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायालय के ख़िलाफ़ और सख्त कदम उठा सकते हैं. अपने पहले कार्यकाल के अंत में उन्होंने इस न्यायालय के अधिकारियों पर प्रतिबंध लगा दिया था, जिसे जो बाइडेन ने सत्ता में आने के बाद हटा दिया था. इस बार राष्ट्रपति ट्रंप ने अपने नए कार्यकाल की शुरुआत में ही अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायालय को निशाना बनाना शुरू कर दिया है.
मार्क कर्स्टिन कहते हैं, “अगले चार साल तक राष्ट्रपति ट्रंप सत्ता में रहेंगे. इस दौरान वे अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायालय की साख कमजोर कर सकते हैं और संभवतः इस संस्था को नष्ट भी कर सकते हैं. मुझे लगता है कि अगर अमेरिका अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायालय के कर्मचारियों के साथ-साथ पूरी संस्था पर ही प्रतिबंध लगा दे, तो उसके अस्तित्व पर संकट आ सकता है.”
अगर अमेरिका पूरे अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायालय पर प्रतिबंध लगा देता है, तो अमेरिकी कंपनियां इस न्यायालय को कोई सामग्री या सेवाएं नहीं दे पाएंगी. मार्क कर्स्टिन बताते हैं कि पिछले कई सालों से अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायालय के कर्मचारी अपनी जांच और सबूतों के लिए माइक्रोसॉफ्ट के प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल करते रहे हैं. अब वे चिंतित हैं कि अगर इस न्यायालय पर प्रतिबंध लगा दिया गया, तो वे इस प्लेटफॉर्म पर सेव किया गया महत्वपूर्ण डेटा हासिल नहीं कर पाएंगे. इसी वजह से वे इसे दूसरे प्लेटफॉर्मों पर स्टोर कर रहे हैं.
उनका कहना है कि अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायालय उन पीड़ितों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है, जिन्होंने अन्याय सहा है. इस न्यायालय को अपने कामकाज को और बेहतर बनाना होगा.
अब लौटते हैं अपने मुख्य प्रश्न की ओर, क्या हमें अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायालय की ज़रूरत है?
अदालत द्वारा अब तक बहुत कम लोगों को दोषी ठहराया गया है, इसलिए कई लोग इस पर सवाल उठा रहे हैं. मगर जिन मामलों की सुनवाई हुई है, वे जटिल रहे हैं. इसकी दूसरी बड़ी कमजोरी यह है कि संदिग्धों को गिरफ्तार करने के लिए यह न्यायालय सदस्य देशों पर निर्भर है, और कई बड़े देश इसके सदस्य ही नहीं हैं. वहीं, अगर अमेरिका ने इस न्यायालय पर प्रतिबंध लगा दिया, तो इसका काम करना और मुश्किल हो जाएगा.
निश्चित रूप से अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायालय को अपने कामकाज के तरीके सुधारने होंगे और अपनी स्वतंत्रता भी बनाए रखनी होगी. भले ही इस अदालत ने अब तक बहुत कम लोगों को दोषी करार दिया है, मगर इसके द्वारा दी गई सजा का महत्व काफी बड़ा है.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित