Khooni Darwaja : भारत की राजधानी दिल्ली सिर्फ बढ़ते विकास और आधुनिकता का ही प्रतीक नहीं है । बल्कि ये शहर उन अनगिनत कहानियों का भी साक्षी है जो इतिहास के पन्नों में दर्ज है। दिल्ली का नाम सुनते ही ऐतिहासिक और शाही इमारतों की तस्वीर सामने आ जाती है। यहाँ का हर किला , हर दीवार और हर दरवाज़ा अपने अंदर कोई न कोई राज़ छिपाए हुए है। दिल्ली की इन्हीं ऐतिहासिक इमारतों में से कुछ ऐसी भी जगह हैं जिनका किस्सा इतिहास की भव्यता से जुड़ा हुआ है तो कुछ खौफनाक सच से। उन्हीं जगहों में से एक जगह है खूनी दरवाज़ा – जो अपने खौफनाक इतिहास के लिए जानी जाती है।
दरअसल ये खूनी दरवाज़ा नई दिल्ली के बहादुर शाह ज़फर मार्ग पर स्थित है, जो फिरोज़ शाह कोटला किले और दिल्ली गेट के पास है। आज यह भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा संरक्षित स्मारक है, लेकिन इसका इतिहास काफी खौफनाक रहा है। आपको बता दें कि इस दरवाज़े का निर्माण 16वीं शताब्दी में अफगान मूल के राजा शेर शाह सूरी ने करवाया था। ये दरवाज़ा दिल्ली में प्रवेश करने के लिए एक मुख्य दरवाज़ा था और पुरानी दिल्ली की दीवार का एक अहम हिस्सा हुआ करता था। जिसे उस समय काबुली दरवाज़े के नाम से जाना जाता था।
विद्रोह और खूनी इतिहास
साल था 1857 जब भारत में पहले स्वतंत्रता संग्राम की शुरुआत हुई। भारतीयों ने अंग्रेज़ी सिपाहियों के खिलाफ मोर्चा खोला और कई जगहों पर उन्हें करारी टक्कर भी दी। इस विद्रोह के दौरान दिल्ली के अंतिम मुग़ल सम्राट बहादुर शाह ज़फ़र को अंग्रेजों ने बंदी बना लिया। उनके तीन बेटों — मिर्ज़ा मुग़ल, मिर्ज़ा ख़िज़्र सुलतान और मिर्जा अबू बख़्त को भी आत्मसमर्पण करना पड़ा।
परंतु अंग्रेज अफसर कैप्टन विलियम हडसन ने धोखे से इन तीनों राजकुमारों को खूनी दरवाज़े पर लाकर गोली मार दी। उन्हें न तो मुकदमा मिला, न दया। यह हत्याकांड इतना खौफनाक था कि दरवाज़े की दीवारें खून से रंग गई और तभी से उस दरवाज़े को खुनी दरवाज़ा कहा जाने लगा।
दहशत की कहानियाँ
इतिहास की ये दुखद घटना सिर्फ इतिहास के पन्नों में ही नहीं बल्कि स्थानीय लोगों के दिलों में भी एक भुतिया और डरावनी जगह के रूप में बस गई। यहाँ आस-पास रहने वाले लोगों का कहना है कि आज भी यहाँ पर उन तीनों राजकुमारों की आत्माएं भटकती है। कई लोगों ने यहाँ पर रात के समय अजीब सी परछाइयां, काले साए और डरावनी चीखो की आवाज़ भी सुनी है।
वहां मौजूद गार्ड्स और स्थानीय लोगों का ये भी कहना है कि दरवाज़े से आती ठंडी हवा अचानक बंद हो जाती है और दरवाज़े बार-बार कभी बंद हो कभी खुलते है जो काफी अजीब है। आपको बता दें कि खूनी दरवाज़ा एक तीन-मंज़िला लाल पत्थर से बना है। इसकी बनावट मजबूत है। इसकी रंगत समय के साथ-साथ फीकी पड़ रही है , लेकिन आज भी यह स्मारक एक जीवित इतिहास की तरह खड़ा है। यह दरवाज़ा दिल्ली के कुछ प्राकृतिक रूप से संरक्षित मुग़ल स्मारकों में से एक है।
वर्तमान स्थिति और यात्रा जानकारी
आज खूनी दरवाज़ा भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) द्वारा संरक्षित है। हालांकि यहाँ पर सरकार द्वारा प्रवेश पर प्रतिबंध लगाया गया है , फिर भी लोग बाहर से इस ऐतिहासिक स्मारक को देखने आते हैं। यह बहादुर शाह ज़फ़र मार्ग पर स्थित है और इसके पास में ही प्रसिद्ध फिरोज़ शाह कोटला किला और दिल्ली गेट है। इसका नियरेस्ट मेट्रो स्टेशन दिल्ली गेट और आईटीओ है। अगर आप यहाँ घूमने जाते हैं तो दिन का समय ही उपयुक्त है।
दिल्ली में जहां एक ओर कुतुब मीनार, लाल किला, और हुमायूं का मकबरा जैसे भव्य स्मारक पर्यटकों को आकर्षित करते हैं । वहीं खूनी दरवाज़ा एक ऐसा स्थान है जो इतिहास के खून से सने अध्यायों को बयान करता है। यह सिर्फ एक दरवाज़ा नहीं, बल्कि क्रांति, बलिदान और बर्बरता की निशानी है। खूनी दरवाज़ा, नाम सुनकर ही रोंगटे खड़े हो जाते हैं, लेकिन यह हमारी उस दास्तान और स्वतंत्रता का प्रतीक है जिसे शायद ही कोई भुला सकता है।
यह स्थान हर भारतीय को यह याद दिलाता है कि आजादी मुफ्त में नहीं मिली, बल्कि इसके लिए न जाने कितने राजकुमारों, सिपाहियों और आम जनता ने अपने प्राणों की आहुति दी। अगर आप इतिहास में रुचि रखते हैं, तो अगली बार दिल्ली जाएं तो खूनी दरवाज़े को अपनी लिस्ट में ज़रूर शामिल करें। ये सिर्फ एक खंडहर नहीं, बल्कि भारत के आत्मसम्मान की गवाही है। Khooni Darwaja
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