अरब के देशों ने ग़ज़ा पर मिस्र की योजना को मंज़ूर किया लेकिन सऊदी और यूएई पर संदेह
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मिस्र की राजधानी काहिरा में चार मार्च को अरब लीग के नेताओं की बैठक हुई, जिसमें युद्ध की तबाही के बाद ग़ज़ा के पुनर्निर्माण को लेकर एक योजना पर सहमति बनी है. यह योजना मिस्र की है.
मिस्र के राष्ट्रपति अब्दुल फतेह अल-सीसी ने कहा कि उनकी योजना को अरब लीग ने स्वीकार किया है. ड्राफ्ट डॉक्युमेंट के अनुसार, पाँच साल की योजना पेश की गई है, जिसमें 53 अरब डॉलर खर्च करने की बात है. इस योजना के तहत सभी फ़लस्तीनी अपनी ज़मीन पर ही रहेंगे.
इस समिट में शामिल होने जॉर्डन के किंग अब्दुल्लाह द्वितीय, बहरीन के किंग हमाद बिन इसा अल ख़लीफ़ा, क़तर के अमीर शेख़ तमीम बिन हमाद अल थानी, कुवैत के क्राउन प्रिंस शेख़ सबाह ख़ालिद अल-हमाद अल-सबाह, सऊदी अरब के विदेश मंत्री प्रिंस फ़ैसल बिन फ़रहान और यूएई के उपराष्ट्रपति शेख़ मंसूर बिन ज़ायेद अल नाह्यान पहुँचे थे. इसके अलावा लेबनान, सीरिया, इराक़, सूडान और लीबिया के राष्ट्रपति भी आए थे.
सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान और यूएई के राष्ट्रपति शेख़ मोहम्मद बिन ज़ायेद अल नाह्यान के इस समिट में नहीं आने से कई तरह के सवाल उठ रहे हैं.
दिल्ली स्थित जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी में पश्चिम एशिया अध्ययन केंद्र में प्रोफ़ेसर रहे आफ़ताब कमाल पाशा कहते हैं कि सऊदी के क्राउन प्रिंस और यूएई के राष्ट्रपति का इस समिट में नहीं आना बताता है कि ये दोनों फ़लस्तीनियों को लेकर कितने गंभीर हैं.
प्रोफ़ेसर पाशा कहते हैं, ”सऊदी अरब और यूएई अमेरिका के पिट्ठू हैं. फ़लस्तीनियों को लेकर हम इनसे कोई उम्मीद नहीं कर सकते हैं. एक तरफ़ ट्रंप की योजना है तो मिस्र ने भी अपनी योजना पेश कर दी है. ट्रंप मिस्र से ही कह रहे थे कि फ़लस्तीनियों को अपने यहाँ बसाएं. मुझे नहीं लगता है कि इस प्रस्ताव को ज़मीन पर उतारा जा सकता है. अगर इसे ज़मीन पर उतारना है तो इसराइल और अमेरिका की सहमति लेनी होगी.”
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मिस्र की योजना लागू कैसे होगी?
प्रोफ़ेसर पाशा कहते हैं, ”मिस्र ने 53 अरब डॉलर की योजना पेश की है, लेकिन वो ख़ुद कितने डॉलर देने की हालत में है? सऊदी और यूएई के बिना यह संभव नहीं है. अरब लीग के देशों में इन्हीं दोनों के पास पैसे हैं. लेकिन मुझे नहीं लगता है कि ये दोनों देश इसराइल और अमेरिका के ख़िलाफ़ जाकर किसी योजना के साथ आएंगे. जुबानी खर्च में क्या जाता है. अरब लीग पिछले कई दशकों से जुबानी खर्च ही कर रहा है. मिस्र, जॉर्डन, लेबनान, सीरिया, सूडान के पास कितने पैसे हैं? क़तर और कुवैत भी इसराइल और अमेरिका के ख़िलाफ़ जाने की हिम्मत नहीं रखते हैं.”
प्रोफ़ेसर पाशा कहते हैं कि फ़लस्तीनियों को लेकर संयुक्त राष्ट्र का प्रस्ताव लागू नहीं हो पाता है तो अरब लीग के प्रस्ताव को कौन लागू कर देगा?
यूएई और मिस्र में भारत के राजदूत रहे नवदीप सिंह सूरी कहते हैं कि जहाँ तक अमेरिकापरस्त होने की बात है, तो पूरा अरब लीग ही ऐसा है.
नवदीप सूरी कहते हैं, ”सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस भले ख़ुद नहीं गए थे लेकिन उनके विदेश मंत्री शाही परिवार से ही हैं और यूएई के उपराष्ट्रपति भी शाही परिवार से ही हैं. ये सच है कि सऊदी और यूएई अमेरिका परस्त हैं लेकिन क्या मिस्र,जॉर्डन, लेबनान, क़तर और कुवैत नहीं हैं? ज़ाहिर है कि ये सब भी हैं. मिस्र का प्रस्ताव बहुत बढ़िया है और मुझे लगता है कि इसे लागू करवाने में भारत को भी मदद करनी चाहिए. ये बात बिल्कुल सही है कि बिना इसराइल और अमेरिका की सहमति के इसे लागू करना मुश्किल है. ग़ज़ा पर नियंत्रण तो इसराइल का ही है.”
मिस्र के राष्ट्रपति अल-सीसी ने कहा कि फ़लस्तीन को बिना एक संप्रभु़ देश बनाए शांति संभव नहीं है. अरब लीग की बैठक की शुरुआत में ही मिस्र के राष्ट्रपति ने कहा कि शांति जबरन नहीं आ सकती है और आप लोगों के साथ जबर्दस्ती नहीं कर सकते हैं.
वहीं, इसराइल के विदेश मंत्रालय ने काहिरा में अरब लीग की बैठक को नाकाम बताते हुए कहा कि ग़ज़ा की जो ज़मीनी हक़ीक़त है, उस पर बात नहीं की गई. दूसरी तरफ़ अमेरिका ने कहा है कि हमास के नियंत्रण में ग़ज़ा नहीं रह सकता है.
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हमास को लेकर विभाजन
मिस्र के राष्ट्रपति ने बैठक के बाद एक्स पर लिखी एक पोस्ट में कहा है, ”मुझे ख़ुशी है कि अरब देशों के बीच ग़ज़ा के पुनर्निर्माण को लेकर सहमति बन गई है. इस प्लान को सफल बनाने के लिए अंतरराष्ट्रीय समुदाय से किसी प्रस्ताव या आइडिया का स्वागत है. हम अरब के भाइयों, राष्ट्रपति ट्रंप और अंतरराष्ट्रीय समुदाय के सहयोग की अपेक्षा करते हैं.”
अमेरिकी नेशनल सिक्योरिटी काउंसिल के प्रवक्ता ब्रायन ह्यूज़ ने कहा, ”राष्ट्रपति ट्रंप ने स्पष्ट कर दिया है कि हमास के नियंत्रण में ग़ज़ा नहीं रह सकता है.”
कहा जा रहा है कि ग़ज़ा में हमास जब तक रहेगा, इसराइल युद्ध बंद नहीं करेगा. ऐसे में अरब के देशों के लिए मिस्र की योजना को लागू करना वाक़ई टेढ़ी खीर है.
अमेरिकी अख़बार वाल स्ट्रीट जर्नल ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि खाड़ी के देश यूएई ग़ज़ा के पुनर्निर्माण में फंड नहीं देना चाहता है. वहीं मिस्र के लिए इसका समर्थन करना आसान नहीं है कि ग़ज़ा से हमास ख़त्म हो जाना चाहिए. ग़ज़ा में हमास की मौजूदगी को लेकर अरब के देश आपस में बँट सकते हैं. नवदीप सूरी कहते हैं कि पुनर्निर्माण प्रस्ताव तभी संभव होगा, जब हमास को लेकर अरब देशों में एक राय बनेगी.
प्रोफ़ेसर पाशा कहते हैं कि ट्रंप ने ग़ज़ा को अमेरिका के नियंत्रण में लेने के लिए कहा था और अरब देशों की एकजुटता इसी के ख़िलाफ़ है.
वाल स्ट्रीट जर्नल ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है, ”सऊदी अरब और क़तर मिस्र की योजना के साथ हैं, लेकिन युद्ध के बाद ग़ज़ा में बाक़ी फ़लस्तीनियों की तरह हमास की राजनीतिक भूमिका के हिमायती हैं. दोनों ये चाहते हैं कि हमास हथियार छोड़ दे लेकिन राजनीतिक भूमिका से बाहर नहीं किया जाए. वहीं यूएई चाहता है कि हमास ग़ज़ा से पूरी तरह बाहर हो. अमेरिका ने हमास को आतंकवादी समूह की लिस्ट में रखा है. यूएई ग़ज़ा की सुरक्षा के लिए अरब के देशों से सैनिक भेजे जाने का भी विरोधी रहा है.”
वाल स्ट्रीट जर्नल से मिस्र के अधिकारियों ने कहा, ”मिस्र चाहता है कि हमास के साथ अन्य फ़लस्तीनी गुट मिसाइल और रॉकेट जमा कर दें क्योंकि इनका इस्तेमाल इसराइल पर हमले में किया जा सकता है. ये सारे हथियार फ़लस्तीनी स्टेट बनने तक मिस्र या ईयू की निगरानी में स्टोर रहेंगे. लेकिन हमास के सीनियर वार्ताकार ख़लील अल-हया ने इससे साफ़ इनकार कर दिया है. यूएई ग़ज़ा के पुनर्निर्माण में अहम भूमिका निभा सकता है लेकिन हमास के रहते ऐसा नहीं करेगा.”
प्रोफ़ेसर पाशा कहते हैं कि अरब के देशों के बीच फ़लस्तीनियों को लेकर पर्याप्त मतभेद हैं. प्रोफ़ेसर पाशा कहते हैं, ”रात में मैं पूरा समिट देख रहा था. जब फ़लस्तीनी क्षेत्र के राष्ट्रपति बोलने आए तो उन्होंने कहा कि उनके पास दस मिनट से ज़्यादा समय नहीं है क्योंकि कहीं और जाना है. इसी से पता चलता है कि अरब के नेता फ़लस्तीनियों को लेकर कितने गंभीर हैं.”
यूएई आई2यू2 में भी. इसमें इसराइल, इंडिया, अमेरिका और यूएई हैं. जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी में पश्चिम एशिया अध्ययन केंद्र में प्रोफ़ेसर अश्विवनी महापात्रा कहते हैं कि सबसे बड़ी दिक़्क़त तो फंड की है. प्रोफ़ेसर महापात्रा कहते हैं, ”हमास के रहते यूएई फंड नहीं करेगा. सऊदी अरब भी पहले वाला वहाबी इस्लामी मुल्क नहीं है कि इस्लाम के नाम पर पैसे देगा. सऊदी ये सब कब का बंद कर चुका है. क़तर कुछ पैसे दे सकता है. ऐसे में सबसे बड़ा सवाल तो यही है कि फंड कहां से आएगा?”
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मिस्र की योजना में क्या है?
समाचार एजेंसी रॉयटर्स के मुताबिक़ इस बैठक में 112 पन्नों का ड्राफ़्ट दस्तावेज़ पेश किया गया है. ड्राफ्ट दस्तावेज़ के अनुसार, पाँच साल की योजना में पहले छह महीने में मलबा हटाने का काम किया जाएगा और अस्थायी घर बनाए जाएंगे. इसकी लागत करीब तीन अरब डॉलर आएगी. इसके बाद अगले दो साल में दो लाख घर बनाए जाएंगे. वहीं दूसरे चरण में दो लाख घर और बनाए जाएंगे.
2030 तक लाखों नए घर बनकर तैयार हो जाएंगे, जिनमें क़रीब 30 लाख लोग रहेंगे. इसके अलावा एक एयरपोर्ट, इंडस्ट्रियल ज़ोन, होटल और पार्क भी होंगे. मिस्र के राष्ट्रपति ने कहा है कि स्वतंत्र फ़लस्तीनी निकाय ग़ज़ा के प्रबंधन का काम देखेगा.
मिस्र की इस योजना का यूरोपियन यूनियन और संयुक्त राष्ट्र ने समर्थन किया है. काहिरा में अरब लीग की इस बैठक में संयुक्त राष्ट्र के महासचिव एंटोनियो गुटेरस ने कहा, ”अरब देशों की इस योजना का मैं मज़बूती से समर्थन करता हूँ. यूएन इस योजना को ज़मीन पर उतारने के लिए पूरी तरह से तैयार है.”
वहीं ईयू काउंसिल के अध्यक्ष एंटोनियो कोस्टा ने इस योजना का स्वागत करते हुए कहा कि मिस्र की इस योजना से फ़लस्तीनियों में उम्मीद जगी है. उन्होंने कहा कि पिछले कुछ सालों से फ़लस्तीनियों ने बहुत कुछ झेला है, जिसका अब अंत हो सकता है.
बहरीन के किंग हमाद बिन इसा अल ख़लीफ़ा ने बैठक के शुरुआती सत्र में कहा, ”ग़ज़ा के लिए मिस्र ने जो योजना पेश की है, मैं उसकी प्रशंसा करता हूँ. मैं सबसे आग्रह करता हूँ कि लोग इस योजना का समर्थन करें.”
सीरिया के अंतरिम राष्ट्रपति अहमद अल-शरा भी इस बैठक में शामिल होने काहिरा पहुँचे थे. मंगलवार को इस बैठक को संबोधित करते हुए अल शरा ने कहा, ”ट्रंप ने ग़ज़ा पर जो प्रस्ताव दिया था, वो बहुत बड़ा अपराध था. ट्रंप का प्लान कभी लागू नहीं हो सकता है.”
किसी अंतरराष्ट्रीय समिट में अल-शरा का यह पहला संबोधन था. उन्होंने कहा, ”इसराइल का आक्रामक विस्तार न केवल सीरिया की संप्रभुत्ता के लिए ख़तरा है बल्कि पूरे इलाक़े के लिए ख़तरा है. मैं अंतरराष्ट्रीय समुदाय से अपील करता हूँ कि इसराइल पर दबाव डालकर दक्षिणी सीरिया से निकलने के लिए कहे.”
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़ रूम की ओर से प्रकाशित